घुमकड़ की डायरी -9. My trip to the land of Swami Vivekananda's speech, Chicago- USA
शिकागो मेरे सपनो का शहर रहा है । एक क्रांतिकारी और आध्यात्मिक शहर । हम बचपन से ही इससे प्रेरित रहे है जिसका एक कारण है कि इसी शहर में ही सन 1886 को मजदूरों का अहिंसक आंदोलन हुआ और उसमें शहीदों ने अपने खून से रंगा लाल झंडा दुनियाभर में अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संघर्षरत सत्याग्रहियों लाल झंडा प्रदान किया , जो इस बात का आह्वान है कि जुल्मी चाहे कितना भी क्रूर हो उसका मुकाबला सत्य और अहिंसा से किया जा सकता है ।
दूसरा यह वह शहर है जहां सन 1893 में यहां विश्व धर्म संसद में एक युवा भारतीय सन्यासी स्वामी विवेकानंद ने धर्म के मूल को बताया । वह जो ऋषि मुनियों से वर्तमान तक शाश्वत है जो हर प्रकार की उदारता से परिपूर्ण है और हर प्रकार की संकीर्णता को नकारता है ।
इस शहर में आकर मैं स्वयं को धन्य मानता हूं । मेरे लिए यह एक तीर्थयात्रा से कम नहीं है । इन क्षणों से मैं गौरवान्वित और अभिभूत हूं ।
एक मई को उन अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने महान सन्यासी स्वामी विवेकानंद को भी नमन करता हूं जिन्होंने शांतिपूर्ण अहिंसक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया।
स्वामी विवेकानंद के विश्व धर्म संसद,शिकागो में दिए गए भाषण के मुख्य अंश:-
अमेरिका के बहनो और भाइयो,
आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजरायलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है।
भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।
वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।
सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।
अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी
(आज स्वामी विवेकानंद के इस शहर में आकर आनंद एवम प्रसन्नता का अवसर मिला)
Ram Mohan Rai,
Chicago USA
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