Suhana Safar -7

* सुहाना सफर* -7
   *रॉटरडम की यात्रा* 
    आज हम एमस्टर्डम से लगभग 58 किलोमीटर दूर एक अन्य शहर रॉटरडम रेल मार्ग से आए हैं । यहां आने के लिए दो तरह की ट्रेन थी एक सुपरफास्ट जो इस दूरी को मात्र 40 मिनट में पूरा करती है और दूसरी ,जिसे हम पैसेंजर कहते है ,जो लगभग डेढ़ घंटे में सफर तय करती है । हमारे एक मिनट ही देरी होने की वजह से वह बुलेट ट्रेन निकल गई और अब हम बैठे दूसरी ट्रेन में जो अंदर से बहुत ही साफ सुथरी और खुली थी । यह हर प्रकार से हमारे देश की राजधानी अथवा शताब्दी एक्सप्रेस के फर्स्ट क्लास कोच से बेहतर थी और हो भी क्यों न इन्हें प्राइवेट कंपनियां चलाती है और यात्रियों से मनमाना किराया वसूल करती है । यदि ऐसी ट्रेन हमारे देश में चले तो हमारी प्रस्थितियां, लोगो का आर्थिक स्तर और यात्रियों की संख्या का दवाब इसका दम तोड़ देगा । हमारे देश में ऐसी ट्रेंस की चाहत आमजन की इस यात्रा गाड़ी को विशेष जन की पटरी पर ले जायेगी ।
    रॉटरडम स्टेशन का मुख्य द्वार बहुत ही सुंदर ढंग से सुसज्जित है और निकलते ही सामने डिब्बियों की तरह वर्गाकार आकार के घर खूब आकर्षित करते है । हम उत्कर्ष के एक मित्र अभिषेक मुखर्जी के घर पहुंचे,  कुछ हल्का नाश्ता किया और निकल पड़े शहर दर्शन करने को ।
   यह शहर तीन तरफ से समुंद्र से घिरा है और यूरोप की सबसे बड़ी बंदरगाह है । एक समय था कि यह विश्व की कुछ गिनी चुनी बड़ी बंदरगाहों में से एक था ,परंतु अब सिंगापुर सहित अनेक है ।
    हम भारतीयों के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है । यही वह स्थान है जहां से कैप्टन हज़क अपने कुछ गिनती के डच लोगों को समुद्र मार्ग से सोने की चिड़िया इंडिया को ढूंढता हुआ सन 1605 में हमारे देश आया था और वर्तमान आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम बंदरगाह पर पहुंचा था और डच ईस्ट इंडिया कम्पनी के नाम से व्यापार करते हुए पुद्दुचेरी, सूरत ,कलकत्ता आदि अनेक स्थानों पर कब्ज़ा करके शासक बन बैठा, जबकि इससे पहले सन 1498 में पहले पुर्तगाली हिंदुस्तान आ चुके थे  । इस कंपनी ने इन जगहों पर हमारे देश के गरीब किसानों मजदूरों से कपास और अन्य फ़सल उगवाई और उन्हें कम दाम देकर अनेक कारखानों की स्थापना कर मालामाल हो गए । हमारे देश के दक्षिण के उत्पाद काली मिर्च जो यूरोपीय देशों के लिए *ब्लैक गोल्ड* थी को खूब निर्यात किया गया । इन्हीं हज़क महोदय की एक अपनी शान और विजय पर इठलाती हुई एक मूर्ति बंदरगाह के एक प्रमुख स्थान पर लगी है।
   इसमें इनकी भी क्या गलती ? इन्होंने तो व्यापार के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां बना कर हमारे देश के माल, सस्ती मजदूरी और भुखमरी को समझ कर इसका इस्तेमाल किया । वरना ऐसे कैसे हो सकता था कि हजारों मील से कुछ चंद लोग आए और हमारे ही देश में हम पर शासन करने के लिए हमारे देश के लोगों की फौज़,पुलिस और तंत्र तैयार कर सैंकड़ो वर्षो तक शासन करें । हमारे ही धर्म स्थलों पर उनकी सलामती और लंबे शासन की प्रार्थनाएं की जाए? सचमुच अकल्पनीय है ।
     खैर डच शासन भी हमारे देश में ज्यादा नहीं चला । उनके मुनाफे की लूट ने यूरोप से ही फ्रेंच  और अंग्रेजों को आकर्षित किया और हमारी गुरबत और बेबसी का फायदा उठाकर उन्होंने अढ़ाई शताब्दी तक राज किया  और आखिरकार वह सुनहरा दिन भी आया जब अगणित बलिदानों के बाद 15 अगस्त, 1947 को हम आज़ाद हुए ।
   अस्तु रॉटरडम बंदरगाह एक बहुत ही सुंदर स्थान है जहां हर समय बड़े- छोटे, नए- पुराने पानी के जहाज़ देखने को मिलते है । और सबसे अलग है वाटर टैक्सी की सवारी जो कुछ मिनटों में ही बहुत ही द्रुत गति से एक छोर से दूसरे छोर पर ले जायेगी ।
     इस शहर में नदियों पर पुल बहुत ही जानदार और शानदार ढंग से बनाए गए है । अगर फुरसत है तो कम से कम 5,000 पॉइंट्स तो ऐसे है जहां फोटो खिंचवाए जा सकते है । हर एक लम्हा कैद करने का मन करता है । 
     यहां के लोगों का कहना है कि पूरी दुनियां से हर ढंग से धन अर्जित किया यूरोप ने ,यूरोप से जर्मनी ने और वहां से सब माल ले गया अमेरिका । क्या गणित है और आज भी ऐसा ही क्रम जारी है।
Ram Mohan Rai,
Rotterdam, Netherlands.
03.06.2023

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