घुमकड़ की डायरी। World Religions Parliament, Chicago.


हर किसी के लिए विश्व धर्म संसद के मौके पर यहां आना, इसमें भाग लेना और अपनी बात कहना सचमुच गौरव की बात होगी । हमारे भारत में इसे बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और इसका मुख्य कारण सन 1983 में स्वामी विवेकानंद का इसमें भाग लेकर उनका वह उद्बोधन था जिसने हमारे गुलाम देश के एक अति पुरातन धर्म की व्याख्या को प्रस्तुत करना था ।  एक सौ तीस 130 वर्ष पूर्व दिया गया वह व्याख्यान आज उस समय से भी ज्यादा प्रासंगिक है ,जिसे हमें बार बार पढ़ने और समझने की जरूरत है । अफसोस यह है कि हम देशवासी उसे बिना पढ़े उसकी अपने अपने ढंग से व्याख्या करते है । सही मायने में वह भारत , भारतीयता,उसकी उदात्त संस्कृति और सभ्यता का संदेश है । वह संदेश है भारत की उस आत्मा का जिसके मूल मंत्र समानता, भाई चारा और विश्व बंधुत्व है और जो वर्तमान संदर्भ में लोकतंत्र , धर्म निरपेक्षता और समाजवाद को संजोए हमारे भारतीय संविधान की व्याख्या करता है । स्वामी जी के व्याख्यान के एक भी अंश में संकीर्ण और अंध राष्ट्रवाद का समर्थन नहीं है । यह नए नौजवान भारत का संदेश है ।
   हम 14 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती को युवा दिवस के रूप में मना कर प्रचारित करते है कि उन्होंने हिंदू धर्म के बारे बताया पर क्योंकि उन्हें पढ़ा नहीं इसलिए उनके विचारों को हिंदुत्व के राजनीतिक विचार से जोड़ने की कोशिश करते है ,जो की स्वामी जी की भावना का कतई सम्मान नही है ।
   क्या यह अद्भुत साहस की बात नही है कि वह युवा संन्यासी इस शिकागो शहर में समुंद्र के रास्ते आए थे यानी की महीनों पानी के जहाज में कठिनप्रद यात्रा करके ।
     हमें समझना होगा कि विश्व धर्म संसद कोई नियमित वार्षिक अथवा तीन वर्षीय कार्यक्रम नही है।  वर्ष 1893 में इसका पहला आयोजन इस शहर में ही हुआ था । उसके 100 साल बाद ही इसका आयोजन यहां 1993 हुआ और तब से अन्य स्थानों पर होने के बाद अब यह 30 वर्षों के बाद  अब यहां आयोजित हो रही है । यानी 130 वर्षो के इतिहास में यह संसद के कुल नौ आयोजन हुए है । जिसका क्रम इस प्रकार है:-
1893- शिकागो
1993- शिकागो
1999- केप टाउन
2004- बार्सिलोना
2009 - मेलबर्न
2015 - साल्ट लेक
2018- टोरंटो
2021- वर्चुअल
2023- शिकागो (वर्तमान)
    मुझे इस बात का गौरव हैं कि इस बार की संसद का साक्षी बनने का अवसर मिला है । परंतु खेद भी है कि स्थानीय धार्मिक संस्थान और साधारण जनता इस के आयोजन से अनभिज्ञ भी है । शुरुआत के तीन दिन मैं संत निरंकारी मिशन,अमेरिका के मुख्यालय में रुका और वहीं से श्री सनातन धर्म मंदिर के प्रधान डॉक्टर बी डी शर्मा , आर्य समाज के प्रधान श्री सुरेश पाल और मुस्लिम समुदाय के अग्रणी नेता जनाब मेराज अख्तर से संपर्क किया ,परंतु मुझे खेद है कि हर कोई इस समारोह से अनजान था।  बाद में जब इन लोगों ने संपर्क साधने की कोशिश की तो पाया कि एंट्री टिकट बहुत महंगा था और उस पर भी रजिस्ट्रेशन बंद हो चुकी थी । स्वामी विवेकानंद के व्याख्यान की वजह से हमारे देश में तो इसकी प्रसिद्धि है परंतु यहां सूचना नदारद थी ।
     मुझे प्रसन्नता है कि गांधी ग्लोबल फैमिली के कारण मैं इसका साक्षी बना वरना इसमें भाग लेना हर साधारण अथवा विशिष्ट व्यक्ति के लिए भी कठिन प्रक्रिया थी । मुझे यहां ठहरने , भोजन और अन्य सुविधाएं गांधी ग्लोबल फैमिली की एक सहयोगी संस्था satureday Free School Philadelphia के साथियों ने निशुल्क उपलब्ध करवाई थी जिसके लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूं। ऐसी व्यवस्था लेने में मेरे मार्गदर्शक स्वयं स्वामी विवेकानंद, स्वामी राम तीर्थ तथा प्रभुपदा स्वामी जी रहे जिनके पास प्रभु भरोसे और कृपा के बिना कुछ भी साधन नही थे और सच मानिए कि मेरी पॉकेट में जो थोड़े बहुत डॉलर थे उनमें से एक भी पैसे का खर्च मुझे नही करना पड़ा ।
        हमारे देश से अनेक ख्याति प्राप्त संत महात्माओं सर्व श्री स्वामी चिदानंद मुनि और साध्वी सरस्वती जी स्वयं तथा श्री श्री रविशंकर जी के प्रतिनिधि, जैन लोकेश मुनि ,  ईसाई धर्म और कुछ अन्य धर्मों के प्रतिनिधि ही इसमें रहे । स्वामी जी के तो पूरे अमेरिका में ही अनेक स्थानों पर आयोजन थे और उनमें से यह भी एक था ।
    धर्म संसद का मुख्य विषय Call to Conscious , defending Freedom and Human Rights के साथ साथ वर्तमान अधिनायक वाद की चुनौती के खिलाफ धर्म की भूमिका था । यह विषय बाह्य तौर पर तो बहुत ही प्रभावित करता है परंतु इसके भीतर यूरोप के दूसरे क्षेत्र में रूस और यूक्रेन में छिड़ी जंग भी है जिसमें यूक्रेन नाटो का प्रतिनिधि बन कर लड़ रहा है । अब यह लड़ाई इस दौर में पहुंच चुकी है कि अमेरिका भी अब इससे आज़ीज़ आ चुका है । इस शहर में आने पर देखने को मिला कि हर सरकारी - गैर सरकारी इमारत पर अमेरिकन राष्ट्रीय और प्रांतीय झंडे के साथ साथ यूक्रेन का झंडा भी लहरा रहा है,जो अमेरिका की यूक्रेन युद्ध के प्रति समर्थन और सहयोग का प्रतीक है।  जबकि इस लड़ाई ने अमेरिका और यूरोप को बहुत ही के कठिनाई में डाल दिया है और यही कारण है कि पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप, डेमोक्रेटिक पार्टी में वर्तमान राष्ट्रपति बाइडेन के मुकाबले में एक युवा उम्मीदवार और पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के भतीजे जूनियर कैनेडी और एक अन्य निर्दलीय उम्मीदवार ने घोषणा की है कि यदि वे चुनाव जीते तो यूक्रेन को आर्थिक और सैन्य मदद फौरन बंद कर नाटो से भी नाता तोड़ेंगे ।
    अगले साल होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में यह मुद्दा ही निर्णायक होगा । अमेरिकी राजनीति और कूटनीति से हमारी भारतीय विदेश नीति किसी भी प्रकार से मेल नहीं खाती । विशेषकर रूस - नाटो युद्ध में हमारी भूमिका तटस्थ है और इस तटस्थता का अर्थ कोई चुप्पी नही है ,इसका मतलब है कि हम इस युद्ध में अमेरिका के साथ नही है । हमारे विदेश मंत्री जय शंकर के बयान इसे मुखरित करते है । हम नेहरू - इंदिरा की नीतियों का देश में कितना भी विरोध करे परंतु विदेश में वे ही हमारी मार्गदर्शक है ।
    विश्व धर्म संसद के हॉल के बाहर भी अनेक मुद्दों पर संवाद एवम चर्चाएं हुई है जिनमें भी मुझे भाग लेने का सौभाग्य मिला । उनमें से एक थी वर्तमान संदर्भ में शांतिपूर्ण अहिंसक परिवर्तन से मानवीय समस्याओं का समाधान । 
   कुछ भी कहें परंतु इस संसद के बहाने दुनियां भर में नित्य प्रति होने वाले घटनाक्रम को जानने और समझने का अवसर तो मिला ही है ।
Ram Mohan Rai,
Chicago- USA.
17.08.2023

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