Suhana Safar-8

सुहाना सफर -8
     हम पिछले दो दिन से नीदरलैंड के समुद्र तट पर बसे रॉटरडम शहर में है । यह शहर एक दृष्टि से बेहद ऐतिहासिक भी है । पश्चिम की एक प्रमुख बंदरगाह के नाते इसने इतिहास के पन्नों को अपने में समेटा है वहीं अनेक त्रासदियों को भी झेला है और उसमे से एक है द्वितीय विश्व युद्ध की भयानक क्रूरता ।
    सन 1936 के आसपास जर्मनी में  हिटलर अपनी नाज़ी पार्टी के नेता के रूप में सत्ता पर काबिज़ हो गया था । नारे तो लोक आकर्षक समाजवादी ही थे परंतु अंदर से पूरा पाखंड और दोगलापन था । जर्मन आर्य नस्ल सर्वश्रेष्ठ है तथा यह तो है ही दुनियां पर राज करने के लिए उसकी इस खोखली बयानबाजी ने उस समय के जर्मनी में लाखों अंधभक्त पैदा कर दिए थे, जो देश विदेश में उसकी जन सभाओं में आगे की पंक्ति में खड़े हो कर हेल फ्यूरर- फ्यूर्र के नारे लगाते थे । सैनिक गणवेश में ऐसी जनसभाओं में उसकी उपस्थिति भक्तों में जोश भर देती थी और यह ही थी उसकी ताकत । उसका सहायक और युद्ध मंत्री गेयोबल्स अफवाहे फैलाने और विद्रोहियों का कतलों गारद करवाने में निपुण था ।
 अंधराष्ट्रवाद और नस्लीय उच्च भावना ने उसे विश्व विजेता का सपना दिया । उसके पहले शिकार बने अपने ही देश के लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले उदारपंथी ,समाजवादी , कम्युनिस्ट और उसके वैचारिक विरोधी । उसका शिकार बने उसी के देश के अल्पसंख्यक यहूदी जिनका समूल विनाश ही उसकी वरीयता थी ताकि निकृष्ट जातियों और नस्लों को खतम करके श्रेष्ठ जर्मन नस्ल का राज स्थापित किया जा सके। उसका मानना था कि जर्मन तो है ही विश्व विजेता बनने के लिए ।
   उस समय के एक जर्मन राष्ट्रवादी कवि नीलोमर ने अपनी पीड़ा का बखान अपनी कविता में ऐसे व्यक्त किया -
*जब नाज़ी कम्युनिस्टों के लिए आए 
मैं चुप रहा 
मैं कम्युनिस्ट नहीं था।
जब उन्होंने बंद किया सोशल डेमोक्रेट्स को 
मैं चुप रहा 
मैं सोशल डेमोक्रेट नहीं था।
जब वे आए ट्रेड यूनियनवालों के लिए 
मैं चुप रहा* ।
*मैं ट्रेड यूनियनवाला नहीं था।
जब वे आए यहूदियों के लिए मैं चुप रहा
मैं यहूदी नहीं था 
जब वे मेरे लिए आए, बोलने को कोई बचा नहीं था*।
   हिटलर ने अपने तमाम तरह के विरोधियों को सुधारने के नाम पर दंडित करने के लिए जगह जगह सामूहिक खुली जेलें जिन्हें कॉन्सेंट्रेशन कैंप कहा जाता है ,बनाई जिसमे बहुत ही निर्दयता से उन्हें तिल तिल कर मारा गया । इस भय से लाखों नाज़ी विरोधी लोग देश छोड़ कर दूसरे देशों में शरणार्थी बनकर रहने लगे । नीदरलैंड जर्मनी से सटे देश होने की वजह से ऐसे लोगों को पनाह देने वाला प्रमुख देश रहा जिसका खमियाज़ा भी उसे भुगतना पड़ा ।
    द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होते ही उसके निशाने पर पहला देश नीदरलैंड ही बना ,जो एक और तो हिटलर के विरोधियों को पनाह दे रहा था वहीं युद्ध में भी तटस्थ था । हिटलर इस देश की सामरिक भूमिका को भी समझता था और बंदरगाह के महत्व को भी । इसलिए उसने पहले इसे वार्निंग दी और फिर 10 मई, 1940 में लगातार चार दिन तक ताबड़तोड़ बम्ब डाले कि यह शहर रॉटरडम और इसकी बंदरगाह तहस नहस हो गई । लगभग 1800 लोग मारे गए और जानमाल की भारी हानि हुई । हिटलर ने चेतावनी दी कि या तो उसका  लड़ाई में साथ दो वरना उसके अन्य प्रमुख शहर एम्स्टर्डम, उतरेक आदि को भी तबाह कर दिया जाएगा । नीदरलैंड के फासिस्ट विरोधी वीर सैनिकों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी सीमाओं पर विरोध किया पर वह नाकाफी था और आखिरकार इस देश को हिटलर की फासिस्ट सेनाओं के सामने मजबूरन समर्पण करना पड़ा । हिटलर शाही ने यहां लगातार चार साल तक इन्हें अपना गुलाम बनाया और आखिरकार 1945 में मित्र राष्ट्रों की फौज़ ने इसे आज़ादी दिलवाई ।
   निरंकुश आततायी का अंत अवश्यंभावी है परंतु अपने समय में वह इतना नुकसान कर देता है जिसे पूरा करने में सदियां बीत जाती है ।
     रॉटरडम के चप्पे चप्पे पर इन न भुलाई जाने वाली निर्मम यादों के स्मृति चिन्ह दिखाई देते है । उन शहीदों के स्मारक और सम्मान पट्ट भी जहां लोग अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। मुख्य स्मारक के सामने तो दुनियां भर के सभी झंडो को लगाया गया है ताकि वैश्विक शांति ,बंधुत्व और सद्भावना को व्यक्त किया जा सके ।
बेशक आज नीदरलैंड और जर्मनी दोनों मित्र देश है । दोनों कुख्यात नाटो के भी सदस्य है । जर्मन सरकार और लोगों ने उनके शासक हिटलर और सैनिकों द्वारा किए गए अत्याचारों के प्रति भी खेद जताया है परंतु यहां के लोगों में अभी भी जर्मन सरकार और जनता के प्रति थोड़ी खटास है ।
    हम भारतीयों के लिए यह एक सबक भी है खासतौर पर इस लिए भी कि हमने और हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं ने फासिज्म और दुनियां भर में बढ़ता संकीर्णता का पुरजोर विरोध किया है ।
   हमें पंडित जवाहरलाल नेहरु के वे शब्द याद रखने होंगे *भारत में फासिस्म का दूसरा रूप ही सांप्रदायिक है* ।
   हमारा सदा नारा रहा है "जो हिटलर की चाल चलेगा ,वह हिटलर की मौत मरेगा"।
   रॉटरडम की इस धरती से दुनियां भर के सभी शांति सैनिकों को सलाम ।
    और इसी धरती से इस गीत को बुलंद आवाज में गायेंगे:-
 "हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब,
हम होंगे कामयाब, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन...

होगी शांति चारों ओर, होगी शांति चारों ओर
होगी शांति चारों ओर, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
होगी शांति चारों ओर एक दिन...

हम चलेंगे साथ-साथ
डाल हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन...

नहीं डर किसी का आज
नहीं डर किसी का आज, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
नहीं डर किसी का आज एक दिन"...
Ram Mohan Rai,
Rotterdam, Netherlands.
05.05.2023

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