Suhana Safar-17 (Alkmaar, Netherlands- city of cheese)
गांधी विनोबा विचार से ओतप्रोत, जे कृष्णमूर्ति जयप्रकाश नारायण-प्रभावती जी और निर्मला दीदी के मार्गदर्शन एवम सानिध्य में पली बढ़ी, प्रख्यात साहित्यकार,कवियत्री तथा वक्ता, एम आई टी की वर्ल्ड पीस एंबेसडर डॉo पुष्पिता अवस्थी के स्नेहपूर्ण आमंत्रण पर उनके खूबसूरत कस्बे अल्कमार में जानें का सुअवसर मिला । उन्हें आभार एवम शुभकामना देने के लिए विचार एवम शब्दों का हमारे पास अभाव है । वे एक ऐसी महिला हैं जो स्नेहपूर्ण वात्सल्य भाव, अतिथि पारायण सेवा तथा ज्ञान से परिपूर्ण हैं। उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की है और विश्व के अनेक देशों में जय जगत, भारत और भारतीय दर्शन को बखूबी प्रस्तुत किया है। उनकी खूबियां यह भी है कि वे हर उम्र के लोगों में खुद को ढाल लेती हैं । लोगों से मिलना जुलना ,संवाद करना और फिर संबंधों को बनाए रखने के लिए पात्र बने रहने की कोशिश करना मेरे स्वभाव में शामिल है । उसी क्रम में पुष्पिता जी से भी मुलाकात रही ।
उनसे मिलने के लिए हमे एमस्टेरडम में अपने घर से ट्राम से स्टोटर्डजिक पहुंच कर ट्रेन से 41 किलोमीटर तक कुल 37 मिनट का सफर कर अल्कमार (Alkmaar) जाना पड़ा । ट्रेन भी क्या है , गज़ब आरामदायक और वाईफाई जैसी सुविधा से सम्पन्न । कब टाइम बीत गया पता ही नही चला । बेशक वाईफाई फ्री था । मोबाइल पर फेसबुक और व्हाट्सएप चैट खूब की जा सकती थी परंतु ट्रेन की ऊपरी मंजिल पर बैठ कर खिड़की से खेत खलिहान, बस्तियों ,पवन चक्कियों के नजारे इतने खूबसूरत थे कि 📲 मोबाइल चलाने का बिलकुल मन ही नही किया । स्टेशन पर ट्रेन पहुंचने से पहले ही हमारी मेज़बान पुष्पिता जी पहुंच चुकी थी और बहुत ही उत्सुकता से हमारे स्वागत के लिए तैयार थी । रूबरू हमारी उनसे पहली मुलाकात थी परंतु सोशल मीडिया पर उनसे अनेक बार मिले थे । विशेष तौर से 10 अक्तूबर ,2020 को जब भाई जी सुब्बाराव जी के साथ एक वार्ता में वे भी थी । अपनी पैतृक विरासत के कारण वे सर्वोदय आंदोलन से जुड़ी हैं और वर्तमान में आचार्य कुल और भारत नीदरलैंड हिंदी सोसायटी की अध्यक्ष है जिसके उपाध्यक्ष मेरे बहुत ही अज़ीज़ छोटे भाई और साथी ,टोंक(राजस्थान) निवासी मुजीब अता आज़ाद साहब है। वास्तव में पुष्पिता जी से हमारे सम्पर्क और संबंध का माध्यम वे ही हैं । उन्हीं की वजह से वे गांधी ग्लोबल फैमिली से जुड़ी और अब विश्व भर में भारतवंशी बहुल देशों की संयोजिका के रूप में कार्य कर रही हैं। हम उनसे ऐसे मिले जैसे बरसो बाद बिछड़े कोई भाई बहन मिलें हो । बिना किसी विशेष औपचारिकता के वे एक प्रोफेशनल गाइड की तरह हमें अपने कस्बे की ओर ले जाने लगी ।
यह शहर जिसकी स्थापना दसवीं शताब्दी में हुई थी और जिसे वर्ष 1254 में नगर के रूप में मान्यता मिली । वह शहर जिसने अपने समय में अनेक उतार चढ़ाव, युद्ध , जीत हार देखे और जिसके लोगों ने अनेक बलिदान देकर इस स्थान की आक्रांताऔ से बचाया ।
हम सबसे पहले वान गौ म्यूजियम गए । यद्यपि हमने उनका सम्पूर्ण संग्रहालय एमस्टर्डम में भी देखा था परंतु यहां भी इसे देखकर प्रसन्नता हुई । इसके बिलकुल सामने ही इस शहर का सबसे बड़ा कला केंद्र है जिसे ताका थिएटर के नाम से जाना जाता है । इस स्थान पर ही समय समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।
वास्तव में यह 🧀 चीज (cheese) का शहर है । इस समेत इसके चारों और गांवों और डेयरी फार्म्स में चीज (पनीर) बनाया जाता है । आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यहां कितनी गौशालाएं और अन्य पशुशालाएं होंगी जिनमें बंधी हजारों गायों , भेड़ और बकरियों का पालन पोषण कर दूध, दहीं , मक्खन, घी और पनीर का निर्माण किया जाता होगा ।
इस शहर में घुसते ही मानों मुख्य द्वार पर ही एक व्यक्ति अपने हाथों में एक शिशु की तरह संरक्षित एक बछड़े को लिए एक मूर्ति लगी है । जिसे देख कर ही हम गौवंश की महत्ता को समझ सकते हैं । रेलवे स्टेशन के बाहर भी पनीर की कार टायर के आकार की बड़ी बड़ी चक्कियों जो की पत्थर की बनाई गई थी में पानी के फुव्वारे हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं और यहां के जन जीवन में चीज पनीर किस तरह घुला मिला है ,यह दर्शाती है ।
इस पूरे इलाके में पनीर बनाने का काम काफी पुराना है और अल्कमार में तो शहर बनने की कवायद के समय में ही यानी सन 1365 में ही पनीर बनाना शुरू कर दिया था । एक समय तो यह था कि चीज को ही मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता और और जर्मनी जाने के लिए राजस्व टैक्स के रूप में इसका ही भुगतान किया जाता था ।
और यहीं सब जानने और समझने के लिए हम पहुंचे चीज म्यूजियम में। इस शहर में एक चीज तथा दूसरा बीयर म्यूजियम देखने दूर दराज से लोग आते है । इसकी बेसमेंट में ही पनीर तोलने की एक पुराने ढंग का कांटा लगा है जो एक बार में कई किवंटल पनीर तोल सकता है । लगभग एक लाख से कुछ ज्यादा आबादी वाले इस शहर में आज शनिवार होने की वजह से मार्केट तो बंद थी परंतु इस मार्केट में हमारे शहरों की तरह हाट लगा हुआ था जहां आज पास के देहात से लोग ग्रामीण और कुटीर उद्योग से निर्मित चीज़ें बिक्री के लिए लाए थे । पूरे बाज़ार में रसोई में प्रयोग होने वाले मसालों ,दूध उत्पाद , ब्रेड आदि की भीनी भीनी खुशबू महक रही थी । और यहीं चल रहा था एक बड़ा आयोजन जहां लोग 5 से 40 किलोमीटर पैदल चल कर अपने सामान के साथ आए थे और स्थानीय लोग सैंकड़ो की संख्या में उन्हें सूरजमुखी के फूल तथा अन्य पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित कर रहे थे ।
इसी संग्रहालय में जाकर जानकारी मिली कि इस देश में चीज (पनीर) का प्रतिवर्ष 6,500,000,000 (6 करोड़ ,50 लाख किलोग्राम) होता है तथा यह छह प्रकार और वे भी भिन्न भिन्न टेस्ट का बनता है । यहां के लोग भी प्रति व्यक्ति हर साल में लगभग 15 किलो चीज (पनीर) का इस्तेमाल करते है। चावल, नींबू के अचार ,बीयर की तरह ही यह जितना पुराना होगा ,उतना ही अच्छा माना जाता है । इस म्यूजियम में चीज बनाने की पुरानी और अब नई आधुनिक पूरी प्रक्रिया को दर्शाया गया है । सबसे ज्यादा बढ़िया चीज गौडा गांव में बना हुआ मानते है ,इसीलिए इस का नाम भी Gauda Cheese ही है । इस हाट से अलग और जगह भी इस नाम से बड़ी बड़ी दुकानें हैं ।
इसके बाद हम सेंट्रल मार्केट के बिलकुल बीचो बीच एक मूर्ति को देखने गए जिसे Truus Wijsmular Statue के नाम से जाना जाता है परंतु इसे यदि हम अपनी साधारण भाषा में कहें तो यह earth mother है । इसमें एक महिला के चारों तरफ बच्चे ही बच्चे है जिन्हें वह समान रूप से अपना स्नेह और वात्सल्य प्रदान कर रही है। धरती माता की इससे सुंदर भावपूर्ण प्रतिमा मैने कहीं नही देखी ।
इस सेंट्रल मार्केट का चक्कर लगाते हुए हम एक कॉफी शॉप पर पहुंचे और कुछ खाने पीने का भी ऑर्डर दिया । इतिफाक से हमारी टेबल के ठीक ऊपर बापू के तीन बंदरों की एक छोटी आकृति का शो पीस रखा था । हमारा मानना रहा की यह कोई अकस्मात न होकर बापू का साक्षात आशीर्वाद है ।
नहर किनारे चलते चलते अब हम एक लकड़ी के पुल को पार करके एक बहुत ही पुरातन और भव्य चर्च जो कि जीसस एज किंग के नाम से थी, पर पहुंचे । अंदर जाने की कोशिश करने पर नाकामी हासिल ही हाथ लगी क्योंकि अब यह बाहर से बनावट में तो चर्च है परंतु अंदर यह एक आवासीय अपार्टमेंट्स में तब्दील हो गई है और इसके प्रबंधन ने अनेक लोगों को मोटी रकम लेकर रिहायशी इस्तेमाल के लिए लीज पर दे दी है। हमारे भारत में भी अनेक धार्मिक सामाजिक संस्थान बाहर से तो सेवा संस्थान हैं परंतु उनका उपयोग अब कमर्शियल उद्देश्य से किया जा रहा है और इसके किराए प्रबंधन गैर उद्देश्यों की पूर्ति पर खर्च कर रहा है ।
अल्कमार में हमारे पास कुल चार घंटे ही थे । हमारे यहां आने का प्रोग्राम तो इतवार को था परंतु हाट की वजह से पुष्पिता जी के कहने पर हम शनिवार को आए क्योंकि वे चाहती थी कि हम यहां के ग्राम्य जीवन और कुटीर उद्योग का साक्षात दर्शन कर सकें।
अब शाम के सवा चार बजने को थे और हमारी ट्रेन 4.40 बजे की थी ,इसलिए जल्दी जल्दी में उनका आभार प्रकट कर और फिर जल्द ही आने का वायदा कर हम स्टेशन की ओर निकल पड़े । अंत में उन्होंने चलते समय कहा आप लोगों से मिलकर मुझे कुछ सप्ताह के लिए अदभुत रचनात्मक ऊर्जा नसीब हुई है जो बहुत कम होता है।
गोकुल का नाम हमारे लिए भगवान कृष्ण के माखन चोर लीला भूमि के रूप में है । गोकुल तो था ही गाय, दूध दही, मक्खन और छाछ का घर । पर यह पौराणिक कथा है । वर्तमान में यूरोप के इस भाग में उसके साक्षात दर्शन हैं ।
Ram Mohan Rai.
Alkmaar, Netherlands.
Alkamar के सुन्दर रोचक संस्मरण...cheese का नगर
ReplyDeleteThanks for your humble compliments 🙏
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