Suhana Safar-10 (Delft, Netherlands)
सुहाना सफर -10
रॉटरडैम में दो दिन रुक कर हम वापिस एमस्ट्रेडम के लिए ट्रेन से रवाना हुए परंतु इस बीच हमारा एक पड़ाव और रहा और वह था हमारे गंतव्य स्थान पर पहुंचने से 55 किलोमीटर पहले ही एक छोटा सा कस्बा डेलफ्ट (Delft)।
ट्रेन से उतर कर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर ही लगभग आधा किलोमीटर पैदल चल कर हम उस स्थान पर पहुंचे जो कस्बे का मुख्य केंद्र है और जिसके चारों तरफ ही डेल्फ्ट की सभी ऐतिहासिक ,धार्मिक , व्यवसायिक तथा मौज मस्ती के संस्थान है ।
घुसते ही शाही महल की इमारत थी जिसे हाउस ऑफ ऑरेंज(Nassau) के नाम से जाना जाता है । ऑरेंज रंग यहां के राज परिवार का पसंदीदा है । यहां इसे कोई धार्मिक आवरण नही पहनाया गया है परंतु यह खुशहाली और प्रसन्नता का सूचक है । इस देश के राजा के जन्मदिन पर सभी लोग इसी रंग की t-shirt 👕 टी शर्ट पहन पर सड़को पर उतरते है और खूब नृत्य और संगीत के कार्यक्रम प्रस्तुत करते है । यदि कोई अनजान ऐसे रंग के कपड़े नही पहनता तो वे हंसी मजाक में उसका अंगवस्त्र फाड़ कर उसे नया कपड़ा देते है । हां,यहां राजशाही है परंतु वह प्रतीकात्मक है जबकि राज्य की सारी सत्ता लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई संसद को है । अनेक लोगों ने इस बात को कहा कि वर्तमान राजा जी 👑 किंग भी सूट बूट पहन कर बिना किसी तामझाम और सिक्योरिटी के साईकिल पर घूमते अक्सर देखे जाते है । हम जैसे लोगों के लिए यह बहुत ही अचरज की बात थी । हमारे यहां राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री तो छोड़िए एक अदना सा पंच,सरपंच अथवा यदि वे महिला है तो उनका पति अपनी मोटरसाइकिल अथवा कार पर इठलाते हुए पद प्रतिष्ठा लिख कर निकलता है ।
इस शाही महल की दीवारें बड़े बड़े आयताकार पत्थरों से बनी है । बाहर एक झरोखा है जहां से राजा जनता का अभिवादन स्वीकार करते थे। अब न तो यहां राजा थे और न ही कोई अन्य रुकावट तो हम पति पत्नी दोनों ने इस खिड़की पर चढ़ कर सभी का अभिनंदन करते हुए अपने फोटो खिंचवाए।
महल के बिलकुल सामने ही लगभग 250 मीटर पर डेल्फट की पुरानी चर्च दिखाई देती है । यह एक कैथोलिक चर्च है । परंतु नीदरलैंड में इसके विपरीत अधिकांश ईसाई धर्म के प्रोटेस्टेंट शाखा के स्थान है । जर्मनी में 16वीं शताब्दी में एक समाज सुधारक मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च द्वारा स्थापित अंधविश्वास और वेटिकन पोप की मनमानी के खिलाफ प्रोटेस्ट किया था अत: उनके समर्थकों और अनुयायियों को प्रोटेस्टेंट अर्थात विरोध करने वाले नाम मिला । भारत में भी इसी प्रकार पौराणिक हिंदू धर्म द्वारा मान्य अंधविश्वास तथा कुरीतियों का विरोध आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने किया था । उन्हें भी मार्टिन लूथर की भांति अपमान और यातनाएं सहन करनी पड़ी थी । जर्मनी चूंकि साथ लगता देश है अत:यहां भी प्रोट्सटेंट ईसाई मत का प्रभाव है। दूसरे शब्दों में धर्म और राजनीति अलग है ।
इस चर्च की इमारत शानदार मजबूत पत्थरों से निर्मित है। इसकी ऊंचाई लगभग 109 मीटर है । इसके कलश को देखने के लिए गर्दन को 90 डिग्री तक मोड़ना पड़ता है । चर्च अंदर से भी भव्य और आकर्षक कला कृतियों से सुसज्जित है। इसी चर्च के परिसर में ही शाही परिवार के दिवंगत सदस्यों की कब्रे हैं और साथ साथ उन सेनानियों की भी जिन्होंने स्पेन के खिलाफ डच विद्रोह में शहादत पाई थी ।
इसी प्रांगण के दक्षिण की तरफ काफ़ी दुकानें है जहां विशेष चिकनी मिट्टी(चीनी मिट्टी) से बने अलग अलग बर्तन बिक्री के लिए रखे हैं जिन पर इस देश के एक अन्य पसंदीदा नीले रंग में चित्रकारी है । इन बर्तनों को पहले शाही परिवार के लोगों के लिए तैयार किया जाता था पर अब ये आम जन की खरीदारी के लिए उपलब्ध है । इन्हें एक प्रसिद्ध डच कलाकार वरमीर ने शुरू किया था और आज भी इसे उन्हीं के नाम से पुकारा जाता है।
इन्हीं कई दुकानों के बाहर इसी चीनी मिट्टी से बने बड़े बड़े जूते जो नीले रंग की कलाकृतियों से सजाए गए थे रखे थे जिसमे पांव डाल कर ग्राहक अपना फोटो खिंचवा सकता है । हमने भी दुकानदार की इजाजत से ऐसी ही एक तस्वीर खिंचवाई ।
इसी प्रांगण के दूसरी तरफ विभिन्न देशों के लोकप्रिय खानपान के रेस्टोरेंट है जहां खूब भीड़ रहती है । आज हमने भी एक ग्रीक रेस्टोरेंट पर उनका बेहतरीन खाना खाया जिसे खाकर सचमुच मजा आ गया ।
बेशक अभी सूरज छिपा नहीं था परंतु रात के साढ़े नौ बज चुके थे । समय की नजाकत को देखते हुए हम सभी नई पुरानी इमारतों को देखते हुए रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़े ताकि हम एमस्टर्डम की 🚂 ट्रेन ले सके। अभी ट्रेन को चले 20 मिनट ही हुए थे कि Lieden स्टेशन पर संदेश मिला कि चूंकि आई टी सिस्टम खराब हो चुका है अत: अब ट्रेन आगे नहीं जाएगी । हम हक्के बक्के थे कि अब जाएं तो जाएं कहां ?
मेरे साथ इसी तरह का एक वाकया अजमेर से दिल्ली तक ट्रेन से आते हुए रेवाड़ी जंक्शन पर हुआ था परंतु तब हमे ताकीद दी गई थी कि या तो अपना इंतजाम कर घर पहुंच जाएं वरना यह ट्रेन तो 12 घंटे बाद चलेगी । मेरे सहयोगी दीपक को हमने सूचित किया और फिर उन्होंने हमारे एक पुराने साथी सीमा और लक्की साईं को स्टेशन पर भेजा जिनके घर रुक कर हम अगले दिन पानीपत पहुंचे थे। पर यहां तो हमारा कोई परिचित भी नही था।
पर यहां रेलवे विभाग ने एक अन्य रेल का इंतजाम किया जो सिर्फ अगले स्टेशन Haarlem तक ही छोड़ सकती थी पर हमारा घर तो और भी दूर था । पर क्या करते उसी ट्रेन में बैठे और अगले स्टेशन पर उतरे। स्टेशन से बाहर निकल कर फिर वही फजीहत । जैसे तैसे लगभग एक घंटे इंतजार करने पर एक बस मिली जिसने हमें घर के पास स्थित sloterdijk स्टेशन तक पहुंचाया और फिर वहां से एक और बस पकड़ी और देर रात 12 बजे घर पहुंचे । हम रात भर परेशान होकर चिंतित रहे परंतु सुबह हमारे सो कर उठने से पहले ही स्थानीय रेलवे का एक मैसेज, मेरे बेटे के मोबाइल पर आया जिसमें कहा था कि रेल विभाग हमारी असुविधा के लिए खेद व्यक्त करता है और यदि हमे रात को किसी होटल वैगरह में रुक कर खर्च करना पड़ा हो तो वे उसका भुगतान करने को तैयार है ।
हमारी झल्लाहट और परेशानी इस खेद संदेश से कुछ तो कम हुई ही ।
Ram Mohan Rai,
Delft/Amsterdam Netherlands.
7.06.2023
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