Suhana Safar-38 ( Museum of Prostitution)
नेदरलैंड की अनेक खूबियां है पर सबसे ज्यादा अच्छा है खुलापन । मैं चरस पीने पिलाने के हक़ में नही हूं ,वह भी यहां है पर इससे अलग है महिला यौन कार्य को कानूनी मान्यता और किसी भी प्रकार की बाध्यता से मुक्ति । मेरा मानना है कि नशा और वैश्या वृति इसी समाज की उपज है जिसे किसी भी कानून से नही अपितु व्यवस्था के आमूल चूल परिवर्तन से ही रोका जा सकता है और इसके लिए ऐसा समाज बनाना होगा जहां मनुष्यता की पहचान किसी रंग ,लिंग , जाति और धर्म से परे हो । बतौर वकील मेरा यह मानना है कि सख्त कानून बनने से अपराध ज्यादा बढ़े है ।
हां जी यहां वैश्यावृति को कानूनी मान्यता है । हमारे देश में तो अभी हम लेस्बियन को मनुष्य मानने का संघर्ष ही कर रहे है पर इस देश में वैश्या वृति को मान्यता 1923 में ही मिल गई थी ।
मेरी यह दिलचस्पी का विषय रहा है । हमने हरियाणा एड्स कंट्रोल सोसायटी की मदद से पानीपत में महिला यौन कर्मियों की पुनर्वास , एसटीडी/ एसटीआई ट्रीटमेंट , परामर्श , कॉन्डन के जरूरी इस्तेमाल के लिए लगातार तीन वर्षों तक कार्य किया है। पानीपत जैसे छोटे शहर में ऐसी महिला कर्मियों की हमारे पास रजिस्टर्ड संख्या लगभग 1500 थी पर वास्तविक तादाद इससे भी कहीं ज्यादा थी । हमारा काम जौखिम भरा था परंतु हम इसे एक प्रोजेक्ट के तौर पर न लेकर एक मिशन के रूप में कर रहे थे । तब हमने पाया था कि ये महिलाएं किस विवशता में ये कार्य अपनी जिंदगी को दाव पर लगा कर करती है । पूंजीवाद बेशक मुनाफे पर आधारित व्यवस्था है और बीमारी ,बेरोजगारी और भूख का जनक है । अमीर और गरीब का अंतर एक असमानता के समाज को जन्म देता है । मांग और आपूर्ति का सिद्धांत लोगों का सम्मान जनक पेट नही भर सकता । इस समाज में हर जगह बेरोजगारी है परंतु चाइल्ड लेबर और महिला वैश्या वृति में पूर्ण रोजगार है । जबतक शोषण और मुनाफे पर आधारित यह व्यवस्था है तब तक हर बालक को शिक्षा और हर हाथ को काम नामुमकिन है ।
हमने इस कार्य को करने के लिए महिला यौन कर्मियों का मनोविज्ञान, आर्थिक एवम सामाजिक स्थिति भी खोजने की कोशिश की थी और पाया था कि कोई भी महिला तो इसे स्वेच्छा से स्वीकार नहीं कर रही थी । सबकी अपनी कहानी थी जो उसे इस व्यवस्था ने दी थी । अपनी मर्जी से करने वाली महिलाओं की संख्या इक्का दुक्का ही थी । अनेक महिलाएं तो ऐसी थी जो अपने पति अथवा सास ससुर की बीमारी के लिए धंधा करती थी । ऐसी महिलाओं की कथा सुन कर हमारा उन्हें सलाम करने का मन करता। जब हम मानते है कि उनका वजूद है तो फिर क्यों नही हम अपना दोगलापन छोड़ कर इन्हें मान्यता देते ताकि एड्स और दूसरी बीमारियों से ये मुक्त हो सके । हम दिल्ली में जी बी रोड और कोलकाता में सोनागाछी के बारे में तो चटकारे ले कर बात करते है पर उनकी स्थिति पर कोई चिंता नहीं करते । गंगुबाई काठियावाड़ी फिल्म ने हमारी आंखे तो खोली पर हमने इसे समाज पर अभिशाप मान कर फिर बंद कर लिया । विश्व स्वस्थ संगठन ,भारत सरकार और अन्य एजेंसियां करोड़ो लोग पानी की तरह बहाती है और इसमें हाथ धोते है भ्रष्ट अधिकारी और कर्मी और नकली एनजीओ।
पर नीदरलैंड ने इस कार्य को मान्यता देकर इन्हें न केवल बीमारी से मुक्ति दिलवाई है वहीं इससे महिला के प्रति यौन अपराधों में भी गिरावट आई है । अब इनके बच्चे भी गर्व से शिक्षा प्राप्त करने लगे है । अब उनकी भी यूनियन बनाने की स्वीकृति है और इन्हें भी अन्य कर्मचारियों की तरह सोशल सिक्योरिटी हासिल है जो इन्हें दलाल , पुलिस और अन्य लोगों के शोषण से मुक्त करती है ।
यह जानने के लिए हम पहुंचे एमस्टर्डम के सेंट्राल
के पास रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट के दुनियां भर में एक मात्र म्यूजियम ऑफ प्रॉस्टिट्यूशन में । इसके लिए भी पहले बुकिंग करवानी होती है । इस जगह के तीन फ्लोर पर एक में वीडियो और ऑडियो ढंग से वैश्या वृति का इतिहास बताया जाता है । फिर उन कमरों में ले जाया जाता है जिन जैसे कमरों में यह कार्य किया जाता है । म्यूजियम मात्र जानकारी हासिल करने की जगह है न की कोई bothel (वैश्या वृति का अड्डा) , जबकि यह कार्य आमने सामने की गलियों में किया जाता है जहां यौन कर्मी शीशे के शो केस में खड़ी होकर ग्राहक से सौदे बाजी करती हैं। क्योंकि इन्हें सरकारी संरक्षण हासिल है इसलिए कोई भी जोर जबरदस्ती इन पर नही कर सकता ।
म्यूजियम में इसी प्रकार के शो केस दर्शाए गए है ताकि दर्शक इनका अंदाजा लगा सके । म्यूजियम के बाहर की तरफ खिड़कियां लगी है जिनसे आते जाते लोगों को देखा जा सकता है । इसी स्थान पर जगह जगह लिखा है कि "I an not sex worker but sex therepist".
वैसे तो हमारे सभी सवालों के जवाब इस म्यूजियम में घूमने मात्र से ही मिल जाते है फिर भी आखिर में एक सेशन रूबरू भी होता है ताकि हर प्रकार की शंका का समाधान हो सके ।
राम मोहन राय,
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