Suhana Safar-12 (Den Bosch, Netherlands)
Den Bosch, Netherlands
आज यहां के लोग गर्मी ज्यादा महसूस कर रहे है परंतु यह मौसम ही हमारे देश में सुहाता मौसम कहलाता है यानी की न ज्यादा गर्म और न ही ज्यादा से ठंड। आज शनिवार भी है अर्थात वीकेंड है इसलिए आज लोग अपनी अपनी तरह से छुट्टी का मज़ा भी ले रहे है । परंतु आज हमारे भी निशाने पर दो कस्बे थे जो कि एमस्टेरडेम से कुल 80 किलोमीटर की परिधि में थे। अत: हम तीनों हमारा बेटा उत्कर्ष उनकी मां कृष्णा कांता और मैं, घर में नाश्ता करके सुबह दस बजे ही रेलवे स्टेशन पर अपने घर के पास की ही 🚃 ट्राम से रवाना हुए ।
हमने सेंटराल (Central) से रेल पकड़नी थी और हम नियत समय पर वहां प्लेट फार्म पर मौजूद थे । यहां की गाड़ियों की यह खासियत है कि टाइम की बहुत पाबंद है । एक मिनट भी आगे पीछे नहीं होती । स्टेशन भी बहुत साफ सुथरे है और 🚂 ट्रेन के डिब्बे भी वैसे ही । हमारे बेटे ने हमारे यहां आने से पहले हम दोनों का ट्रैवलिंग पास बनवा दिया है जिसकी वजह से हम ट्राम , 🚇 मेट्रो, रेल अथवा 🚌 बस में सफर करने के लिए टिकट लेने की जहमत नहीं करनी पड़ती । पास को सवारी में चढ़ने पर गेट पर बने यंत्र से टच करें और अनुमति की ध्वनि होते ही अंदर और ऐसे ही वापिसी पर निकलने से पहले करना होगा । ऐसे पास धारकों को शुक्रवार शाम से सोमवार सुबह तक पास से कोई पैसा नहीं कटता। हमने भी आज 🚂 ट्रेन से अपना ऐसे ही सफर शुरू किया और हम 70 मिनट बाद पहुंच गए अपने गंतव्य स्थान पर ।
इस शहर का नाम डेन बॉस (Den Bosch) है जो नॉर्थ बरबंत प्रांत की राजधानी है । रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही एक बहुत ही सुंदर ड्रैगन फुव्वारे के दीदार होते है जिसके साथ ही एक खंबे नुमा कलाकृति है जिसके शीर्ष पर एक सुनहरी अनुकृति है । सामने से ही हमने 🚐 पकड़ी और हम पहुंच गए सेंटराल के पास के एक पार्क से गुजरते हुए सैंट जांस कैथेड्रल यानी चर्च में । रास्ते पर ऐसे ऐसी आकर्षक दृश्य थे कि जिन हर के साथ फोटो खिंचवाने का लोभ रहा और मन कर रहा था कि हर लम्हें को कैद कर लूं । और अब हम अन्त में चर्च पहुंचे । यह लगभग 1,000 वर्ष पुरानी इमारत है जो मजबूत बड़े बड़े पत्थरों से बनी है इसकी ऊंचाई लगभग 167 मीटर है । ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों का प्रयोग करना होगा और फिर ऊपर पहुंच कर हर कोई एक बार ही में पूरे कस्बे के विहंगम दृश्य देख सकता है । इसके नीचे प्रार्थना हॉल भी कमाल का है । पूरी इमारत अद्भुत मूर्तियों से पटी है । जिनमे बाइबल की कथाओं, सर्विस के दौरान होने वाले गीत संगीत , ईसाई धर्म के संतो और मुख्य द्वार पर मां मरियम की प्रतिमा स्थापित है । जिसके नीचे खड़े होकर ऐसा लगता है कि हमें भी उनका आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है ।
इसकी गलियों से गुजरना ऐसा लगता है कि मानों हम एक हजार शहर बरस पुराने कस्बे से गुजर रहे है । छोटी छोटी ईंटो से बने सकड़ी गलियों में बने मकान और उनमें लगे झरोखे हमें इतिहास के अतीत में ले जाते है । सुंदरता यह भी कि इन्हीं गलियों को पार करते हुए पुराने तरह के पुलों के नीचे से गुजरती नौकाएं आपको रोमांच से भर देंगी । और अंत में हम पहुंचे नूर्दब्रबंत्स म्यूजियम (Noordabrabants Museum 🖼️) जो इस नगर की शान है । जिसने इसे नही देखा वह इस शहर में आया नही समझा जाना चाहिए । पुरातन से पुरातन यानी की 16,000 वर्षो से आधुनिकतम इतिहास ,कलाकृतियों ,तबाही से निर्माण की पूरी जानकारी इसमें हैं। इसका कला कक्ष तो बहुत ही खूबसूरत है । इसमें विगत शताब्दी से आजतक का पेंटिंग -पोर्ट्रेट और अब मोबाइल फोटोग्राफी को बखूबी दर्शाया है । डच कलाकार वान घोघ, जान स्ल्विज्टर और बेंजेल परिवार के सदस्यों द्वारा निर्मित पेंटिंग्स को भी यहां सम्मानित स्थान दिया है । इस दीर्घा में टंगी हर कलाकृति सजीव और चेतन है । *हमें यहां हमारे शहर पानीपत में विरासत की समृद्ध कलाकार शिव वाणी का स्मरण हो आया। वे हमारे क्षेत्र की ही नही अपितु समूचे देश की अद्भुत कला संपदा है तथा प्रगति के अनेक अवसर उनकी राह ताक रहे है* ।
इसी म्यूजियम में हम एक ऐसे व्यक्ति से मिले जो कद में लगभग हमसे दोगुना था। उन्हें देख कर ही दिल खुश हो गया । कद का छोटा- बड़ा होना बेशक शरीर की स्थिति है जो किसी को भी अनुवांशिक कारणों से मिलती है । हमें उनके साथ भी एक चित्र लेना तो बनता ही था । दिन के अढ़ाई बजने को थे और भूख भी लग रही थी इसलिए बिना किसी देरी किए हम उस रेस्टोरेंट पर पहुंचे जहां हमारा बेटा उत्कर्ष हमारा इंतजार कर रहा था । वरना म्यूजियम तो ऐसा था कि बस देखते ही रह जाए पर किसी ने कहा है कि
"भूखे भजन न होए गोपाला,यह ले अपनी कंठी माला"।
Ram Mohan Rai,
Den Bosch,
Netherlands .
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