Suhana Safar-20 (Brugge, Belgium)
Antwerpan से चल कर हमारा दूसरा पड़ाव वहां से महज आधे घंटे की दूरी पर एक दूसरा शहर ब्रुख (Brugges) रहा जो है तो मात्र लाख - सवा लाख की आबादी का शहर परंतु बेल्जियम में बड़े चार शहरों ब्रसेल्स, अंतर्वेपण, घेंट तथा ब्रुख में प्रमुख शहर है । हम यहां इंटरनेशन यूथ हॉस्टल में ठहरे जिसकी बुकिंग लगभग 10 दिन पहिले ही करवा ली गई थी । ऐसे हॉस्टल विदेशों में ही नही अपितु भारत के भी हर प्रमुख स्थानों पर स्थित हैं तथा उचित किराए पर सुविधानुसार आरामदायक कमरे और उसके साथ ही सुबह का नाश्ता उपलब्ध करवाते है । मैं खुद भी इनके हॉस्टल में हैदराबाद, श्रीनगर, दिल्ली एवम कुरुक्षेत्र में रुका हूं । इनका प्रबंधन इंटरनेशनल यूथ हॉस्टल एसोसिएशन करती है जिसकी भारत में एक केंद्रीय इकाई है तथा लगभग हर प्रांतों में शाखाएं है । इसकी मेंबरशिप होती है तथा निर्वाचन भी लोकतांत्रिक तरीके से किया जाता है।
बेशक सुबह से सफर और यात्रा में पैदल चलने की वजह से कुछ थकावट महसूस हो रही थी ,परंतु मन में उत्साह था इसलिए कुछ देर सुस्ता कर ही फिर पैदल ही निकल पड़े । एक नदी के किनारे लगभग दो किलोमीटर पैदल चल कर हम एक 🌉 ब्रिज(पुल) पर पहुंचे । वास्तव में इस शहर का नाम भी ब्रुख है जो अंग्रेजी शब्द ब्रिज का ही डच पर्याय है । और इसी पुल से होती है इस शहर की यात्रा।
कुछ दूर चलते ही घोड़े के चलने की थाप सुनाई दी । इस आवाज को सुन कर हम थोड़ा रुके तो देखा की उत्तर दिशा की ओर से एक गली में से एक खूबसूरत डच बालिका एक इक्के (रथ) पर चार पर्यटकों को बिठा कर चली आ रही है । इस शहर की यात्रा करने के दो ही ख़ास ढंग है एक- इक्के की सवारी, दूसरे- नौका विहार । इन दोनों के चालक न केवल इसकी सवारी करवाते हैं वहीं उसके साथ साथ एक गाइड के तरह पूरे इतिहास की भी जानकारी देते हैं । हैं ना ,आम के आम और गुठलियों के दाम।
छोटी छोटी और संकड़ी गलियों से गुजरते हुए हम सेंट्रम की तरफ बढ़ रहे थे । रास्ते में छोटी ईंटो के मकान ,चर्च और दुकानें थी जिन पर उनके निर्माण के वर्ष भी लिखे थे ,इनमे से ज्यादातर वर्ष 1450 से 1600 तक के सालों में बने थे । उन्हें देखते हुए मुझे अपने शहर पानीपत की गलियां याद आ रही थी, जो इसी तरह की तो थी । इसके साथ साथ शर्मिंदगी भी महसूस हो रही थी कहां तो ये लोग अपने घरों को संभाल कर उसे ऐतिहासिक धरोहर बना रहे है और कहां हम जो आधुनिकता की होड़ में फंस कर अपने पुराने मकानों को बेच कर नई बस्तियों में आकर बस गए है जहां न तो कोई भाईचारा है और न ही विरासत का वैभव । इस शहर को World Heritage Site of UNESCO भी घोषित किया गया है ।
अब हम पहुंच गए सेंट्रम जिसके एक तरफ सन 1248 में बना Belfort Van Brugge है जो 83 मीटर ऊंचा है और जिसकी 366 सीढियां चढ़ कर हम इसके शिखर पर पहुंचते हैं जहां 47 घंटियां बंधी है जिनकी कुछ कुछ देर के अंतराल में बजती आवाजें सबको आकर्षित करती है । इसके बिलकुल सामने ही सन 1149 में बना Baslica of Holy Blood church है और इसके बाहर ही विजेता शासक की विशालकाय मूर्ति लगी है। तीसरी तरफ टाउन हॉल है और उसके बिल्कुल सामने ही चर्च ऑफ Our lady है । चारों तरफ की फोटो लेनी तो बनती ही है । हम यहां आकर समय ही भूल गए अगर दूसरे शब्दों में कहो तो विस्मित हो गए । रात के 10 बजने को थे परंतु यहां का मजा यह है कि सूर्यास्त रात 10.30 से 11 बजे तक होता है तो कोई चिंता नहीं ।
काफी देर रुक कर हम पहुंचे St Boniface Bridge 🌉 पर । चारों तरफ मादकता भरा नजारा था । हर आयु वर्ग के दंपत्ति आशिकाना अंदाज़ में फोटो खिंचवा रहे थे । मौसम भी सुहाना था और नज़ारा भी मन मोहक । बच्चे हमारे साथ थे इसलिए हम उस अंदाज में फोटो खिंचवाने में हम हिचक रहे थे । हमारे इस डर को हमारे बेटे ने समझा और वह बोला पापा आप यूरोप में हैं यहां इस तरह के अंदाज को अश्लीलता नही माना जाता अपितु इसे घनिष्ठ सम्बन्ध का सूचक मानते है ।
इन्हीं सभी आकर्षक संकड़ी गलियों से गुजरते हुए हम एक बहुत ही छोटी बंद गली के कैफे में आए जहां अंत में एक फोटो गैलरी थी । हम चार थे- मैं , मेरी पत्नी कृष्णा कांता, सुपुत्र उत्कर्ष और उसका मित्र अभिजीत उन्नीकृष्णन। हमारी मजबूरी यह थी कि यदि कोई एक फोटो खींचता तो वह फ्रेम में नही आता था । हमारी मजबूरी को समझ कर एक बेल्जियम की महिला ने हमारी फोटो खिंचवाने की तजवीज की और हमें यही तो चाहिए था । यहां की खासियत यह भी है कि स्थानीय लोग ही आपकी फोटो खींचने का आग्रह करते है । कारण यह भी हो सकता है कि टूरिस्ट स्पॉट है और सभी चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक उनके यहां आएं । यहीं से हमने एक अन्य प्रसिद्ध स्थल ग्लास ऑफ Jeruzalemerk के दर्शन किए ।
रात के 11 बजने को आए थे । हम घूमने में इतने मशगूल रहे कि डिनर करना याद ही नहीं रहा और जब याद आया तो तब तक सभी रेस्टोरेंट बंद हो चुके थे । आखिरकार एक अफगानी रेस्त्रां मिला जहां वहीं का खासतौर से बना शाकाहारी खाना खा कर पेट भरा । कई लोग समझते है कि विदेश जाकर शाकाहारी भोजन मिलने में कठिनाई होती है जो सही नही है । दुनियां भर में शाकाहार और वह भी विगन (पशु दूध रहित भोजन) का चलन बढ़ रहा है । इसी रेस्तरां में हमें एक अफगानी युवक मिला जो बहुत ही श्रद्धा से अपने सरहदी गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान और उनके गुरु महात्मा गांधी का नाम ले रहा था । जब उसे पता चला कि मैंने सीमांत गांधी के दर्शन किए है तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था ।
खाना खाने के बाद हम अपने हॉस्टल लौटे । हमने अपने मोबाइल फोन में पैदल चलने के कदम गिनने की ऐप डाउनलोड की हुई है । उसके अनुसार आज हम बीस हजार स्टेप्स चले थे ।
Ram Mohan Rai,
Brugges, Belgium .
25.06.2023
Really remarkable visit
ReplyDeleteThanks for your humble compliments
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