Suhana Safar-31 (My Germany Visit in context of Aaghaz e Dosti Yatra)
(संदर्भ आगाज़ ए दोस्ती यात्रा )
आज हम एक बार फिर जर्मनी में आए हैं। इससे पहले सन 1987 में इसकी राजधानी बर्लिन, उसके साथ लगते ड्रेसडेन और कार्ल मार्क्स स्टाड में एक अमन - दोस्ती प्रतिनिधिमंडल में आए थे । 36 साल पहले का वह दृश्य आज भी मेरे मानस पर तरोताजा है । हां पहले यह देश दो हिस्सों में था । एक - जर्मन जनवादी गणतंत्र (GDR) जिसकी राजधानी बर्लिन थी और दूसरा - संघीय जर्मन गणतंत्र (FGR) जिसकी राजधानी बॉन थी ।
हमने उस समय की अपनी यात्रा में वर्तमान जर्मनी के पूर्वी हिस्से का दौरा किया । पश्चिम हिस्से में नही आ पाए थे क्योंकि दोनो देशों को बांटती बीच में एक मजबूत बहुत ऊंची दीवार थी । दोनों देशों के लोग इस अप्राकृतिक विभाजन के शिकार थे । रिश्तेदार और परिवार बंट गए थे । कुछ इधर और कुछ उधर । हमने उस दीवार को देखा था जिसे बर्लिन वॉल के नाम से जाना जाता था । परिवारों के बंटने का दर्द कोई उनसे पूछे । लगता था कि इस विडम्बना अंत हीन होगी ।
यह मंजर ऐसा ही था जैसे हमारे देश में सन 1947 में भारत विभाजन के नाम पर हुआ । धर्म के नाम पर पाकिस्तान बना और एक नवोदय धर्म समभाव का भारत । धर्म जोड़ने की कड़ी नही हो सकता था और फिर वह ही पाकिस्तान भी भाषा के आधार पर बांग्लादेश के रूप में अलग हुआ । ऐसा ही यहां भी हुआ ।
हिटलर ने जर्मन अंधराष्ट्रवाद और आर्यन नस्ल के नाम पर दुनियां को विजय करने के लिए अपने जहरीले भाषणों और व्यवहार से पहले अपने ही लोगों में एक दूसरे के प्रति घृणा फैलाई और इसके शिकार हुए करोड़ो निरपराध लोग और फिर दूसरे विश्व युद्ध का कारण बना । पर पाया क्या अपने ही देश का विभाजन और खुद भी अपनी करतूतों से इतना घृणास्पद हो गया कि एक अंधेरे तहखाने में जाकर अपनी प्रेमिका के साथ आत्महत्या कर ली। आज उसी के देश में हिटलर , नाज़ी और फ्यूरर शब्द का नाम लेना भी दंडनीय अपराध है ।
हम भारतीयों को जर्मनी और यहां के अनुभवों से सबक लेने की जरूरत है । ये देश जो आपस में पहले और दूसरे विश्व युद्ध के सबब बने आज बिना किसी बॉर्डर और एक ही शेंगन वीज़ा के एक दूसरे देश आ जा सकते है । वह दीवार जो एक देश को दो हिस्सो मे बांटती थी अब वह टूट चुकी है । ईसाई और इस्लाम के नाम पर लड़ने वाले यूरोप के सभी देश तुर्किए सहित एक हो चुके है । इसका मतलब यह नहीं कि ये अखंड हो गए है ,जैसा कि हम भारतीय संदर्भों में कहते है । देश सब अलग अलग है पर एक शांति प्रिय पड़ोसी की तरह रह रहे है जहां भाईचारा भी है और दोस्ती भी ।
हमारे देश में भी ऐसे ही प्रयास आगाज़ ए दोस्ती के साथी कर रहे है । बेशक प्रयास छोटे है परंतु काम बड़ा है ।
हम आज फिर से उस जर्मनी में प्रवेश कर रहे है । मुझे अपने तमाम पुराने साथी आर के जैन, विनोद भाटिया , भारती पराशर, वी के तिवारी, विनय दूबे, मोहम्मद जैदी , संदीप जैन , गौरी शंकर वर्मा आदि की याद आ रही है जो हमारे साथ विगत यात्रा में थे । उनमें से कुछ चले गए और हमारे जैसे लोग अभी भी जद्दोजहद में लगे है ।
पर यह निश्चित है की यहां भी ये कंटीली तार हटेंगी और हम भी एक दूसरे के अच्छे पड़ोसी, दोस्त और भाई साबित होंगे ।
*We shall overcome someday*.
Ram Mohan Rai,
Cologne, Germany.
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