Suhana Safar-16 (Van Gogh Museum, Amsterdam, Netherlands)
पूरी दुनियां में ख्याति प्राप्त तथा पाश्चात्य जगत में एकमेव सर्वश्रेष्ठ वान गौ आर्ट म्यूजियम को देखनें का सौभाग्य मिला । यह एमस्टर्डम के मुसेंपले(Minsepliei) ट्राम स्टेशन के बिलकुल सामने ही है । वास्तव में स्टेशन ही इसके नाम से ही है ।
विश्व प्रसिद्ध चित्रकार वेनसिर वान गौ एक ऐसे होनहार कलाविद थे जिनका नाम कला जगत में बहुत ही श्रद्धा से लिया जाता है । उन्होंने अपने जीवन में लगभग 2100 कला चित्रों को बनाया जिसमें से 200 पेंटिंग्स और 500 ड्राइंग को इसमें शमिल है जिसे देखने के लिए देश विदेश से सैंकड़ो कला प्रेमी यहां आकर न केवल इस कला को निहारते हैं वहीं इस दिवंगत चित्रकार को भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
अपने निधन के दो वर्ष पूर्व ही उन्होंने अपनी सर्वोत्तम कला कृतियों को अपने रंग और ब्रश से कैनवास पर उतारा । वर्ष 1887 में उन्होंने सूरजमुखी, वर्ष 1888 में स्लेटरी लाइट उससे अगले वर्ष व्हीट फील्ड्स विद 🐦⬛ क्रो और अपनी जीवन यात्रा के अंतिम वर्ष 1890 में sorrowing old man के चित्रों का अवतरण किया । वे पहले कलाकार ने जिन्होंने अपने खुद के लगभग 100 चित्रों को घंटो आईने के सामने बैठ कर चित्रित किया । अपने जीवन के अंतिम दस वर्षों के जीवन में उन्होंने जहां 2100 क्लाकृतियां बनाई जिसमे से 810 तैल चित्र थे, अपने अंतिम दो वर्षों में बनाई ।
इस महान कलाकार का जन्म 30 मार्च ,1853 को हॉलैंड के जुंडर्ट कस्बे में हुआ और जीवन के कुल 37 वर्ष जीवन जी कर 29 जुलाई , 1890 की फ्रांस के ऑवर्स सुर आईज शहर में उनका निधन हुआ । संपूर्ण जीवन दुखों और बीमारी से त्रस्त रहे । न कोई सहारा था और न कोई इलाज । इनके भाई थ्यो और उनके एक मित्र ने इनकी मदद की । एलोपैथी से लेकर होम्योपैथी तक सभी इलाज करवाए ,परंतु निराशा ही हाथ लगी और आखिर मानसिक अवसाद से घिर गए । मन विचलित रहने लगा । एक जगह मन नही लगता था । गांव में तो कभी शहर में । कभी देश में तो कभी विदेश में । इससे निकलने की उनकी एक ही दवा थी वे थी उनके ब्रश ,रंग और कैनवास।
उनका कहना था कि वे किसी गांव के बिलकुल तह में रहना चाहते हैं ताकि वे किसानी जीवन को जी सके । उनकी कला में इसका स्पष्ट चित्रण है । जीवन में कोई ख्याति नही पाई हां मृत्यु के अनेक वर्षों के बाद ही शोहरत मिली ,जिसका शायद उन्हें पता नही हो।
दुनियां भर में उनके कलात्मक कृतियां ही सबसे ज्यादा कीमत पर बिकी हैं। उनका जीवन का अंत भी बहुत ही पीड़ा दायक रहा कि गरीबी, बीमारी और अवसाद (depression) से तंग आकर उन्होनें आत्महत्या कर ली ।
उनका मानना था कि कला में दिल और रूह दोनों देनी होती है । (In art one must give heart and soul)
Ram Mohan Rai,
Amsterdam, Netherlands.
15.06.2023
#vangoghmuseum
https://nityanootan.blogspot.com/2023/06/suhana-safar-16.html
पूरी दुनियां में ख्याति प्राप्त तथा पाश्चात्य जगत में एकमेव सर्वश्रेष्ठ वान गोघ आर्ट म्यूजियम को देखनें का सौभाग्य मिला । यह एमस्टर्डम के मुसेंपले(Musemp) ट्राम स्टेशन के बिलकुल सामने ही है । वास्तव में स्टेशन ही इसके नाम से ही है ।
विश्व प्रसिद्ध चित्रकार वेनसिर वान गोघ एक ऐसे होनहार कलाविद थे जिनका नाम कला जगत में बहुत ही श्रद्धा से लिया जाता है । उन्होंने अपने जीवन में लगभग 2100 कला चित्रों को बनाया जिसमें से 200 पेंटिंग्स और 200 ड्राइंग को इसमें शामिल किया गया है जिसे देखने के लिए देश विदेश से सैंकड़ो कला प्रेमी यहां आकर न केवल इस कला को निहारते हैं वहीं इस दिवंगत चित्रकार को भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
अपने निधन के दो वर्ष पूर्व ही उन्होंने अपनी सर्वोत्तम कला कृतियों को अपने रंग और ब्रश से कैनवास पर उतारा । वर्ष 1887 में उन्होंने सूरजमुखी, वर्ष 1887 में स्लेटरी लाइट उससे अगले वर्ष व्हीट फील्ड्स विद 🐦⬛ क्रो और अपनी जीवन यात्रा के अंतिम वर्ष 1890 में sorrowing old man के चित्रों का अवतरण किया । वे पहले कलाकार ने जिन्होंने अपने खुद के लगभग १०० चित्रों को घंटो आईने के सामने बैठ कर चित्रित किया । अपने जीवन के अंतिम दस वर्षों के जीवन में उन्होंने जहां 2100 क्लाकृतियां बनाई जिसमे से 810 तैल चित्र (oil paintings) अपने अंतिम दो वर्षों में बनाई ।
इस महान कलाकार का जन्म 30 मार्च ,1853 को हॉलैंड के जुंडर्ट कस्बे में हुआ और जीवन के कुल 37 वर्ष जीवन जी कर 29 जुलाई ,1890 को फ्रांस के ऑवर्स सुर आईज शहर में उनका निधन हुआ । संपूर्ण जीवन दुखों और बीमारी से त्रस्त रहे । न कोई सहारा था और न कोई इलाज । इनके भाई थेओ और बुढ़ापे के एक मित्र ने इनकी मदद की । एलोपैथी से लेकर होम्योपैथी तक सभी इलाज करवाए ,परंतु निराशा ही हाथ लगी और आखिर मानसिक अवसाद से घिर गए । मन विचलित रहने लगा । एक जगह मन नही लगता था । गांव में तो कभी शहर में । कभी देश में तो कभी विदेश में । इससे निकलने की उनकी एक ही दवा थी वे थी उनके ब्रश ,रंग और कैनवास।
उनका कहना था कि वे किसी गांव के बिलकुल तह में रहना चाहते हैं ताकि वे किसानी जीवन को जी सके । उनकी कला में इसका स्पष्ट चित्रण है । जीवन में कोई ख्याति नही पाई हां मृत्यु के अनेक वर्षों के बाद ही शोहरत मिली ,जिसका शायद उन्हें पता नही हो।
दुनियां भर में उनके कलात्मक कृतियां ही सबसे ज्यादा कीमत पर बिकी हैं। उनका जीवन का अंत भी बहुत ही पीड़ा दायक रहा कि गरीबी, बीमारी और अवसाद (depression) से तंग आकर उन्होनें आत्महत्या कर ली ।
आज आलम यह है कि उनकी स्मृति में बने म्यूजियम को देखने के लिए जाने से पहले पंद्रह दिन पहले टिकट बुकिंग करवानी पड़ती है । हमारे बेटे उत्कर्ष ने इस काम को पहले ही करवा लिया था । चार मंजिले इमारत में बने इस स्थान पर जाने के बाद हमने हेड फ़ोन लिए ताकि एक एक कला कृति को समझा जा सके । पूरे संग्रहालय को देखने में वैसे तो पूरा दिन भी कम है परंतु सरसरी निगाह से देखने पर भी हमारे साढ़े तीन घंटे लगे । दूसरी मंजिल पर कॉफी शॉप है । बीच में ही एक 🍵 कप कॉफी पी और फिर शुरू हो गए । अंत में वान गौ की कलाकृतियों से चित्रित सुविनियर्स जैसे बैग्स, कप, बुक्स ,बॉक्स आदि की दुकान थी जहां से हमने भी एक बैग लिया । हमने तो इसे सामान लाने लेजाने के लिए समझा परंतु हमारे बेटे का कहना था कि लोग इन स्मारिकाओं को अपने घरों में 🖼️ फ्रेम करवा के सजाते हैं । इसी आहते में सामने एक अन्य म्यूजियम भी था जिसे भी देखना जरूरी था पर इसमें ही काफ़ी थक गए थे इसके बावजूद भी उसके ग्राउंड फ्लोर को एक नज़र में देखा और बाहर निकल आए ।
वान गौ एक महान कलाकार था परंतु जिस शोहरत की तलाश उसे जीवन पर्यंत रही वह उसे मिली तो परंतु मृत्यु के बाद ।
उनका मानना था कि कला में दिल और रूह दोनों देनी जरूरी है । (In art one must give heart and soul)
Ram Mohan Rai,
Amsterdam, Netherlands.
Comments
Post a Comment