Suhana Safar-30 (Anne frank Museum, Amsterdam, Netherlands)
*सुहाना सफर*-30
हम आज एक ऐसे म्यूजियम को देखने के लिए घर से निकले जिसकी टिकट लेने के लिए एक महीने पहले कोशिश करनी होती है । हमारे बेटे उत्कर्ष ने हमारी बुकिंग करवा दी थी जो हमे साढ़े पांच बजे के लिए मिली थी । हमे हिदायत थी कि हम सवा पांच बजे तक वहां पहुंच जाए ताकि आसानी से प्रवेश कर ले । यहां कि एक तहज़ीब है कि किसी भी दर्शनीय स्थल को देखने के लिए भी अपॉइंटमेंट लेनी पड़ती है ताकि अव्यवस्था न हो ।
यह संग्रहालय वेस्टरस्त्रात ट्राम स्टेशन से कुल दो मिनट की दूरी पर है जहां हमारे घर से पहुंचने में कुल 35 मिनट लगे । यहां एक बार में सिर्फ 50 लोगों की अपॉइंटमेंट थी । हमने अपनी टिकट चेक करवाई और फिर हम इसमें दाखिल हुए । यह कोई बहुत बड़ा स्थान नहीं था । मुश्किल से 200 वर्गगज में बनी एक चार मंजिल इमारत। बेशक यह जगह छोटी थी परंतु इसका पूरी दुनियां में नाम इतना बड़ा है कि इस म्यूजियम की नायिका को इसके लेखों, कार्यों और समझ की वजह से हर जगह के स्कूल , कॉलेज और विश्वविद्यालय में पढ़ा जाता है । संसार की कोई भी ऐसी भाषा नही जहां उनकी किताब का अनुवाद नही हुआ हो और इस शहर में आने वाला कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जो यहां नही आता हो । उस नायिका ने मात्र अपनी चौदह साल की अवस्था में ही इतना बड़ा नाम कमाया जिसे पाने के लिए अनेक जन्म भी नाकाफी हैं। वह नाज़ी जर्मनी की हिटलर शाही से भी लड़ी और फासिज्म के खिलाफ़ एक योद्धा बन कर उभरी । आज हम उस वीर बालिका *एन फ्रैंक* के विचारों को समझनें तथा उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए यहां उपस्थित हैं।
ऐन फ्रैंक को जानने के लिए हमें उनके इस लघु जीवन वृतांत को पढ़ना होगा ।
"ऐन फ्रैंक (Anne Frank) का जन्म 12 जून सन 1929 को जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में हुआ था। वह एक यहूदी थी। जब वह 4 साल की थी तभी जर्मनी पर नाजियों का नियंत्रण हो गया था। इसी कारण उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा नीदरलैंड के एम्सटर्डम में और उसके नजदीक ही बिताया। और जिनकी मृत्यु मात्र 15 वर्ष की आयु में 'बैर्गेन बेलसेन के एक यातना शिविर' में टायफस फीवर, भूख, कमजोरी और यातना के कारण हुई। जो पूरी दुनिया को मौत के बाद भी जीना सिखा गई। वह एक डायरी लेखिका (Diarist) और साधारण लेख-निबंध के लिए प्रारम्भ से ही प्रतिबद्ध थीं ।
ऐन जिस डायरी में लिखती थीं। वह उनकी सबसे अच्छी दोस्त थी। दोस्त इसलिए भी थी क्योंकि जिन परस्थितियों में वो थीं, वहां ज्यादा लोग नहीं थे; जिन्हें वो दोस्त बना सके जिनसे वो घुल- मिल सके, कुछ लोगो के अलावा। इसी कारण उन्होंने इस डायरी को अपनी सबसे अच्छी सहेली बना लिया और उस डायरी को वह किटी बुलाती थी। उससे बातें करती थीं और इन्होने डायरी में अपने जीवन में घटने वाली हर एक घटना को उतारा है। जिसमे ये तो बिलकुल भी नहीं लगता की यह लेख एक 13 साल की लड़की ने लिखा है। जिसमे उसने गहरे जज्बातों और विचारों को बड़ी सटीकता से उतारा (लिखा है)।
उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था -
"मैं परेशानियों के बारे में कभी नहीं सोचती, बल्कि उन अच्छे पलों को याद करती हूँ जो अब भी बाकी हैं।"
"मैं उन औरतों जैसा जीवन जीने के बारे में सोच भी नहीं सकती, जो अपना काम करती रह जाती हैं । और भुला दी जाती हैं। मैं इस तरह का जीवन नहीं जीना चाहती, जैसा की ज्यादातर लोग जीते हैं। मैं एक ऐसा जीवन जीना चाहती हूँ. जिससे दूसरे लोगों को फायदा हो; उनको भी जिनसे मैं नहीं मिली। मैं मरने के बाद भी जीना चाहती हूँ।"
*रोचक तथ्य* ( Facts about Anne Frank)
1. ऐन फ्रैंक एक जर्नलिस्ट और और मशहूर लेखक बनना चाहती थीं। और अपनी ज़िन्दगी में कुछ बड़ा करना चाहती थीं।
2. नाजियों के डर से 6 जुलाई, 1942 को फ्रैंक फॅमिली ने एम्सटर्डम में छिपने का फैसला किया, और वो एक बिल्डिंग के अंदर सीक्रेट अपार्टमेंट में छिप गये। वो अपार्टमेंट उस कंपनी का 'वेयर-हाउस' था जहाँ ऐन के पिता कार्य करते थे। उसी अपार्टमेंट को बाद में 'सीक्रेट एनेक्स' (seccret annexe) कहा गया। जिसके ठीक 24 दिन पहले ही ऐन 13 साल की हुई थी। ऐन को जन्मदिन के मौके पर उनके पिता ने उन्हें कई गिफ्ट दिए जिसमे लाल और सफ़ेद चोखाने वाली वो डायरी भी थी। जिसकी आज हम चर्चा कर रहे हैं।
3. इस 'सीक्रेट एनेक्स' में ऐन और उसकी फॅमिली ने 2 साल 35 दिन बिताये। इसी दौरान ऐन ने अपनी डायरी को लिखा था।
5. 4 अगस्त 1944 को नाजियों ने 'सीक्रेट एनेक्स' मे छुपी फ्रैंक फॅमिली को ढूंढ लिया । नाजियों ने उन्हें एम्सटर्डम से आस्विज यातना शिविर (Auschwitz Concentration Camp) में भेज दिया। आस्विज शहर पहुंचकर पुरुषों को तो महिला और बच्चो से बिलकुल ही अलग कर दिया जाता था। इसी कारण ऐन के पिता ओट्टो फ्रैंक जल्दी ही अपनी फॅमिली से अलग हो गये। लेकिन ऐन, उनकी बहन और उनकी माँ आस्विज नजरबंदी शिविर में एक साथ ही रहे। थोड़े दिनों के बाद उनकी बहन मर्गोत फ्रैंक (Margot frank) और उनको अपनी माँ से भी अलग कर दिया गया। इन बहनों को 'बैर्गेन बेलसेन कॉन्सनट्रेशन कैंप' (Bergen Belsen Concentration Camp) में भेज दिया गया। जहाँ दोनों बहनों की दर्दनाक मृत्यु हुई।
6. वह सभी लोग जो 'सीक्रेट एनेक्स' में छुपे थे। उनमे से ऐन के पिता ओट्टो फ्रैंक ही अकेले ऐसे व्यक्ति थे जो यातना शिविर (consentraton camp) से जीवित वापिस आये। वापिस आने के बाद उनको जानकारी मिली कि उनकी दोनों बेटियां और पत्नी अभी जीवित नहीं हैं।
7. मीप गीस (Miep Gies) जो 'फ्रैंक फॅमिली' की काफी करीबी दोस्त थी । जो यहूदी नहीं थी । जब 'फ्रैंक फॅमिली' सीक्रेट एनेक्स में रह रही थी, उस दौरान मीप गीस अपनी जान कोखिम में डालकर फ्रैंक फॅमिली के लिए जरूरी चीजें खाना लेकर आती थी। जब नाजिओं ने 'फ्रैंक फॅमिली' को पकड़ लिया। उसके बाद मीप गीस 'सीक्रेट एनेक्स' में आई और उसने पड़ा वहां पड़ा सारा सामान को रख लिया; जिसमे ऐन की डायरी भी थी। जब ऐन के पिता यातना शिविर से वापिस लोटे, तब मीप गीस ने ऐन की डायरी उन्हें दे दी। ओट्टो फ्रैंक के दोस्तों ने उनसे कहा की उन्हें अपनी बेटी की डायरी पब्लिश करनी चाहिए। उन्होंने ऐसा ही किया।
8. जब तक ऐन की डायरी मीप गीस के पास रही। तब तक मीप गीस ने उस डायरी का एक शब्द तक नहीं पढ़ा था। डायरी पब्लिश होने के बाद ही मीप गीस ने उसे पढ़ा। बाद में मीप गीस ने बताया कि अगर मैंने वो डायरी ओट्टो फ्रैंक को देने से पहले पढ़ ली होती । तो मैंने उस डायरी को जला दिया होता क्योंकि ऐन ने उस डायरी में मेरा, मेरे पति का और उन सभी लोगो का जिक्र किया था, जिन्होंने सीक्रेट एनेक्स में छुपे सभी यहूदियों की मदद की थी। उन्होंने ये भी बताया इस कारण उन्हें नाजियों द्वारा मृत्यु दंड भी दिया जा सकता था।
9. यह भी माना जाता है कि यह डायरी बाइबिल (Bible) के बाद दूसरी सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली बुक है। ये दुनिया की सबसे प्रशिद्ध डायरी है। इसे 60 से भी अधिक भाषाओं में ट्रांसलेट किया जा चुका है।"
इस कहानी को हुबहू- हू इस म्यूजियम में बहुत ही सजीव चित्रों के साथ उतारा गया है । यह पांच मंजिल में संग्रहित है और इन सभी में ऐन फ्रैंक और उसके परिवार की त्रासदी को दर्शाया गया है । जगह छोटी है, रास्ते सकड़े है पर संदेश महान । प्रत्येक मंजिल पर ऑडियो और वीडियो दोनों तरह से हर बात को बताया गया है ।
नाज़ी हिटलर की नृशंशता जो वह अपनी सर्वोत्तम आर्य नस्ल के नाम पर अन्य गैर जर्मन और उसमे भी विशेषकर यहूदियों को खतम करना चाहता था ,उसका घिनौना चेहरा इस स्थान पर प्रदर्शित है । ऐसे क्या कारण थे जिस वजह से इस 14 वर्षीय लड़की ने उसके चेहरे का नकाब उतार दिया? नस्ली और जातीय भेदभाव अभी भी दुनियां में खत्म नहीं हुए है जिसके खिलाफ हर देश और हर समाज में जंग जारी है।
विश्व विजेता चाहे वह किसी भी रूप में हो वह नफरत ,युद्ध और तबाही का ही द्योतक है । यूरोप इस विनाश का सबसे बड़ा गवाह बना । नाज़ी फासिज्म ने साठ लाख यहूदियों को अपनी खूनी प्यास का शिकार बनाया । करोड़ो लोग मारे गए । अकेले सोवियत यूनियन के दो करोड़ लोगों ने इस कहर से पूरे विश्व को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी । हिरोशिमा - नागासाकी में अमेरिकी बम वर्षा ने पीढ़ियों को ही अपंग और नपुंसक बना दिया । हिटलर और उसकी सोच अंध राष्ट्रवाद को जन्म देती है और यह विचार ही मानवता का बहुत बड़ा दुश्मन है । क्या यह जर्मनी में ही हुआ और खत्म हो गया ? जी नहीं ,यह किसी एक देश का उत्पादन न होकर एक विचार है जो कहीं भी हो सकता है जहां भी इसे नफरत की ज़मीन मिले ।
म्यूजियम दर्शन के बाद बाहर निकलने से पहले एक बहुत ही दिलचस्प कार्टून फिल्म देखने को मिली जिसका संदेश था कि लोकतंत्र को भीडतंत्र बनने से रोकने के लिए हमें चुप न रह कर मुट्ठी बांध कर जोरदार आवाज उठानी होगी चूंकि लोकतंत्र हमारे लिए है और हमारा जीवित रहने का आभास ही लोकतंत्र ।
Ram Mohan Rai,
Anne frank Museum, Amsterdam, Netherlands.
Comments
Post a Comment