Suhana Safar-24 ( Remembering Shri Gyanender Singh Saini Mama ji at Netherlands)
सुहाना सफर -24
घुमने वालों के लिए यह दुनियां उनकी मुठ्ठी में है । आज मन की गीत के समान ही तेज़ नेट की रफ्तार है । ऐसा ही मेरे साथ आजकल नीदरलैंड में हो रहा है । अनेक ऐसे लोग मिल रहे जिनसे इंडिया में मिलना अक्सर दुर्लभ था पर यहां ऐसा संयोग हुआ कि न केवल मिलना अपितु घनिष्ठता भी बढ़ी है । ऐसा ही एक मिलन मीनू- दीपक सैनी परिवार से है ।
मीनू के दादा श्री ज्ञानेंद्र सिंह सैनी एक सामाजिक कार्यकर्ता ही नही अपितु समाज सुधारक भी थे । उन्होंने दिल्ली और हरियाणा में पिछड़ी जातियों की एकता ,जागरूकता एवम शिक्षा का कार्य किया विशेष कर सैनी बिरादरी में । खुद उनके पिता श्री तेजराम भी रेवाड़ी के एक व्यवसायिक एवम प्रमुख समाज सेवी थे । मेरे पिता मास्टर सीता राम जी सैनी तथा माता सीता रानी जी सैनी उत्तर हरियाणा में शिक्षा और सुधार का काम करने में प्रमुख थे । इसलिए मेरे माता- पिता तथा श्री ज्ञानेंद्र सिंह जी सैनी के न केवल सामाजिक संबंध थे अपितु मजबूत पारिवारिक रिश्ते भी थे । लोक व्यवहार में वे मेरी मां के मुंह बोले भाई थे पर सगे से भी ज्यादा । महीने एक- दो बार तो उनका तथा उनकी पत्नी श्रीमती वेदवती जी का पानीपत आना होता ही था ,ऐसे ही हम बच्चे भी अपनी मां के साथ अपने मामा के घर रेवाड़ी जाते रहते थे । घर के बुज़ुर्ग नाना श्री तेजराम जी तथा नानी जी की खुशी इस मौके पर दुगनी हो जाती ।
यह वह समय था जब समाज उत्थान के काम अनेक लोग स्वेच्छा से तथा बिना किसी निहित स्वार्थ से करते थे । ऐसे में रोहतक से महाशय भरत सिंह, श्री मुरारी लाल आर्य, टाटेसर से महाशय लालमणि आर्य, रेवाड़ी से ही श्री श्रीराम, नारनौल से महाशय ताराचंद , खारी बावली,दिल्ली से ब्रह्मानंद आर्य, पहाड़ी धीरज दिल्ली से श्री जिया लाल सैनी, हिसार से पृथ्वी सिंह, गोहाना से किशन लाल, हांसी से हरीसिंह ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को आहूत किया हुआ था और ये सब लोग मिलकर काम करते । इनका मानना था कि सुधार का काम शिक्षा के प्रचार -प्रसार के बिना नहीं हो सकता इसलिए इन्हीं के प्रयासों से सैनी एजुकेशन सोसायटी , रोहतक एवम सैनी हाई स्कूल रेवाड़ी की स्थापना हुई । उस समय जगह- जगह सम्मेलन आयोजित होते जिनमें सैंकड़ो लोग इकट्ठे होते । हरियाणा से बाहर भी अलवर ,तिजारा और दूसरे हिस्सों में आयोजन होते जिसमे ये सभी इकठ्ठे होते । इसी दौरान दिल्ली- हरियाणा सैनी सभा का गठन हुआ ।
इन सब लोगों में मेरी मां ही अकेली महिला थी और उनका सहयोग करती थी मीनू की दादी वेदवती जी। ये दोनों हर कार्यक्रमों में पहुंचती । और अवसर ऐसा आया कि मेरी माता दिल्ली- हरियाणा सैनी सभा की प्रधान निर्वाचित हुई और श्री ज्ञानेंद्र सिंह जी मंत्री । बाद में वे ऑल इण्डिया सैनी सभा के भी मंत्री बने।
मामा जी, मेरे श्वसुर श्री गणेश लाल जी के भी घनिष्ठ सहयोगी और मित्र थे । जब माली साहब, राज्यसभा के सदस्य रहते हुए साउथ एवेन्यू ,दिल्ली में रहते थे तो ज्ञानेंद्र जी उनके पास भी रुकते और फिर दोनों पूरे देश में समाज जागरूकता के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए पहुंचते । मेरे स्वयं का श्री गणेश लाल जी की सुपुत्री से रिश्ता करवाने का एक परोपकारी काम उन्होंने ही किया था । ऐसे अनेक संबंध उन्होंने करवाए थे ।
उनकी वर्ष 1990 में मृत्यु के बाद हमारे और उनके परिवारों के संबंधों में कुछ शिथिलता आई थी जो स्वाभाविक भी थी । परंतु इसे अब मजबूत बनाने का काम उनके सुपुत्र श्री हरीश सैनी जी ने किया । वे खुद भी एक सामाजिक- राजनीतिक व्यक्ति है और पूरी तरह से अपने दिवंगत पिता के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। उनके मेरे से भी बहुत आत्मीय संबंध हैं । विवाह- शादियों में शामिल होकर अपनी खुशी का इज़हार करना उनके गुणों में शामिल है ।
सोशल मीडिया ने अनेक अच्छे - बुरे काम किए होंगे पर मेरे लिए तो यह अवसर प्रदान करता है । मैं अक्सर अपने ब्लॉग में अपने विचार ,यात्राएं और लेख लिख कर अपने मित्रों और गुरुजनों को भेजता रहता हूं । कुछ पढ़ते भी होंगे और कुछ को असुविधा भी रहती होगी । परंतु यह करते हुए मुझे हमेशा अपनी गुरु मां निर्मला दीदी का स्मरण हो जाता है कि वे अक्सर कहती थी कि विचार प्रवाह चलता रहना चाहिए दूसरा खुशी बांटने से बढ़ती है और दुःख बांटने से कम होता है । मेरी ऐसी ही एक पोस्ट श्री ज्ञानेंद्र सिंह जी के पौत्र कुलदीप सैनी ने पढ़ी जिससे उन्हें पता चला कि आजकल मैं एमस्टरडम में हूं । उन्होंने अपने पिता श्री हरीश सैनी को बताया जिसपर उनका फोन आया कि उनकी पुत्री मीनू भी अपने पति दीपक और बच्चों के साथ यहीं रह रही है ।
उन्होंने हमारा मीनू को और उनका हमे मोबाइल नंबर भी भेजे । हमारा संपर्क हुआ और दीपक ने हमें अपने घर डिनर पर बुलाया । हमारा मीनू ,दीपक और उनके दोनों बच्चों बेटे राघव और मिष्टी से बेशक पहली मुलाकात थी परंतु इस परिवार के व्यवहार ने हमे कायल कर दिया । दीपक लगभग दो वर्ष पूर्व ही नीदरलैंड आए हैं और एक कंपनी में अधिकारी है । वे खूब व्यवहारिक भी हैं और बढ़िया खाने - पीने के शौकीन भी ,जब की मीनू खाना बनाने में पारंगत है । उस रोज उसने खाने में इतने बेहतरीन व्यंजन बनाएं की हम उंगलियां चाटते ही रह गए । अब मेरी पत्नी कृष्णा कांता हर रोज ही मीनू से बात करती और वह भी उन्हें अपनी मां की तरह स्नेह देती । हमारे निमंत्रण पर आज वे हमारे घर आए मेरी पत्नी ने आज विशेषकर दाल- बाटी और मैंने कढ़ी चावल बनाए । बेशक मीनू के बनाए गए खाने से कोई मुकाबला नहीं था परंतु यह प्रेम घी से सने हुए थे ।
मीनू - दीपक परिवार से यहां भारत से आठ हजार किलोमीटर दूर हमारे रिश्तों को सुदृढ़ किया है । वास्तव में यह हमारे मामा जी श्री ज्ञानेन्द्र सिंह जी को ही नमन है जिसने इसे दोबारा शकल प्रदान की ।
आभार एवम शुभकामनाएं सैनी परिवार ।
Ram Mohan Rai,
Amsterdam, Netherlands.
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