घूमकड़ की डायरी-8 My trip to the city of May Day- Chicago
My trip to the city of First May - Chicago .
अपने बचपन से ही देखते रहे कि हर एक मई को हमारे शहर में मजदूरों का जुलूस निकलता था और उसमें हजारों की संख्या में मजदूर इकठ्ठा होकर अपने हाथ में लाल झंडे लिए निकलते । दरअसल हमारा पानीपत एक औद्योगिक शहर था जिसमे छोटी बड़े सैंकड़ो की संख्या में कारखाने थे और उन सभी में ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस(एटक) का बोलबाला था । लाल बत्ती चौंक के पास ही नवल सिनेमा की बिल्डिंग से लगती ऊपरी मंजिल में इंडस्ट्रियल वर्कर्स यूनियन का दफ्तर था जिसे आम लोग "लाल झंडे ऑफिस" के रूप में जानते थे । जिला कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव कामरेड रघवीर सिंह जो की एटक के भी सचिव होते थे ,वे वहां बैठते थे और उनके साथ कामरेड जयपाल, बाल कृष्ण , राम लोचन मिश्र, जसवंत सिंह गोसाईं, राजेंद्र आदि ट्रेड यूनियन फ्रंट पर बतौर होल टाइमर काम करते थे , जबकि कॉमरेड रामदित्ता, बलवंत सिंह, सूरत सिंह, दिलीप सिंह, रणबीर मलिक आदि पार्टी के स्थानीय नेता थे । इन सभी नेताओं के मेरे परिवार के साथ बहुत अच्छे संबंध थे इसके बावजूद भी कि मेरा माता पिता कांग्रेस की गांधीवादी तथा आर्य समाजी विचारधारा से थे । इसका कारण यह भी था कि कॉमरेड रघुबीर सिंह,सूरत सिंह और रणबीर मलिक अपने स्कूल समय में मेरे पिता के विद्यार्थी रहे थे जबकि कॉमरेड बलवंत सिंह और रामदित्ता मेरे पिता के व्यक्तिगत मित्र थे । कॉमरेड बलवंत सिंह की लकड़ी और कोयले की टाल लाल बत्ती के साथ ही असंध रोड पर मुड़ते ही थी । दरअसल यह वह जगह थी जो तमाम राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र थी , जहां भारतीय जनसंघ से पानीपत के तत्कालीन विधायक फतेह चंद विज, कांग्रेस के विधायक हुकूमत शाह और दूसरी सभी पार्टियों के नेता बैठ कर न केवल राजनीतिक चर्चा करते थे वहीं गप्पशप भी करते । मेरे पिता भी अक्सर वहां जाते थे ।
सन 1975 में दीपचंद निर्मोही जी की प्रेरणा और प्रभाव से मैं ऑल इण्डिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से जुड़ा और बाद में इसका ज़िला और राज्य सचिव रहा । इसी दौरान सीपीआई के बारे में भी जानकारी मिली । मेरे माता- पिता को इस जुड़ाव से कभी कोई एतराज़ नहीं था । वे सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ थे और देश की आजादी के दौरान बाद अपने प्रिय बापू की हत्या से स्तब्ध थे । वह दौर इमरजेंसी का था जब कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का अच्छा तालमेल था इसलिए भी वे मेरी सीपीआई के साथ मेल मिलाप से कोई आपत्ति नहीं थी ।
अब हम कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर में भी यदाकदा जाते रहते । पार्टी के नेताओं से बौद्धिक चर्चा करते । हर विषय पर उनकी समझदारी विस्तृत और वैज्ञानिक थी । धीरे धीरे मैं भी पार्टी के नजदीक आने लगा । मैं एक प्रभावशाली वक्ता था । अपने स्कूल बाद में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय , भाषा विभाग , राज्य और जिला स्तर पर भाषण और वाद विवाद प्रतियोगिता में मेरे भाग लेने का अर्थ ही प्रथम स्थान प्राप्त करना था । पर अब इसके साथ साथ एo आईo एसo एफo का भी मुख्य प्रवक्ता बन गया था । ऐसा कोई अवसर नहीं होता जब पार्टी और स्टूडेंट्स फेडरेशन का कोई कार्यक्रम होता और मैं उसमे मेरा वक्तव्य नही होता ।
इन मुख्य कार्यक्रमों में सबसे बड़ा जश्न एक मई को मजदूर दिवस का होता । पानीपत की लगभग हर फैक्ट्री में एटक की ही यूनियन थी । उस दिन हर कारखाने से मजदूर लाल झंडे लेकर बड़े जोश खरोश से नारे लगाते हुए आते और यूनियन द्वारा पंजाब नेशनल बैंक, जी टी रोड ,पानीपत में आयोजित जलसे में भाग लेते । मजदूरों का एक सैलाब वहां होता जो नाचते- गाते हुए दुनियां भर के मेहनत कशों एक हो जाओ के नारे को बुलंदी से लगाते । इस जलसे में मुख्य वक्ता कॉमरेड रामदित्ता और रघुबीर सिंह रहते ,जो मजदूर आंदोलन का इतिहास बताते हुए मई दिवस का महत्व भी बताते ।
कॉमरेड रामदित्ता सन 1947 में पाकिस्तान से दिल्ली आए और फिर पानीपत में काम के सिलसिले में आ बसे । उन्हीं के प्रयास थे कि मजदूर यूनियन और पार्टी के काम की शुरुआत हुई थी । वे एक उर्दू शायर भी थे। इस अवसर पर वे अपनी इंकलाबी नज्में सुनाते। वे बहुत ही जोश से आज़ादी के इतिहास को बता कर इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्य वाद मुर्दाबाद के नारे लगवा कर अब वह नारा लगवाते जो मेरे ज़हन में आज भी गूंजता है " शहीदाने यकम मई जिंदाबाद" ।
यह उन आठ शहीदों को सलाम था जिन्होंने अमेरिका के शिकागो शहर में एक मई ,१८८६ को काम के आठ घंटे करवाने के लिए हड़ताल का नेतृत्व करते हुए फैक्ट्री मालिकों और सरकार की गोलियों के शिकार होकर अपनी शहादत से बनाया था।
उस शांतिपूर्ण अहिंसक आंदोलन का स्मरण ही पूरे शरीर में सिहरन पैदा करता था। और वह कंपन थी अन्याय, असमानता और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई की शक्ति ।
मन में सदा यह भावना रहती कि कभी अवसर मिले तो शिकागो जाकर इन शहीदों को सलाम पेश किया जाए । पर समय गतिशील था पर मन की शक्ति सुदृढ़ थी और विश्वाश भी कि वह दिन अवश्य आएगा कि हम शहीदने यकम मई के स्मृति स्थल पर अवश्य जाएंगे ।
और आज वह दिन आ गया था । शिकागो मेरे सपनो और इच्छा शक्ति का शहर था । मई दिवस के शहीदों और स्वामी विवेकानंद के विश्व धर्म संसद में १८९३ में दिए गए उस संबोधन का शहर जिसने हिंदू धर्म की एक अद्भुत व्याख्या की थी । अत: यह शहर क्रांति , अध्यात्म और धर्म की धरती है ।
शिकागो आकर हम अपने अत्यंत प्रिय साथी जहान चौधरी और मेघना के घर पर रुके । हमारी ख्वाइश से वे दोनों वाकिफ थे और समय मिलते ही वे हमें ले चले हे मार्केट स्क्वायर जो साक्षी था एक मई, १८८६ में हुए उस हत्या कांड का ।
इस स्थान पर एक प्रतिकात्मक स्मारक बनाया गया है जिसमे मजदूरों के प्रदर्शन की एक झांकी है । लकड़ी की गाड़ी के पहियों को साथी मजदूरों ने अपने हाथों से सहारा देकर ऊंचा उठाया हुआ है और फिर उस गाड़ी पर भी लकड़ी के बॉक्स रखे हैं ताकि वक्ता को दूर से भी देखा जा सके । वक्ता अपनें हाथ में एक पर्चे को पढ़ने की मुद्रा में है । इस दृश्य जिस चबूतरे पर अंकित है उस पर दुनियां भर की अनेक ट्रेड यूनियन और संगठनों ने अपने श्रद्धांजलि पट्ट लगाए हुए है । पूरा नजारा बहुत ही भावपूर्ण और प्रेरणा दायक है । इस स्थान पर ही खड़े होकर हमने अपने तमाम साथियों की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की और जहान, मेघना , कृष्णा कांता ने मिल कर मुट्ठियां भींच कर शहीदाने यकम मई जिंदाबाद के नारे लगाए ।
हमारे लिए यह यात्रा किसी भी तरह से तीर्थ यात्रा से कम नहीं थी । यह मेरे उस ख़्वाब की पूर्ति भी थी जिसे बचपन से लिए जी रहे थे ।
शहीदाने यकम मई - ज़िंदाबाद!
Ram Mohan Rai,
Hey Market Square,
Chicago, USA.
Comments
Post a Comment