Suhana Safar-35 (Bonn- a City of musician -plainist Ladweg Van Beethoven)
कोलोन से 🚗 कार में बैठ कर 25किलोमीटर दूर हम जर्मनी की पूर्व राजधानी बॉन में पहुंचे जहां पहले से ही एक होटल में कमरे बुक करवाए हुए थे । गाड़ी पार्किंग में खड़ी की, सामान रखा ,हाथ - मूंह धोया और निकल पड़े बॉन से मिलने । वैसे यहां जलवायु इतना साफ है कि धूल गर्द नही होती इसलिए बार बार पानी के इस्तेमाल की जरूरत नही पड़ती और नीदरलैंड तो इस मामले में और भी ज्यादा साफ है । वहां वायु इंडेक्स (AQI) 5 से 10 तक ही रहता है ।
हमने होटल के नजदीक से ही 🚇 मेट्रो पकड़ी और पहुंच गए बॉन एचएफसी स्टेशन जो बॉन सेंट्रल के नजदीक ही था ।
बॉन एक ऐतिहासिक शहर है जिसकी स्थापना लगभग 2400 वर्ष हुई थी । यह राइन नदी के किनारे बसा हुआ है और इसकी कुल आबादी तीन लाख के करीब है ।
जैसे की हम सभी जानते है कि जर्मनी की राजधानी बर्लिन है परंतु द्वितीय विश्व युद्ध में यह देश मित्र देशों की सेनाओं से पराजित हो गया था । वर्तमान बॉन शहर समेत जर्मनी का दो तिहाई हिस्सा ब्रिटेन के हिस्से में और बकाया पूर्वी हिस्सा सोवियत संघ के कब्जे में आया था । बर्लिन क्योंकि पूर्वी हिस्से में था इसलिए वह पूर्वी जर्मनी (GDR) की राजधानी बना और पश्चिम जर्मनी (FRG) की राजधानी बॉन को बनाया गया ।
यह शहर फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी (पश्चिम जर्मनी)की राजधानी सन 1949 से 1990 तक दोनों जर्मनी के विलय तक रही और फिर इसे बर्लिन में ही बना दिया गया । परंतु सरकारी ऑफिस एक तिहाई यहीं रहे । अभी भी 18,000 में से 8,000 कर्मचारी अभी भी यहीं है । रक्षा तथा कृषि मंत्रालय अभी भी बॉन में ही हैं । राष्ट्रपति / चांसलर का एक कार्यालय तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के बीस विभागों के मुख्यालय इसी स्थान पर है । यू एन ओ का Framework convention of climate change, convention to combat desertification तथा वॉलंटियर प्रोग्राम के सचिवालय इसी शहर में है।
सन 1818 में स्थापित विश्व विख्यात युनिवर्सिटी ऑफ बॉन यहीं है तथा जिसे गौरव है कि यहां प्रसिद्ध दार्शनिक Nietzsche , कार्ल मार्क्स तथा एडेनम जैसे महान विभूतियों ने शिक्षा प्राप्त की है। इस शहर में प्रसिद्ध पश्चिमी संगीत के जन्मदाता लडविग वैन बीथोवेन का जन्म सन 1770 में हुआ था । जिनका एक स्मारक यहां बना हुआ है । यहां के लोग समझते है कि उनकी पहचान इसी संगीतज्ञ से है और यदि कोई यहां आकर उनके स्थान पर जाकर नमन नही करता तो उसकी यहां की यात्रा ही पूरी नहीं है । इसलिए हमने यहां आकर उनके स्मारक पर जाना अपना फ़र्ज़ समझा ।
बॉन सेंट्रल पहुंच कर पैदल चल कर हम उनके स्मारक पहुंचे जहां लगभग 6 मीटर एक विशाल प्रतिमा उनकी लगी है । उसके साथ ही एक Bonn लिखा बहुत ही सुंदर साइन बोर्ड लगा है जिसके आगे पीछे खड़े होकर लोग फोटो खिंचवा रहे थे । हम भी इससे नही चूके और काफी फोटो खिंचवाई।
इसी स्मारक के सामने ही टाउन हॉल है और यह वही स्थान है जहां दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने आकर जर्मनी की अपनी सरकार की घोषणा की । इस पूरे चौंक की अपनी ही शान शौकत थी । बीच में एक स्तूप पर फुव्वारे चल रहे थे और इसके सामने ही कई रेस्त्रां बने है जहां लोग खाना खा रहे थे । हमारी इच्छा थी कि जब हम जर्मनी में आए हैं तो यहीं के किसी रेस्टोरेंट पर ही यहीं का ट्रेडिशनल खाना खाए और आखिरकार कुछ दूर जाकर एक ऐसा रेस्त्रां मिला जो जर्मन शाकाहारी भोजन मिलता था । एक मुद्दत के बाद हमें यहां चावल, राजमा, मटर ,पनीर और दही मिली ,जबकि हम ऐसा खाना हम घर में ही बनाते है । मेरा मानना है कि जहां आए हैं वहीं की धरती से उपज ही खाना चाहिए। फिर यहां आटा, दाल, चावल ,सभी तरह की सब्ज़ी और दूध उत्पाद आसानी से मिलते है । बेशक यहां के लोग मांसाहारी है पर किसी भी तरह से गैर मांसाहारियों को भी हर तरह का कच्चा खाना मिलता है ।
टाउन हॉल से निकल कर बाज़ार में घूमते हुए हम इस शहर की मशहूर नदी राइम के किनारे पर पहुंचे । बहुत ही मनोरम और सुहाना मौसम था । हल्की हल्की बूंदा बांदी भी हो रही थी वहीं इसके आकर्षण के सामने सभी फीका था । नदी की एक तरफ एक कैसल (पुराना महल) था जिसकी शोभा देखते ही बनती थी ।
रात के ग्यारह बजे थे । वैसे देर रात में भी सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रहती पर नींद आने लगी थी। हमने होटल पहुंचना ही मुनासिब समझा और वापिसी की मेट्रो पकड़ी और कमरे पर आ गए । बेशक खूब थकावट थी पर संतोष भी था कि आज मन भर के खाया और खूब घूमें।
Ram Mohan Rai,
Bonn, Germany.
15.07.2023
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