घुमक्कड़ की डायरी-29 Pearl Harbor, Honululu, Hawaii -USA

पर्ल हार्बर
आओ होनालुलू की सैर करें।
      मेरे दो मित्र सर्वश्री   धर्मानन्द लखेड़ा(ऋषिकेश) तथा श्री बृजभूषण भारद्वाज ( पटियाला,जो रिश्तें
में मेरे समधी भी है), इस पूरी यात्रा में  मेरे साथ मानसिक रूप से जुड़े रहे। दोनों ही प्रबुद्ध, प्रगतिशील तथा इतिहासवेत्ता भी हैं । जबहम हवाई पहुंचे तों एक के बाद एक दोनों ने ही
हवाई, होनोलूलु तथा यहां की सम्पूर्ण ऐतिहासिक
तथ्यों की जानकारी मुझे प्रदान की। न केवल भौगोलिक अपितु सांस्कृतिक तथा राजनैतिक
स्थितियों का भी बखान किया । उसमें से एक पर्ल हार्बर के बारे में बताया । यह वह स्थान है जो अमेरिका तथा जापान दोनों देशों
की आँखों का खटका सदा से बना रहा है | सन 1890 तक तो यह स्वतन्त्र राज्य था तथा स्थानिय कबीलों के मुखिया ही इसे चलाते थे । सन 1893 में अमेरिका ने एक समझौता कर इसे अधिग्रहित किया। इसके बाद तो यह शान्ति का क्षेत्र नहीं रहा। सन 1941 में जापान ने इस पर हमला किया और इस पर कब्जा
करने के बाद बहुत ही तेजी से थाईलैण्ड, मलाया
मनीला, हांगकांग,गिलबर्ट द्वीप, वेक और गौम पर कब्जा कर लिया। इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होने पर यह सिलसिला जारी रहा और अन्त में जापान के हिरोशिमा -नागासाकी नगरों पर अमेरिका की एटामिक बमबारी से जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया और युद्ध समाप्त हो गया। पर्ल हार्बर अमेरिकी नौसैन्य शक्ति का अब केन्द्र है। यह यूएस. फ्लिट का मुख्यालय है ।
अगर भूगौलिक दृष्टि से देखें तो यह अमेरिका के लॉस एंजेलस से 2400 मील, मैक्सिकों से 3600 मील,टोकियों से 3397 मील तथा आस्ट्रेलिया से 3800 मील दूर है। अमेरिका के लिये यह सामरिक दृष्टि से भी इसका महत्व है हम भारतीयों को याद रहना
चाहिये कि अमेरिका, हमारे देश के निकट ही हिन्द महासागर में स्थित डियगो गार्सिया पर भी कब्जा कर  अपना सातवां बेड़ा वहां स्थापित करना चाहता था।  हां जी, वही बेड़ा जो सन 1971 के बांगला देश मुक्ति संग्राम के समय पाकिस्तान की मदद के लिये और हमारे देश के खिलाफ भेजा गया था, पर यह तो उस समय सोवियत संघ से भारत का सैन्य समझौता, गुट निरपेक्ष आन्दोलन की शक्ति तथा इन्दिरा गांधी का मजबूत नेतृत्व था जिसने अमेरिका को रोका, वरना हम भी पर्ल हार्बर के ही एक ठीकाने होते ।
      पर्ल हार्बर को तीन हिस्सों में बांटा गया है।
 (1) मिसुरी :- यहां वह युद्धपोत है दर्शाया गया है जो विजय प्रतीक है जिसके ही एक भाग में जापान के विदेश मंत्री, नौसेना अध्यक्ष तथा राजा के प्रतिनिधि ने अमेरिका सोवियत संघ, इंग्लैण्ड,ऑस्ट्रेलिया,फ्रांस,चीन और नीदरलैण्ड आदि की संयुक्त कमान के सामने आत्म समर्पण किया था ।

(2) दूसरा यू एस. एविएशन म्यूजियम है,जहां अमेरिका की वायु सैना की शक्ति को
दिखाया है । यहां तरह- २ के आधुनिकतम लड़ाकू जहाज, हैलीकोप्टर एवम् अन्य युद्ध सामग्री से युक्त यान है।
3.सब मैरीन (पन डूब्बी) कक्ष है जहां  तरह-२ की सब मैरीन को दिखाया है और यह भी कि इनकी कितनी शक्तिशाली क्षमता है। इनमें कईयों को समुद्र में भी खड़ा किया हुआ है ताकि दर्शक इनके अन्दर जा कर भी अवलोकन कर सके ।
     इसी के साथ एक स्थान पर शान्ति केन्द्र भी बनाया है जहां बहुत ही मासूमियत से अमेरिका द्वारा कोरिया, वियतनाम, सूडान,ईराक और अफगानिस्तान में शान्ति स्थापना के लिये अमेरिकी कोशिशों को दर्शाया है ।
याद रहे कि प्रथम युद्ध से अब तक इन तमाम कार्यवाहियों में करोड़ो लोग मारे जा चुके है और इसकी कालिख इन महाशक्ति
के देशों की ही है।
 एक स्थान पर लिखा है कि
अमेरिका को युद्ध की तैयारी  इस लिए चाहिये ताकि  वह अपनी मातृभूमि की रक्षा के साथ साथ दुनिया भर में लोकतन्त्र की रक्षा कर सके
तथा आतंकवाद को रोके, यानी दूध को रखवाल
बिल्ली के जिम्मे ।
    एक कार्नर दर्शकों की प्रतिक्रिया के लिए भी सुरक्षित है। जहाँ एक कागज़ पर वे अपनी टिप्पणी लिख कर टांग सकते हैँ। हमने भी अपने विचार इस प्रकार लिखे :-
No war of any kind.
We want Peace everywhere.
साहिर लुधियाणवी की यह पंक्तियाँ इस दौर में कितनी सार्थक है :
जंग तो ख़ुद ही एक मसला है, जंग क्या मसलों का हाल देगी।
Ram Mohan Rai,
Pearl Harbor, Honolulu, Hawaii-USA.
02.12.2023

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