Suhana Safar-21(Ghent, Belgium)

   


 ब्रुख  में रात भर ठहर कर आज सुबह जल्दी ही नजदीक के अन्य शहर घेंट पहुंचना है । रात को बेशक ज्यादा थकावट रही परंतु नई जगह देखने की मन में तरावट थी इसीलिए जल्दी जल्दी तैयार हुए और इंटरनेशनल यूथ हॉस्टल एसोसिएशन की डाइनिंग हॉल में पहुंच कर भरपूर नाश्ता किया । भरपूर इस लिए कि कहीं भी जाने पर मेरी गुरु मां दीदी निर्मला देशपांडे कहा करती थी कि कार्यकर्ता को जहां भी भोजन मिले खूब भरपेट करना चाहिए फिर आगे पता नही कब मिलेगा ? वे अपनी तुलना ऊंट से करती की रेगिस्तान में वह एक दफा में ही अपने पेट में कई दिन का पानी और खाना संग्रह कर लेता है और फिर कब मिलेगा इसकी कोई चिंता नहीं । बेशक हमें यहां अगली बार की चिंता नहीं थी परंतु उनके  साथ रह खूब खाना अब मेरी आदत में शुमार हो गया है ।

    तकरीबन 40 मिनट गाड़ी चला कर हम बेल्जियम के एक बहुत ही ऐतिहासिक शहर घेंट पहुंचे । अभी सुबह के ग्यारह बजे थे । हमने गाड़ी एक चर्च की बेसमेंट पार्किंग में खड़ी की और पैदल ही सीढ़ियों से दो मंजिल चल कर बाहर निकले । बाहर तो क्या यह तो पूरी बहार ही थी ।

    घेंट का लगभग 2000 हजार साल से भी पुराना इतिहास है जबकि इसमें अवशेष पाषाण  तथा लोहा युग के भी मिलते है । ग्यारवी शताब्दी में बनी इसमें काफी इमारतें है । यह बेल्जियम का तीसरा बड़ा शहर है । यूरोप में यह पेरिस से छोटा पर मास्को से बड़ा है । आज इसकी आबादी लगभग पौने दो लाख है जबकि सन 1300 में यह पचास हजार जनसंख्या का कस्बा था । यह प्राकृतिक संपदा से भरपूर है । अगर दूसरे शब्दों में कहो कि यह हमारे देश के इलाहबाद की याद दिलवाता है । यह इस देश की दो प्रमुख नदियों लेई(Leie) और स्केल्ड (Scheldt) नदियों का संगम स्थल है और अपने ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत के साथ- साथ शिक्षा का प्रमुख केंद्र है ।

    बेल्जियम के बड़े- छोटे नगरों -उपनगरों खासियत यह है कि ये सभी कटोरी नुमा आकार में हैं जिसमे सभी चीजें समाई हुई है । देखने में छोटी है । गहरी ज्यादा है और परिधि भी घुमावदार है । दूसरे शब्दों में कहें तो पूरा शहर हद से हद 3-4 किलोमीटर में समाया है परंतु इसको देखते हुए पार करने में 10-12 घंटे कैसे बीत गए पता ही नही चलता ।सड़क पर जिस तरफ पार्किंग का दरवाजा खुला वहां एक सैंट बावो कैथेड्रल यानी चर्च थी । यह मजबूत चौड़े - चौड़े आयताकार पत्थरों से बनी थी। यहां मैंने पाया कि हर प्रमुख शहर में अनेक गिरिजाघर हैं । सम्भवत: इस लिए भी कि इनके निर्माण के समय में ये सब धार्मिक स्थान राज्याश्रित थे । राजा चर्च का भी मुखिया था । वास्तव में उसे ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था । इसलिए वह अपने ऐश्वर्य को दिखाने के लिए वह या तो महल बनवाता अथवा धार्मिक स्थल । ऐसा नहीं है कि ऐसा ईसाइयत में ही हो अपितु अन्य धर्मों में भी यही था । नेपाल का राजा भगवान पशुपति नाथ का प्रतिनिधि था और उदयपुर का महाराणा भगवान एकलिंग जी का । इसलिए इनके मंदिर और महल दोनों ही अत्यंत सम्पन्न है । केरल में पद्मनाभ स्वामी का मंदिर में खरबों रूपये के हीरे ,जवाहरात, सोना और चांदी है जो राजा प्रदत्त ही हैं । टिहरी का राजा तो खुद को भगवान बद्रीनाथ मंदिर के संरक्षक थे और लोग उन्हें बोल्यांदा बद्रीनाथ यानी बोलते हुए बदरीनाथ मानते हैं।









कुछ आगे बढ़े तो ग्रास्ली नहर और इस पर बना पुल था । जहां से क्रूज मिलते है जिन पर बैठ कर जलमार्ग से कुल चालीस मिनट में पूरे घेंट शहर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों को देखा जा सकता है । नहर के दोनों तटो पर खूबसूरत प्राचीन इमारतें है और नौकाएं लगभग 20-25 पुलों के नीचें से होकर गुजरती हैं । नौका चालक भी हर जगह की तफसील बताता हुआ आगे बढ़ता है । आज मौसम में कुछ गर्मी है और नावों में बैठे लोग धूप से बचने के लिए रंग बिरंगी छतरियां लेकर बैठे हैं जो वातावरण को और अधिक खूबसूरत बना रहा है ।



       पुल के सामने ही फॉर्टनेस ऑफ ग्रेवन स्टीन है यानी की एक अति प्राचीन क़िला। यह भी सन 1180 से 1200 तक बीस वर्षों में बना था और इसकी रेनोवेशन चौदह से 18वीं सदी तक चली ,जबकि इसकी नींव नौवीं शताब्दी में बन कर तैयार हो चुकी थी । इस क़िला में राजपरिवारों संबंधित परिवार कुछ परिवार रहते है और बकाया को आम जनता के दर्शनार्थ खोल रखा है।इसे पश्चिमी यूरोप के सबसे मजबूत किलों में से एक माना जाता है। इस के चारों ओर (Lieve) लीव नदी की सुरक्षा है । हमारे देश में अनेक ऐसे क़िले हैं जहां राजपरिवार तथा उनके नौकर चाकर परिवारों के लोग रहते है । मैने ऐसा राजस्थान के जैसलमेर के क़िले में देखा है ।












                 Top of the Belfry (Het Belfort) भी एक दर्शनीय स्थल हैं जो भी 13 वीं शताब्दी में बन कर तैयार हुआ था । इसकी 91 मीटर ऊंची मीनार पर सीढ़ियों अथवा लिफ्ट से जाकर न केवल पूरे शहर को एक दृष्टि में देखा जा सकता है वहीं इस ऊपरी मंजिल पर यहां रखे जेवरात तथा अन्य बहुमूल्य सामान को भी अलमारियों में सजाया गया है । बेशक यहां सिक्योरिटी गार्ड हैं परंतु फिर भी एक अजगर की प्रतिमात्मक मूर्ति लगी है जिसके बारे में यह मानना है कि वह दैवी रूप में इसकी रक्षा कर रही है । ऐसी मान्यताएं पूरी दुनियां भर में अलग अलग ढंग से प्रचलित है । सुरक्षा गार्ड का काम हर आधे घंटे बाद आकाशभेदी घंटे बजाना भी होता है । इसके बिलकुल सामने ही नीचे एक पत्थर का घंटा भी लगा था जिसके साथ हमने भी फ़ोटो खिंचवाए ।









         दोपहर बाद के तीन बजने को आए थे अब लंच की जरूरत थी और हम पहुंचे एक बेल्जियम रेस्तरां में जहां हमने यहां की विशेष शाकाहारी भोजन जिसमे 🍕🧀 चीज की बहुतायत थी खूब मज़े से खाया । भर पेट खाने के बाद पता चला कि यहां एक और रेस्टोरेंट हैं जो अपने विशेष अंदाज खाना खिलाता है । और हम पूरा खाना खाने के बाद भी इस ख़ास अंदाज को देखने चल पड़े।



         
          कुछ देर बाद हम पहुंचे एक ऐसे रेस्त्रां में जहां ऑर्डर देने के बाद अपना एक जूता जमा करवाना होता था । इसके पीछे की कहानी यह है की लगभग 400 साल पहले जब यह खुला तो कई लोग खाना- पीना कर बिना बिल अदा करे भाग जाते थे तो तब मालिकों ने तय किया कि खाना खाने से पहले एक जूता जमा करवाना होगा और खाने के बाद बिल अदा करने पर ही जूता मिलेगा । बेशक आज यह एक मज़ाक है पर यह ही इनके आकर्षण का केंद्र है ।

जूता लेने के बाद इस जगह से बाहर निकल कर हम एक ऐसे बड़े चौंक में थे जहां बीच में एक भूतपूर्व शासक की एक विशालकाय मूर्ति लगी थी और उसके पीछे पश्चिम की ओर किनारे पर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी और ट्रेड यूनियन का दफ्तर था जिसके शीर्ष पर पार्टी का नाम और कार्ल मार्क्स द्वारा कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणा पत्र का वह लोकप्रिय नारा डच भाषा में लिखा था "Zwoegers van de wereld, verenigt u."
" दुनियां भर के मेहनतकंशो ,एक हो जाओ,"
    इस स्थान और यहां लिखे नारों को देख कर मैं भी अपने भावों को रोक न सका और मैंने भी मुठ्ठी भींच कर "इंकलाब ज़िंदाबाद" के नारे लगाए ।








अब शाम ढलने लगी थी और हमें भी नीदरलैंड्स वापिस लौट कर अपने एक भारतीय मित्र श्री मदन गुप्ता के घर डिनर पर जाना था ।
    बेल्जियम का यह दो दिन का सुहाना सफर सदा याद रहेगा । 
"बाय बाय बेल्जियम"
Ram Mohan Rai,
Ghent, Belgium.
27.06.2023

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