Suhana Safar-34 (Saint Petrus Cathedral, Cologne, Germany)
कोलोन पहुंचते ही पहला काम था यहां की ही नही अपितु पूरे विश्व में सबसे पुरानी कैथेड्रल में से एक सैंट पेट्रस कैथेड्रल की तीर्थयात्रा करना । गोथिक स्टाइल से बनी यह ऊंची इमारत उत्तरी यूरोप की सबसे बड़ी कैथेड्रल है । अब से पहले मैं भी ईसाई धर्म से जुड़े हर प्रार्थना स्थल को चर्च अथवा गिरजाघर ही कहता रहा हूं पर यहां आकर चर्च ,चैपल और कैथेड्रल में अंतर को समझ पाया । हर वह जगह जहां नियमित प्रार्थना कार्यक्रम होते है वह चर्च है , जहां प्रार्थना के साथ - साथ अन्य सार्वजनिक समारोह भी हो सके वह 💒 चैपल है और जो आर्चबिशप का स्थान हो वह कैथेड्रल है । अत: हम आज हम आर्चबिशप के स्थान पर है । यह दुनियां भर में पहले स्थान से सरकते सरकते तीसरी बड़ी ऊंचाई वाली इमारत है । इसका निर्माण चौथी शताब्दी में हुआ था तत्पश्चात सन 1248 में इसके पुराने निर्माण को नष्ट करके नया बनाया गया । सन 1332 में इसे फ्रेंच कला के अनुरूप विकसित किया गया ।
सन 1790 में फ्रेंच क्रांति के समय यह स्थान अन्य उपयोग में लाया गया । सन 1880 में वॉशिंगटन में बनी कैथेड्रल की ऊंचाई के बाद यह दूसरे नंबर पर आ गई और फिर जर्मनी में ही Ulm में बनी बड़ी इमारत बन जाने के बाद तीसरे स्थान पर आई और अब विश्व भर में सबसे ऊंची कैथेड्रल में तीसरे स्थान पर है ।
इसकी विशेषता यह भी है कि यहां दो ऊंचे गुम्बद साथ साथ स्थित है और इसमें से एक पर चढ़ने के लिए 515 फीट ऊंचे यानी 157 मीटर ,कुल 650 सीढियां चढ़ कर पहुंचना होगा और यह सीढियां भी बिलकुल सीधी चढ़ती है । मेरे बेटे का कहना था कि पापा यदि इस पूरे शहर का नजारा देखना है ऊपर जाएं । यहां लिफ्ट भी नही है । यह एक चुनौती भी थी जो स्वीकार की गई और आधे घंटे में लगभग 40 मंज़िल पैदल चल कर सबसे ऊपर पहुंच ही गए । यह एक इको भी थी कि इस उम्र में कहीं हांफने तो नही लगूंगा । पर कामयाबी मिली । जितनी खुशी बिचेंद्री पाल को हिमालय पर्वत पर चढ़ कर हुई होगी ,आज उतना ही खुश मैं था ।
40 मंज़िल पैदल चलकर गए तो वहां अजब ही नजारा था । एक तरफ राइन नदी पर बना पुल दिख रहा था जिसके पास ही 🚢 बोट आ जा रही थीं। दूसरी तरफ मेट्रो 🚊, ट्रेन 🚂, और 🚃 ट्राम का एक दूसरे की पहली - दूसरी मंज़िल पर बने ट्रैक थे । तीसरी तरफ मुख्य बाज़ार था जहां चौंक में अलग अलग ग्रुप में कुछ लोग अपनी अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे थे ।
हम ऊपर चढ़ तो आए थे पर नीचे उतरना भी उतना ही साहसिक काम था । ये सीढियां मुश्किल से तीन फीट लंबी और डेढ़ फीट चौड़ी पैमाईश की थी । इसी रास्ते से लोगों ने चढ़ना भी था और उतरना भी था ,जो दोनों तरफ से जोख़िम भरा था । हम अब रब - रब करते हुए नीचे उतर रहे थे । मैं सोच रहा था कि इतनी ऊंचाई पर आकर किसी को कोई दिक्कत हो जाए तो उसे उतारा कैसे जाएगा ? खैर कुछ सीढियां नीचे उतर कर एक दरवाज़े में घुस कर हम उस जगह पहुंचे जहां बड़े - बड़े घंटे लगे थे और हर पंद्रह मिनट के होने पर जोर जोर से बजते थे । कारनामा तो यह भी था कि ये चढ़े कैसे होंगे बिना किसी क्रेन अथवा लिफ्ट के ।
आखिरकार हम नीचे उतरे और फिर चले कैथेड्रल के ख़ज़ाने को देखने जहां सन 1182- 1220 तक के आर्कबिशिप की गोल्डन जरी की पोशाकें, छत्र, स्वर्ण मुकुट , कुर्सी ,जेवरात और दूसरी अमूल्य वस्तुएं रखी हैं । जिन्हें थ्री 👑 किंग की वस्तुएं भी कही जाती है जिसे शिशु जीसस को समर्पित की गई थी ।
इस खजाने के साथ ही चर्च है जहां एक साथ हजारों श्रद्धालुओं के बैठने के लिए बेंच डेस्क लगे है। सामने मंच हैं जहां से आर्चबिशप विराजमान होकर अपना संदेश और आशीर्वाद प्रदान करते थे । इस हॉल की प्रत्येक दीवार पर बाइबल की कथाओं पर आधारित मूर्तियां लगी थीं। शीशों पर लगी रंग बिरंगी चित्रकारी का तो कहना ही क्या था ? ऐसा मनोरम दृश्य शायद जिंदगी में कभी ही देखा हो । इस स्थान से बाहर निकल कर हम राइन नदी के तट पर आए और खूब पैदल चले । सामने ही एक म्यूजियम था जिसके बारे में बताया जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के समय इस स्थान पर ही जमीन में गहरी गुफाएं बनाई गईं थी कि जब भी बंब वर्षा हो तो शहर के सभी लोग यहां आकर पनाह ले और अपनी जान बचा सके। इस युद्ध में भी इस कैथेड्रल का भी काफी नुकसान हुआ पर बाद में इसे ठीक कर लिया गया ।
दिन ढलने लगा था और बारिश भी होने लगी थी । पेट में चूहे भी कूद रहे थे पर विदेशों में हम शाकाहारी भोजन खाने वाले ही परेशान रहते है और आखिरकार एक इटालियन रेस्त्रां मिल ही गया जहां खाना खा कर हम यहां से कुल 35 किलोमीटर दूर बोन की तरफ रवाना हो गए ।
बेशक आज थक गए थे पर खुशी भी थी कि चलो 650 पैड़ी चढ़ कर हम गुम्बद के शिखर पर पहुंचे ।
Ram Mohan Rai,
Cologne, Germany.
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