Suhana Safar-36(Schloss Drachenburg, Bonn-Germany)
सुहाना सफर -36
Baron Stephen Van Sartar के बाद यह संपत्ति उसके भतीजे Jakole Hubert Biesenbuch के पास आई जिसने इसे पर्यटक हॉलीडे पार्क के तौर पर चलाना चाहा । बाद में सन 1930 में यह स्थान का इस्तेमाल कैथोलिक बॉयज ब्रांडिंग स्कूल के तौर पर हुआ और जर्मनी में नाज़ी हुकूमत के दौरान यह नाज़ी एलिट स्कूल ( वैचारिक रूप से युवाओं को प्रशिक्षित करने वाला संस्थान) बना और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह रेलवे वर्कर्स का प्रशिक्षण केंद्र और अंत में सन 1970 में एक अन्य धनाढ्य पॉल स्पिनट ने खरीद लिया जो अब N RW foundation बना कर इसकी व्यवस्था कर रहे है । इसे देखने का आकर्षण बॉन आने वाले हर एक यात्री को होता है ।
और लो हम भी पहुंच गए एक आम आदमी के ख़ास महल को देखने के लिए । गाड़ी पहाड़ी के नीचे पार्किंग में खड़ी की और दो किलोमीटर घुमावदार रास्ते पर पैदल चल कर पहुंच गए इस महल के द्वार पर । वैसे यहां एक मिनी ट्रेन भी आती है परंतु हमने पैदल चल कर आना ही मुनासिब समझा।
विजिटर टिकट लिया और इसके परिसर में दाखिल हो गए । यहां पहुंचते ही इसकी भव्यता को देख कर आंखे खुली की खुली रह गई ।
देखने में ऐसा लगा मानो बहुत पुरानी इमारत है जबकि इसका निर्माण सन 1882 में हुआ है । इसकी संपूर्ण वास्तुकारी यद्यपि मध्य कालीन लगती है परंतु है पूर्ण आधुनिक । नीचे से ऊपर देखने में ही इसके संपूर्ण ऐश्वर्य के दर्शन होते है। कुछ ऊपर चढ़ने पर महल के पश्चिम की ओर एक बगीचा है जिसके बिलकुल बीच में बड़े ऊंचे खंबे पर फुव्वारे छूट रहे है । इसी बगीचे के प्रवेश पर ही दो सुनहरे हिरण की मूर्तियां स्थापित है और निकट ही सीजर और चार्ल मेगन के बुत लगे है जिनका लगना अमीर घरों की निशानी माना जाता है । यहां से नीचे देखने राइम नदी और उसके पार Sarter के जन्म स्थान का शहर बॉन का दीदार होता है। जहां Baron Stephen Van Sartar वर्ष में पैदा हुआ था । इसे देख कर हम महल में दाखिल हुए जिसकी शुरुआत ही स्वागत कक्ष से होती है । यहां की दीवारों पर बड़े बड़े चित्र (Murals) बने है। विशेषकर कला के देवता अपोलो का । अखरोट की लकड़ी से बनी खिड़कियां जो रंगबिरंगे पर्दो से ढकी है ,खूब आकर्षित करती है । दूसरे विश्व युद्ध के समय में ये नष्ट प्राय: हो गई थी परंतु अब इसे पुन: ठीक कर दिया है । इससे लगता ही भोजन कक्ष (Dining Room) है जिसकी दीवारों में लगे दरवाजों का अंदाज़ा ही नही होता । सिर्फ दाईं और बाईं तरफ लगे हैंडल से ही इनका पता चलता है । ग्राउंड फ्लोर पर ही पढ़ाई तथा धूम्रपान कक्ष है और यह जुड़ा है आर्ट गैलरी से ,जहां दीवारों पर चित्रकारी, म्यूनिख की तरह शीशों पर रंग बिरंगी कलाकारी और इनके साथ कविताओं को चित्रित किया है, जो मकान मालिक की बौद्धिक समृद्धि को प्रदर्शित करता है जो तब का स्टेटस सिंबल रहा है ।
एक अलग से कमरा अय्याशी के लिए आरक्षित है जिसमे सुर, सुरा 🍷और सुंदरी के चित्र दीवारों पर उकेरे है । सन 1930 में इसमें कैथोलिक बॉयज स्कूल के चलते इन्हें हटा कर सफेद पेंट पोत कर छिपा दिया गया था ,पर अब वैज्ञानिक पद्धति से हटा कर इसके असल स्वरूप को दिखाया गया है ।
शिकार एवम बिलियर्ड खेल को एक कमरे में दर्शाया है। वास्तव में यह एक विद्रोह का सूचक भी है। शिकार और यह खेल राज परिवारों और अभिजात्य वर्ग के ही माने जाते थे पर Baron Stephen Van Sartar तो साधारण वर्ग का था लगता है कि उनकी खीज के लिए यह बनाया हो ।
एक फायर आले की एक तरफ राइफल रखी थी और दूसरी तरफ अनेक पशुओं को सजाया गया था जबकि उनके सामने बिलियर्ड खेल की टेबल लगी थी । एक सवाल जरूर खड़ा था कि जब पूरा घर एयर कंडीशंड था तो इस फायर की क्या जरूरत ? इसका जवाब यही था कि वह सब कुछ करना चाहता था जिसके लिए आम आदमी मन मसोस कर रह जाता था ।
हमने कुछ आगे सरक कर एक अन्य कमरे को किताबों से सुसज्जित पाया । यह लाइब्रेरी थी । दुनियां के अन्य दकियानूसी सोच के देशों की तरह इसमें महिलाएं अनपढ़ होने की वजह से नही आती थी ।
मुख्य सीढ़ियों के ऊपर की तरफ एक विशाल चित्रकला आर्चबिशप की शाही यात्रा की थी । और इसी सीढ़ियों के बाईं तरफ शयन कक्ष था । बेशक इस भवन का मालिक Baron Stephen कभी भी इसमें नही रुका था पर यह आज भी अपनी साज सज्जा से अपने मालिक के रुकने का इंतजार कर रहा है । अपनी 29 साल की उम्र में वह अपना देश छोड़ कर पेरिस चला गया । उन्नचास साल की उम्र में उसने यह महल पेरिस में रहते हुए ही बनवाया और 69 साल की आयु में वहीं उसकी मृत्यु हो गई । 🛏️ बेड रूम के साथ ही ब्रेकफास्ट रूम और उसके बाद म्यूजिक रूम है ।जहां अन्य वाद्य यंत्रों के अतिरिक्त उसका वह 🎹 पियानो भी है जिसे वह अपने पेरिस गमन के समय बॉन में ही छोड़ गया था ।
इसके साथ ही स्पेशल गेस्ट रूम है और उसके साथ ही उनके नौकर चाकरों के कमरे। वैसे तो आम आदमी के इस महल को सरसरी तौर पर देखने से ही लगभग दो घंटे लगते हैं परंतु वैसे तसल्ली से इसे देखने और समझने के लिए पूरा दिन ही चाहिए ।
यह स्थान उन सब के लिए प्रेरणा भी है कि यदि इच्छा शक्ति हो तो साधनों के न रहते हुए भी ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है ।
हिम्मत करने वालों की हार नही होती ।
देर शाम होने चली थी । खासतौर से मेरी पत्नी कृष्णा कांता का तो वापिस आने का मन ही नही था फिर भी मन मसोस कर हम सब वहां से एमस्टर्डम के लिए रवाना हुए।
Ram Mohan Rai,
Bonn-Germany.
16.07.2023
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