Suhana Safar-29( Maastricht Netherlands) Maastricht, Netherlands)
सुहाना सफर -29
आज हमारा बेटा उत्कर्ष हमें नेदरलैंड के दक्षिण पूर्व में बेल्जियम सीमा से सटे हुए और जर्मनी के नजदीक , एमस्टर्डम से लगभग 217 किलोमीटर दूर (Maastricht) शहर में ट्रेन से इस शहर को दिखाने के लिए लाया । यह एक पुराना ऐतिहासिक शहर है तथा अपने मैं अनेक राष्ट्रीय पुरातत्व से जुड़ी इमारतों ,दर्शनीय स्थानों और खूबसूरत बागों से संजोए है जिसके लिए दर्शक दूर दराज के देशों से आते हैं। क्योंकि यह मास (Mass) नदी के किनारे पर बसा है इसीलिए ही इसका नाम Maaschrist है । इसमें अनेक बड़ी बड़ी युनिवर्सिटी है तथा सैंकड़ो विदेशी छात्र यहां शिक्षा प्राप्त करने आते हैं ।
हम घर से सुबह नौ बजे घर से ट्राम से चल कर एमस्टर्डम के सेंट्राल रेलवे स्टेशन पर पहुंचे । इतिफाक से वहां गाड़ी चलने वाली ही थी । ऐसा लग रहा था कि मानो हमारी इंतजार ही कर रही हो । हम सरपट गाड़ी में बैठे और सवा दो घंटे के सफर के बाद अपने गंतव्य पर पहुंच गए ।
शहर के बीचों बीच Maastricht के मुख्य चौक और मास नदी पर बने एक विशाल पुल Saint Servatious को पार करते हुए हम यहां के विशेष दर्शनीय स्थल Sint Pieter Fort और गुफा के पास पहुंचे ।
यह गुफा और क़िला का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है और एक दूसरे से जुड़ा हुआ है । एक प्रचलित कहानी यह भी है कि इस मास्क्रिस्ट गांव के लोग खेती करते थे । भारत के किसानों की तरह वे जमीन के मालिक तो थे पर पैदावार का उचित मूल्य नहीं मिलता जिस वजह से वे काफी दयनीय स्थिति में थे । उस समय भूपति धरती के नीचे तक का मालिक होता था । धरती के भीतर गहराई तक जो भी तत्व मिले उसका मालिक । इस गांव के लोगो ने भी अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए धरती के नीचे की खुदाई खड़िया (चॉक) ढूंढने के लिए शुरू की और उन्हें मिले बड़ी बड़ी शिलाएं ,पर ये उनके काम की तो थी नहीं और इनके ग्राहक थे बड़े सामंत जो किसानों से इन्हे मिट्टी के भाव लेकर काफी बढ़ी कीमतों में बेचते थे । फ्रेंच क्रांति के बाद वहां के हमलावर इस इलाके को जीतने के इरादे से यहां आए और उन्होंने इसे अपने हथियार आदि रखने का सबसे सुरक्षित स्थान पाया । वे समझते थे कि यदि इस गुफा को अपने कब्जे में ले लिया तो इलाका उनका । इस बात को Maastricht वासियों ने भी भांप लिया और अपनी सुरक्षा के लिए इसी गुफा पर एक किले का निर्माण किया जिसकी दीवारें ढाई से तीन फुट तक चौड़ी थी और इन पर तोपों से फेंके गोलों का भी कोई असर नहीं हो । उनमें इस तरह के आलेनुमा छेद थे कि यहां से दुश्मन पर हर एंगल से गोलीबारी की जा सकती थी । यहां के निवासी इस निपुणता भरी युद्ध नीति में सफल हुए और उन्होंने आक्रमणकारी फ्रांसीसियों को मात दी । दुश्मन ने भी इसी स्थान से निकट Saint Servatious Bridge पर कब्ज़ा कर इन्हें चुनौती दी । यहां के सैनिक लगभग 10- 12 दिन तक वीरतापूर्ण लड़े पर हार गए । विदेशी दुश्मनों ने इस प्रकार शहर पर कब्ज़ा कर इस क़िले और गुफा पर भी कब्ज़ा कर लिया । द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी यहां के लोगों ने फासिस्ट नाज़ी सेनाओं के मुकाबले के लिए यहीं मोर्चाबंदी की थी ।
इस गुफा को 20 हजार सुरंग बना कर खोदा गया जिसमें कुल आठ हजार ही काम आई । इसी गुफा की दीवारों पर इसी इलाके के अनेक चित्रकारों ने एक से एक चित्र बनाए है । अंदर जाकर टेंपरेचर 11 डिग्री तक ठंडा हो जाता है और घुप अंधेरे में हाथ से हाथ नही सूझता । हमारा गाइड अपने हाथ में लालटेन लेकर हर बात बड़े ह्यूमर से समझा रहा था । एक - डेढ़ घंटा कैसे बीत गया इसका पता ही नही चला ।
गुफा से निकल कर मैने गाइड से हाथ मिला कर उसका धन्यवाद करते हुए कहा कि हमारे देश भारत में भी लगभग 2700 गुफाएं है और अजंता, एलोरा और मेघालय की गुफाएं है और इनमें से कई तो दो हजार साल से भी ज्यादा पुरानी है। इस पर वह मुस्कराया और बोला बिलकुल सही है ,आपके यहां की गुफाएं ज्यादातर धार्मिक स्थल है पर यह उनसे अलग व्यवसायिक और बाद में रक्षात्मक कार्यों के लिए बनी है ।
आज का दिन बहुत ही अच्छा और रोमांच भरा रहा । मन में बार बार यह विचार कोंध रहा था कि हमारा देश कितना समृद्ध है कि वहां हजारों गुफाएं है । यहां एक गुफा को ही इन्होंने पर्यटक केंद्र बना दिया और हमने अपनी गुफाओं को धार्मिक स्थल।
इस पर्यटन के बाद हम इसके साथ ही लगते एक रेस्टोरेंट पर लंच के लिए गए और वहां बैठे ही थे कि देखा की कुछ लोग एक वृद्धा को सिर पर बर्थडे कैप लगाए और गले में माला डाले आ रहे है । मुझ से रहा नही गया और उनसे पूछ ही डाला कि क्या आज इन माता जी का जन्मदिन है। हां आज उनका 85 वां जन्मदिन है।ऐसा सुन कर हमने भी उस मां की लंबी उम्र की कामना करते हुए वैदिक मंत्र "तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् । पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रुणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ॥" का पाठ कर इसका अर्थ अंग्रेजी में बताया और फिर उनकी बेटी अथवा पोती ने इसका डच अनुवाद कर उन्हे बताया तो वे अत्यंत प्रसन्न हुई ।
इस तरह आज की यात्रा समाप्त कर हम वापिस ट्रेन से अपने घर एमेस्ट्रेडम वापिस आ गए ।
राम मोहन राय,
Maastricht, नीदरलैंड .
09.07.2023
Comments
Post a Comment