Suhana Safar-37 (NEMO Science Museum, Amsterdam)

    सुहाना सफर -37
   नेमो साइंस म्यूजियम जाना विज्ञान के हर पहलू को समझने के लिए जरूरी है । विज्ञान परक शिक्षा और सोच ही मनुष्य को यथार्थवादी और प्रगतिशील बनाएगी । किसी भी देश , समाज एवम व्यक्ति के विकास का एक ही पैमाना है कि वह कितना वैज्ञानिक ढंग की सोच रखता है । न केवल भौतिक अपितु शारीरिक एवम मानसिक भी । 
   इसी विचार को समझने के लिए आज हमारे बेटे उत्कर्ष का आग्रह रहा कि हम उसके ऑफिस में भी चले , उसके सहकर्मियों से भी मिलें और उनकी सामूहिक मेस में भोजन करें और फिर उनके ऑफिस के सामने ही राइन नदी के तट पर सेंट्राल 🚂 रेलवे स्टेशन के सामने बने NEMO साइंस म्यूजियम को भी देखने जाए । हमें उनका यह प्रस्ताव अच्छा लगा और हम उनके साथ 🚃 ट्राम में बैठ कर सेंट्रल स्टेशन आ गए । यहीं पैदल चलकर नजदीक ही उनका ऑफिस था । पहले हम ऑफिस आए जिसमें 8,000 लोग काम करते है परंतु रोज़ाना 5,000 ही आते है । ये सभी कर्मचारी अपने क्रम में आते रहते हैं । नीदरलैंड की विशेषता यह भी है कि यहां न तो विद्यार्थियों पर और न ही कर्मियों पर कोई दवाब नही है । खुशी - खुशी बिना किसी दवाब के पढ़ो और काम करें । ऑफिस में ही मैंने देखा कि फुरसत के क्षणों में कर्मचारियों के आराम , खेल और मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं। खाने के इंतजाम का तो कहना ही क्या ? अलग अलग तरह की चार मेस थी जिसमें से दो - शाकाहारी ,एक - एक नॉन वेज और एक वेगन।
      भोजन में भी अनेक व्यंजन थे । जैसा देश - वैसा भेष ही नही खानपान भी यदि रखेंगे तो ही स्वस्थ रहेंगे । मैने अपनी प्रवृति के मुताबिक खान पान में तो शाकाहार की बंदिश रखी परंतु इंडियन फूड्स के लिए प्रतिबद्धता नही जताई । जहां गए वहां का वेज खाना खाया पर यहां तो आज खूब मज़े का पौष्टिक आहार रहा । इसके बाद हम कार्यालय की सबसे ऊंची मंजिल जो पंद्रहवीं थी पर चढ़े और वहां से पूरे शहर को एक नज़र से देखा ।
      बाहर निकल कर हम सामने ही नेमो साइंस म्यूजियम की तरफ रवाना हुए । जितने संग्रहालय इस अकेले शहर में है इतने शायद ही दुनियां के किसी और शहर में हो । 
   मेरे बेटे उत्कर्ष ने इसे देखने की बुकिंग एक सप्ताह पहले ही करवा दी थी और हमें दोपहर बाद दो बजे का समय मिला था । हम नियत समय पर इसके अंदर थे ।
      इस म्यूजियम का निर्माण सन 1923 में हुआ था और बाद में सन 1997 में लेग रेंजों पियानो ने इस नई बिल्डिंग का नक्शा खींचा और इसे बनवा कर यहां शिफ्ट कर दिया गया । प्रतिवर्ष लगभग 6,70,000 लोग इसे देखने के लिए आते हैं ।





   घुसते ही बेसमेंट में एक कैफेटेरिया और छोटी परंतु बहुत ही आकर्षक सुविनियर की दुकान है । कुछ दूर आगे चलते ही टिकट चेकिंग के बाद सीढ़ियों से चढ़ कर पहली मंज़िल पर अनेक तरह के वैज्ञानिक जादुई खेल के स्टॉल है।
     कई तरह के आईने लगे है जिसमे एक शरीर के अनेक और एक मुंह के दो मुंह दिखाई देते है । इसमें ही चेयर रिएक्शन सर्किट बना है जो अनेक प्रयोगों को दर्शाता है । हवा में उड़ने वाली कार जो भविष्य की एक खोज का हिस्सा है को भी इसमें दिखाया है ।
      दूसरी मंजिल पर वैज्ञानिक खेल के कई प्रयोग है । जिनमें से दर्शकों द्वारा बॉल का एक रिंग में डालने पर घूम फिर कर एक जगह आने का बहुत ही मनोरंजक खेल खेला जा रहा था । पानी से बिजली के निर्माण को छोटे छोटे बांध बना कर दिखाया गया था ,जिसके प्रयोग कम उम्र के बच्चे अपने अभिभावकों के साथ कर रहे थे । साथ ही वैज्ञानिक प्रयोगों की कहानियों की फिल्म भी दिखाई जा रही थी ।















     तीसरी मंजिल पर अनेक बाल प्रयोगशालाओं में विद्यार्थी केमिस्ट्री ,फिजिक्स और बायोलॉजी के प्रयोग कर रहे थे ।
     चौथी मंजिल हमारी उम्र के लोगों के लिए काफी जानकारी भरी थी । जिसमे मानव दिमाग का पूरा ब्यौरा रखा गया था । हमारी बुद्धि की स्मरण शक्ति , शरीर की क्षमता , सांस की गति, हड्डियों, नसों , खून की शक्ति की जांच के अद्भुत खेल यहां दिखाए गए थे । जो हमने खुद ही करने थे । आज इस म्यूजियम का समय सिर्फ चार बजे तक ही था जबकि हमे दो घंटे बीत गए थे । पूरा स्थान इतना रमणीय था कि दो घंटे तो बहुत ही कम थे फिर भी हम वहां डटे रहे पर कब तक ? आखिरकार हम इस भरोसे पर वापिस आ गए कि फिर एक दिन आकर अपनी तमन्ना पूरी करेंगे ।
   विज्ञान एक सत्य है और यह सीखने और जानने की निरंतर प्रक्रिया है । विनोबा के शब्दों में विज्ञान + धर्म = अध्यात्म और राजनीति + धर्म= विनाश। महात्मा गांधी ने तो सत्य को ही ईश्वर कहा । आज विज्ञान का युग जितनी जल्दी हमारा देश भारत इस पर चलेगा उतना जल्दी ही हम प्रगति पथ पर होंगे ।
राम मोहन राय,
Amsterdam, Netherlands

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