Suhana Safar-6

*सुहाना सफर* -6
    *साइकिलों का शहर*
    यदि किसी राजनीतिक पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल हो तो वह इस शहर एमस्टर्डम में 150 नही बल्कि सभी 403 सीटें जीत सकते है। पर यहां यह कोई राजनीति नहीं अपितु लोकप्रिय वाहन है जिसे यहां के लोग किसी भी अन्य गाड़ी के मुकाबले पसंद से इस्तेमाल करते हैं ।
   हमने पाया कि हर मोड़ , मॉल, मार्केट , नहर किनारे और सभी पर्यटक स्थल पर साइकिल स्टैंड बने है जहां सैंकड़ो साइकिल्स खड़ी मिलेंगी। शहर की सड़कों पर भी एक भूरे रंग की अलग पट्टी है जिस पर हमें साइकिल सवार ही मिले । इन सड़कों पर इतिहात से इधर उधर देख कर चलना पड़ता है कि कहीं हम साइकिल सड़क पट्टी पर तो नही है क्योंकि इस पर उनका अधिकार पहले है ।
     इस शहर की कुल आबादी 7,80,559 है जबकि चलने वाली साइकिलों की संख्या इससे कहीं अधिक 8,81,000 है । ऐसा कहा जाता है कि यहां बच्चा तो अपनी गर्भावस्था से ही साइकिल सवार बन कर आता है ।
    एक तरफ 165 नहरें और दूसरी तरफ लाखों की संख्या में साइकिल सवार,इन दोनों का सामंजस्य ही पर्यावरण सुरक्षा का सबसे बड़ा कारण है।
     अगर हम पूरे देश की बात करें तो यहां लगभग 2 करोड़ 40 लाख साइकिल है । यहां की दो तिहाई कर्मी अपने कार्यस्थल पर जाने आने के लिए इसी सवारी का इस्तेमाल करते हैं जबकि मात्र 13 प्रतिशत ही कार आदि का ।
    साइकिल सवार को देख कर जहां मुझे प्रसन्नता होती है वहां ईर्ष्या भी कि काश मैं भी इसकी सवारी करता । यहां आकर मैं एक चीज का मोहताज हूं वह है अपनी सवारी का । कार आदि चला नही सकता क्योंकि यहां राइट हैंड ड्राइविंग है दूसरे साइकिल सवारी का ,जिसका मैं अब अभ्यस्त नहीं रहा। मेरी पत्नी कृष्णा कांता खूब साइक्लिंग करती रही है । मेरा बेटा उत्कर्ष राय मुझे हर दिन प्रोत्साहित करता है कि मैं अब भी इसे चला सकता हूं पर हिम्मत नही होती तो अंगूर खट्टे है कि तर्ज पर लोमड़ी की तरह व्यवहार रहता है ।
साइकिल सवारी का परिणाम भी यहां देख रहा हूं लोग हृष्ट पुष्ट है और जिस्मानी तौर पर सक्रिय भी । अमेरिका की तरह शरीर से थुलथुल और मोटे लोग देखना नगण्य है ।
   मेरे पिता जी नगर पालिका,पानीपत में सुपरिटेंडेंट ऑक्ट्राय के पद पर कार्यरत थे । अपनी ड्यूटी के समय उन्हें शहर के चारों ओर चक्कर लगा कर चूंगियो के निरीक्षण के लिए जाना होता था तब वे इसी सवारी का इस्तेमाल करते थे। उस समय साइकिल पर भी लाइसेंस टैक्स लगता था । लोग अपनी-2 साइकिल को खूब सजाते थे । शादी शुदा लोग अपनी पत्नी को आगे बिठा कर ऐंठ कर निकलते थे । घर में साइकिल होना बड़ी बात थी । शादियों में लड़की वाले लड़के को साइकिल गिफ्ट करते थे । पर अब जमाना बदल गया है। हिंदुस्तान में अब यह सवारी बेचारी हो गई है और इसकी जगह ले ली है पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों ने । इसका नतीजा है कि दिल्ली के आस पास ए क्यू आई 500 पार कर जाता है । पर यहां यह सवारी जनता की है । आज भी हमारे यहां अखबार तड़के ही साइकिल पर ही अखबार शब्द को खींचते हुए बोलता हुआ डाल कर जाता है । मेरे उस्ताद श्री दीपचंद्र निर्मोही तो पूरे शहर में अपने चेतना स्कूलों के लिए इसे ही इस्तेमाल कर जन संपर्क करते हैं।
    मेरे स्वसुर श्री गणेशलाल जी माली उदयपुर(राजस्थान) में सीनियर एडवोकेट थे और राज्यसभा के भी सदस्य रहे परंतु उन्होंने भी अपनी आवाजाही सदा साइकिल पर ही रखी ।
   हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में हमारे राष्ट्रीय नेता सदा इस सवारी का ही इस्तेमाल करते थे फिर चाहे वे महात्मा गांधी,पंडित नेहरू ,सरदार भगत सिंह अथवा सरदार पटेल ।
      इतिफाक से आज विश्व साइकिल दिवस है।  आइए आज इसे  पहचान देते हुए राष्ट्रीय सवारी बनाने का अभियान शुरू करें। 
     हमारी हिंदी फिल्म का भी एक एक गीत है:-
 चांदी की साइकिल सोने की सीट,
आओ चले डार्लिंग चले डबल सीट।
 आये है हम तुम गोकुल के गाँव में
बंसी बजौ मैं पडो की छाँव में
तू है गोविन्दा मैं तेरी राधा
नचा करे हम जमुना किनारे
कोई जनम हो मेरे सनम हो
टूटेगी न अपनी प्रीत
आओ चले डार्लिंग चले डबल सीट

 Ram Mohan Rai,
Amsterdam, Netherlands .
World Cycle Day.

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