Maulavi Lakaullah Usmani (Buzurgaan-e Panipat)

*मौलवी लकाउल्ला उस्मानी* 
      मौलवी साहब की पैदाइश और इंतकाल इसी पानीपत शहर में हुआ । उनका परिवार इस इलाके के बड़े जिमीदारों के रूप में जाना जाता रहा । उनकी शिक्षा पहले हाली मुस्लिम हाई स्कूल,पानीपत में तथा उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई । वे कानून के अच्छे जानकर भी थे इसी बिनाह पर उन्हें पहले लीगल प्रैक्टीशनर और बाद में न्यायालय की ओर से वकील नियुक्त किया गया । वे शरीयत कानून के प्रसिद्ध विद्वान माने जाते थे । उस समय पानीपत में कुछ ही वकील काम करते थे । उनमें खान तंवर अली हैदर, बाबू रतन लाल जैन , बाबू लक्ष्मण स्वरूप गुप्ता , लाला शुगन चंद रोशन, बाबू धर्मसिंह अग्रवाल, लाला जय भगवान जैन, बाबू रमेश चंद बेकस, बाबू ज्वाला प्रसाद गोयल, बाबू रामगोपाल आदि थे उन सबके बीच मौलवी साहब का बड़ा स्थान था । उस समय कोर्ट वर्तमान कचहैरी बाज़ार में होती थी ।
     मौलवी साहब तत्कालीन संयुक्त पंजाब के वर्तमान हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं में थे । पंडित गोपीचंद भार्गव, भीमसेन सच्चर, पंडित श्रीराम शर्मा , पंडित नेकी राम , चौधरी साहब सिंह(चौधरी देवीलाल के बड़े भाई), चौधरी रणबीर सिंह , भीमसेन , लाला देशबंधु गुप्ता जैसे बड़े नेताओं के आप व्यक्तिगत मित्र थे वहीं महात्मा गांधी तथा मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे राष्ट्रीय नेताओं के विश्वास पात्र लोगों में शामिल थे । 
    सन 1947 में भारत विभाजन आप के लिए एक बड़ा सदमा था क्योंकि आप मुस्लिम लीग के दो राष्ट्रों के सिद्धांत के सदा मुखालिफ रहे और कांग्रेस पार्टी की नीतियों से जुड़े रहे । उस समय पानीपत शहर की कुल आबादी 30,000 ही थी जिसमे 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी थी । इसमें तकरीबन लोग पाकिस्तान नही जाना चाहते थे । मौलवी साहब के प्रयासों से ही मौलाना आज़ाद के कहने पर आज़ादी के बाद मात्र तीन माह के अरसे में महात्मा गांधी दो बार पानीपत आए । गांधी जी का यहां के मुसलमानों को मसवरा था कि हिंदुस्तान एक सेकुलर मुल्क होगा इसलिए वे यहीं रहे । गांधी जी की शहादत के बाद न केवल मुसलमानों का बल्कि उनके रहनुमा मौलवी साहब का दिल टूट चुका था परंतु उन्होंने अपनी हिम्मत नही छोड़ी , और मुस्लिम सन 1948 अंत तक यहां रुके रहे परंतु जब करनाल में दंगो के बाद पलायन शुरू हुआ तो वे भरे मन से अपना बाबा ए वतन छोड़ कर पाकिस्तान रवाना हो गए ।
   मौलवी साहब ने अपने उस्ताद महात्मा गांधी से पाकिस्तान नहीं जाने का वायदा किया था उस पर वे बरकरार रहे और जब उनके बीवी बच्चे सभी पाकिस्तान चले गए तब भी वे अपने मुंशी मोहम्मद उमर और उनके परिवार के साथ पानीपत में ही रहे ।
   मौलवी साहब न केवल एक ओजस्वी वक्ता थे वहीं एक इतिहासविद और लेखक भी थे । उन्होंने अनेक पुस्तके भी लिखी जिनमें से एक उर्दू भाषा में लिखी बुजुरगान् ए पानीपत है ।
    मौलवी साहब का देहांत सन 1960 में हुआ और उन्हें दरगाह मखदूम साहब,पानीपत के ही अहाते में दफनाया गया ।
राम मोहन राय

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