घुमकड़ की डायरी -21 Deepawali in USA

*अमेरिका में दिवाली*
     चार दिन पहले हमें एक जगह दिवाली मेला में शामिल होने का अवसर मिला। यह आयोजन हमारे सीएटल स्थित आवास से लगभग 25 किलोमीटर दूर एक अन्य कस्बे बेलव्यू में एक स्कूल में भारतीय वंशियों द्वारा संचालित एक गुरुकुल नाम की एक संस्था ने किया था । यह संस्था भारतीय मूल के माता पिता के बच्चों को भारतीय भाषाएं और संस्कृति को सीखने का काम करती है । इस मेले में ऐसा लगा ही नहीं की यह अमेरिका की धरती पर हो रहा है । जी, बिल्कुल वैसा ही जैसे हमारे देश में होता है । वैसी ही भीड़, धक्का मुक्की , खानपान के लिए मारा मारी और जूता घर में अपने अपने जूता चप्पलों को लेने के लिए जल्दबाजी । जबकि यहां कोई भी चोरी की गुंजाइश नहीं थी ।
     गुरुकुल प्रत्येक भारतीय बच्चे से भाषा, संस्कृति और  उत्सव के बारे में सिखाने और बताने के मात्र  400 डॉलर वार्षिक बतौर फीस लेता है और इसके इलावा प्रत्येक अभिभावक स्वैच्छिक समय दान भी करता है । यहां के हिसाब से बहुत ही मामूली फीस है । पर हम भारत में रहने वाले लोग इसे 82 रूपये से  गुणा करके इसकी इंडियन करेंसी से तुलना करेंगे जो उचित नहीं है । हमारे यहां 12 से पन्द्रह रुपए का एक समोसा है और यहां दस डॉलर का। हिसाब लगभग एक सा  ही है पर फिर भी यहां की मुद्रा का रेट 82 गुणा ज्यादा क्यों ,मुझे तो समझ में नहीं आता । इतना शुल्क  देने वाले बच्चों की कक्षाएं प्रत्येक रविवार को छुट्टी के दिन दो से तीन घंटे के लिए लगती है जहां हिंदू धर्माम्वलंबी अभिभावक अपने बच्चों को भेजते हैं। मैं धर्म के एक विशेष हिस्से को बुलाना तो अच्छा नही समझता चूंकि भारत तो एक बहुधर्मी , अनेक संस्कृतियों और भाषा बोलियों का संगम है और यदि यहां सर्वधर्म समभाव का पाठ पढ़ाया जाता तो और अच्छा होता तो फिर भारतीय सिख बच्चें गुरुद्वारा में गुरुबाणी और गुरमुखी सीखने गुरुद्वारे , मुस्लिम बच्चे मस्जिद अथवा स्थानीय मदरसे और संत मत को मानने वाले माता पिता के बच्चों को अपनी संगत अथवा सत्संग में न जाकर यहीं आना होता ।
    गुरुकुल द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में बच्चें आर्ट एंड क्राफ्ट में अपने हुनर को प्रदर्शित कर रहे थे ,वहीं खान पान के स्टॉल लगे थे जहां के लिए पहले ही कूपन खरीदने होते है । समोसा ,पनीर के पकोड़े , गुलाब जामुन, ठंडा और गर्म पेय वहां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था । और अंत में एक बड़े हॉल में पौराणिक गाथाओं पर आधारित समुंद्र मंथन का नाटक को प्रस्तुत किया गया । छोटे बड़े सभी कलाकारों ने काफी सुंदर प्रस्तुति की । नाटक संस्कृत निष्ठ हिंदी में था परंतु उसका अंग्रेज़ी अनुवाद साथ साथ हो रहा था । मज़े की बात यह है कि परिवार ,गुरुकुल तथा अन्य अनेक प्रयासों के बावजूद भी यहां भारतीय अमेरिकी बच्चें कुछ कुछ ही हिंदी अथवा अन्य कोई अपनी पैतृक भाषा समझते हो ,बोलना तो बहुत ही मुश्किल है । तब समझ में आता है कि क्यों नही ये लोग भारत वापिस आ सकते ? क्योंकि भविष्य की विरासत तो पूरी तरह से अमेरिकी हो गई है ।
    भारतीय वंशियों के घरों में भी दिवाली मनाने की तैयारी वैसे ही की जाती है जैसे कि इंडिया से यूएसए में आने से पहले ये लोग अपने अपने घरों में करते थे । पूरा सफाई अभियान , नए कपड़ों, सामान और गिफ्ट्स की खरीदारी । त्यौहार से पहले ही लोग अपने अपने घरों में पार्टियां आयोजित कर अपने खास मित्रों को बुला कर दिवाली सेलिब्रेशन करते है । घरों में चाइनीज इलेक्ट्रिक अथवा बैटरी लड़ियों , दियों, मोमबत्ती लगा कर रोशनी करते है । यद्यपि बिना प्रशासकीय स्वीकृति के आतिशबाजी अथवा पटाखे नही चलाए जा सकते फिर भी इजाज़त लेकर इन्हे छुड़ा कर खूब आनंद करते है । लक्ष्मी पूजा आदि अनुष्ठान भी किए जाते है और आपस में सभी को दिवाली बधाई के संदेश भी दिए जाते है । बेशक इस दिन की छुट्टी नही है और न ही कोई सार्वजनिक चहल पहल।  पर इसके अलावा भारतीय परिवार त्यौहार में सरोबार रहते हैं। मुझे लगता है कि अभी ऐसा तब तक चलेगा जब तक वर्तमान पीढ़ी और उनकी जड़े यानी घर परिवार इंडिया में है ,पर बाद में यह कितना हो पाएगा यह समय बताएगा ।
     हमने भी अपने बेटी दामाद,  नाती नातिन के साथ मिल कर दिवाली को खूब मनाया । देसी- विदेशी लगभग 50 लोगों को बुला कर पार्टी की । घर में ही मिल कर गोल गप्पे, दही बड़े, चने की दाल  के पकोड़े, पाव बड़ा, खीर , नारियल की बर्फी, गुलाब जामुन, जलेबी, चाट, वेज़ बरियानी, छोले , पालक पनीर , मिक्सड वेजिटेबल आदि बनाए और मिल बांट कर खाए और फिर बाद में घर के पीछे लॉन में आतिशबाजी की । यहां प्रदूषण का बड़ा खतरा नहीं है । AQI (Air Quality Index) 20 -30 ही रहता है जबकि इंडिया में कितना है ,हम और आप जानते ही हैं ।
    हमारे देश की तरह यहां हर छोटे बड़े त्यौहार की तरह अवकाश नहीं होता । साल के 365 दिनों में क्रिसमस की सात छुट्टियों , शनिवार रविवार की छुट्टियों के अलावा 2-4 ही अवकाश रहता है ।  स्कूलों में भी कोई धार्मिक आस्था का पर्व अथवा प्रार्थना नही होती । क्रिसमस भी एक सांस्कृतिक उत्सव की तरह ही है । पर इसके विपरित हमारा देश तो है ही पर्वों का देश और हम जहां भी जाते है अपने फेस्टिवल्स साथ ही ले जाते है ।
Happy Diwali 🪔
Ram Mohan Rai Seattle Washington -USA
12.10.2023.

*दीपावल्याः सहस्रदीपाः भवतः जीवनं सुखेन,*
*सन्तोषेण, शान्त्या आरोग्येण च प्रकाशयन्तु।*

 *दिवाली के हजारों के दीपक आपके जीवन में ख़ुशी,शांति और आनंद से रोशन करें*
*पुनः आपको सपरिवार प्रकाश उत्सव दीपावली की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनाएं*

*🙏🙏🙏🙏🌹🙏🙏🙏🙏*

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