घूमकड़ की डायरी-6 My trip to the city of Abraham Lincoln

 



सुहाना सफर 

*जय फूले - जय क्रांति*!

"My trip to the city of Abraham Lincoln" स्प्रिंगफील्ड में अब्राहम लिंकन अपने पैतृक घर न्यू सलेम से सन 1837 में आए थे और आते ही उन्होंने अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के अनुसार ही एक दुकानदार जाशुआ स्पीड के साथ एक कमरा उसके साथ शेयर करते हुए किराए पर लिया और बाद में अपने एक मित्र हार्डन के साथ लॉ फर्म बनाई और वकालत शुरू की । यह सब ऐतिहासिक जीवन वृतांत जानने के लिए उनके नाम से बने एक म्यूजियम जो की एक शहर के बिल्कुल बीच में स्थित हैं वहां पहुंचे ।






     इस म्यूजियम बहुत ही व्यवस्थित तरीके से एक विशाल परिसर में सजाया गया है । इसके रिसेप्शन हॉल में ही दो थिएटर बनाए गए है जहां लिंकन के इस शहर में बिताए गए जीवन को बहुत ही प्राकृतिक रूप से फिल्माया गया है । इस फिल्म को देख कर ऐसा लगता है कि मानों हम उनके जीवन के साथ रूबरू हो रहे हो । इसमें प्रेम प्रसंग भी हैं, हास्य , गंभीरता , शोक और जीवन में आने वाली चुनौतियों से सरोकार होना भी ।

   



स्वागत कक्ष से उत्तर की ओर निकलते ही सामने अनेक मकान दिखाई देते है । वास्तव में यह पूरा मोहल्ला ही है पर जब हम उनके नजदीक गए तो पाया कि यह तो संग्रहालय का एक हिस्सा ही है । सन 1863 की गली को दर्शाया गया है । जिसमे एक मकान खुद लिंकन परिवार का है जहां वे रहते थे । उस मकान के बाहर अंदर देखी फिल्म के अभिनेता, जो की लिंकन का अभिनय कर रहे थे, वे उसी वेशभूषा में खड़े लिंकन के जीवन वृतांत को सुना रहे थे । उनके चारों तरफ अनेक दर्शक खड़े थे । वह क्षण तो बहुत ही मार्मिक था जब उन्होंने उस भाषण को हुबहू सुनाया जो लिंकन ने राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वॉशिंगटन डी सी जाने से पहले उन्हें रेलवे स्टेशन पर विदा करने के लिए आए लोगों को सुनाया था । इन अभिनेता का वह ही लहजा और भाव थे जो 170 साल पहले लिंकन के रहे होंगे । उसके साथ ही एक अन्य महिला लिंकन की पत्नी मैरी टॉड की ड्रेस में सजी संवरी खड़ी थी और साथ साथ लेडी राष्ट्रपति के भावों को अभिव्यक्त कर रही थी । हमारे आग्रह पर उन दोनों कलाकारों ने हमारे साथ फोटो खिंचवाए ।

    सामने ही लिंकन के मकान को उसी समय के हिसाब से दर्शाया गया था । प्रवेश द्वार, किचन, ड्राइंगरूम , बेड रूम , किड्स रूम और गेस्ट रूम । वास्तविक मकान तो समय के साथ साथ खत्म हो गया था परंतु इस आर्टिफिशियल स्ट्रक्चर को देख कर ऐसा लगता था कि अभी 170 साल पुराना परिवार यहां आएगा और रहेगा ।

    सामने ही लिंकन के कार्यालय और मीटिंग रूम को दर्शाया है जहां वे सभी व्यवस्थाएं है जैसे कि एक जन नेता के ऑफिस में हम अपने देश में भी देखते है । प्रतीक्षा, व्यक्तिगत एवम केंद्रीय कक्ष । इन सभी कमरों में लिंकन के सार्वजनिक राजनीतिक जीवन के चित्र एवम वृतांत दर्शाए गए है ।

     दूसरी तरफ के मकान जो कि लिंकन के पड़ोसियों के है उन्हे भी पुराने ढंग से सुसज्जित किया है । इनके मकानों में भी उनके चित्रों और पत्र व्यवहार को सजाया है । किसी भी राजनेता के पड़ोसी अनेक मामलों में नेता जी के घर उनसे मिलने वाले लोगों की वजह से अक्सर परेशान रहते है । अभी हाल में ही हमारे देश के कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को उनके पड़ोसी ने अपना विरोध दर्ज कराया कि उनके घर के बाहर मुख्यमंत्री से मिलने वाले लोगों की गाड़ियां खड़ी रहती हैं और लोगों का जमघट्टा भी ,जिससे उसकी निजता भंग होती है । परंतु लिंकन के इस मोहल्ले में उनके घरों और स्थितियों का चित्रण किया है । सामने ही एक पुराने ढंग के कैमरे को लगाया है जो उस समय नेता जी के चित्रों को लेता होगा ।

    यहां यह बताना जरूरी है कि लिंकन राष्ट्रपति बनने के बाद इस शहर में कभी नहीं आए । परंतु उनकी हत्या के बाद उनके पार्थिव शरीर को अनेक वर्षों के बाद यहां लाया गया और स्थानीय कब्रगाह में दफनाया गया । हम अगले दिन उनकी कब्र पर भी गए और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की ।

















     उनकी कब्र उनके घर से लगभग पांच किलोमीटर दूर है और इस स्थान को भी उनकी मूर्तियों , शिलालेखों से सजाया गया है और फिर एक गुम्बद के नीचे मंदिर नुमा जगह में उनकी कब्र है जहां दुनियां भर से लोग उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते है ।

     हमारे देश के महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फूले तथा सावित्रीबाई फूले ने महाराष्ट्र में स्त्री शिक्षा , दलित चेतना और सामाजिक जागरण का अद्भुत कार्य किया था । उन्होंने हमारी गुलाम मानसिकता तथा पिछड़ेपन का कारण पाखंड ,अंधविश्वास और अनपढ़ता को बताया था । उन्हीं को उजागर करते हुए उन्होंने एक पुस्तक "गुलाम गिरी" की रचना की थी । 170 साल पहले जब कोई संचार माध्यम नहीं थे ,उस समय उन्होंने अपनी इस पुस्तक को अमेरिका में गुलाम प्रथा को समाप्त करने वाले व्यक्ति अब्राहम लिंकन को समर्पित की थी। इस मायने में हम भी उनसे स्वयं को संबंधित महसूस करते है । मैने अपने इस गौरव को इस स्थान के अधीक्षक मार्सेल ट्वोरेक (Marcel Tworek) को बताया तो वह भी अत्यंत प्रसन्न हुआ ।


     फूले के वंशजों के एक प्रतिनिधि के रूप में हमारी यहां की यात्रा उसी तार को जोड़ने का काम करती है और हम उसके माध्यम बने इसका हमे गर्व है । यह यात्रा हमारे लिए एक तीर्थयात्रा से किसी भी प्रकार से कम नहीं थी ।

जय फूले- जय क्रांति।

राम मोहन राय,

Springfield Illinois-USA,

07.08.2023

Comments

Popular posts from this blog

Gandhi Global Family program on Mahatma Gandhi martyrdom day in Panipat

Global Youth Festival, 4th day ,Panipat/05.10.2025. Sant Nirankari Mission/National Youth Project/Gandhi Global Family

पानीपत की बहादुर बेटी सैयदा- जो ना थकी और ना झुकी :