घूमक्कड़ की डायरी-32 आओ न्यूयोर्क चले































*आओ न्यूयोर्क चलें-1* फेसबुक पर आज की मेमोरीज में पिछले वर्ष न्यूयॉर्क यात्रा के चित्रों ने उस यादगार और उसके सृजक कुंदन चौहान का स्मरण तरोताज़ा करते हुए एक फ़िल्म की तरह रील घूम गई। अमेरिका में आप आएं और न्यूयॉर्क और यदि स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी के दीदार नहीं किये तो यात्रा अधूरी ही मानी जाति हैं, ऐसा ही विचार हमारे अज़ीज़ जहान चौधरी का भी रहा जिनका कहना था कि आप की अब यात्रा पूरी हुई।
       यह यात्रा वजूद में कैसे आई
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   भारत की आज़ादी की 75 वीं जयंती वर्ष पर फिलिदेल्फीया में सैटरडे फ्री स्कूल के उत्साही साथियों ने स्वतन्त्रता दिवस,15 अगस्त,2022 से 19 अगस्त तक एक पांच दिवसीय कार्यक्रम में गाँधी ग्लोबल फैमिली के प्रतिनिधि के रूप में हमें भी निमंत्रित किया था। और हम तो तब अमेरिका में ही थे तो यह निश्चय किया गया कि हम इसमें भाग ले। इसी बीच फ्री स्कूल के अग्रणी साथी अर्चिश्मन राजू का सुझाव था कि जब आप वहां जा ही रहे हो तो न्यू यॉर्क भी क्यों नहीं हो आते? हमें यह बात पसंद आई और हमनें वहां जाने कि योजना बनाई। बेशक़ हमारे वहां कुछ परिचित लोग थे परन्तु इतना ही काफ़ी नहीं था। हमनें संत निरंकारी मिशन के अध्यक्ष महात्मा सी0 एल0 गुलाटी जी से सम्पर्क किया और उनसे प्रार्थना की कि वे हमारी कोई ठहरने, यात्रा की कुछ व्यवस्था करवाए।
     अमेरिका, भौगोलिक दृष्टि में भारत से लगभग पांच गुणा बड़ा मुल्क़ हैं। सब जगह दूर दूर हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट या तो नदारद हैं अथवा बेहद नाकाफी हैं। इसलिए लोग अपनी नई पुरानी गाड़ियां रखते हैं अथवा जहाँ रहते हैं वहीं रह जाते हैं। ऐसा भी मानना हैं कि शासन अथवा उनके संरक्षक वर्ग भी यही चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा चार पहियाँ गाड़िया हो ताकि उनका खूब पेट्रोल (gas) लगे और वे खूब मुनाफा कमा सके। गरीब गुरबा जाये भाड़ में। इसलिए लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए हवाई जहाज का ही इस्तेमाल करते हैं। सियाटल से न्यू यॉर्क की हवाई दूरी लगभग पांच घंटे की हैं।
    इसी बीच हमनें संत निरंकारी मिशन, अमेरिका के अध्यक्ष डॉ इक़बाल जीत राय जी से बातचीत की। वे रूहानीयत से परिपूर्ण एक संजीदा इंसान हैं। उन्होंने चर्चा के दौरान हमें आश्वस्त किया कि न्यू यॉर्क में हमें हर प्रकार कि व्यवस्था मिलेगी। मैं तो पूरी तरह से भरोसे में था परन्तु मेरी पत्नी और बेटी चिंतित थे कि कैसा रहेगा। हम सियाटल के अमित ओबेरॉय के सम्पर्क में भी थे जो मिशन से जुड़े एक अत्यंत निष्ठावान युवक हैं। मैंने एक दिन उनसे जिज्ञासा वश पूछा कि हमारी वहां कैसी व्यवस्था कैसी रहेगी तो उनका कहना था कि इत्मीनान रखो न्यू यॉर्क में आपकी हर प्रकार की व्यवस्था का इंतज़ाम रहेगा। मैंने फिर उनसे कहा कि कोई परिचय आदि तो उनका कहना था कि एक ही परिचय और पासवर्ड है "धन निरंकार जी"।
    हम अपनी तैयारियों में जुटे थे कि एक बड़ी आपदा आ गई। यात्रा से ठीक एक सप्ताह पहले ही मेरी पत्नी को रात को ही असहनीय भयंकर उदर पीड़ा हुई। मुश्किल से रात गुजारी और फिर अगले दिन सुबह ही वाशिंगटन यूनिवर्सिटी मेडिकल कि इमरजेंसी में जाना पड़ा और फिर जिन्होंने तीन दिन तक अस्पताल में रख कर इसका उपचार किया। यहाँ के अस्पताल हमारे देश की तरह सर्व सुलभ नहीं हैं। बहुत ही महंगे हैं और यदि कोई बेहद इमरजेंसी नहीं हैं तो महीनों महीनों अपॉइंटमेंट नहीं मिलती।यात्रा को अभी पांच दिन शेष थे और तबियत अस्थिर थी पर हिम्मत कर हमनें यात्रा करने की ठान ही ली।
    13 अगस्त की शाम को सियाटल तोकमो एयरपोर्ट से चल कर न्यूयोर्क के जे के एफ कनेडी एयरपोर्ट पर हम 14 अगस्त के बहुत सवेरे निर्धारित समय से भी 40 मिनट पहले ही पहुँच गए । जल्दी पहुंचने की हमें ख़ुशी नहीं थी अपितु चिंता थी कि निकल कर कैसे करेंगे? पर उतरते ही हमारे पास मैसेज आया कि एन वाई एस के एक युवा आस्थावान युवा प्रदीप जी अपनी विशेष यूनिफार्म पहन कर हमें लेने के लिए पहले से ही लेने आये हुए थे। परिचय एवं अभिवादन के पश्चात हमें वे वेस्ट बेरी स्थित मिशन केंद्र में ले गए जहाँ पहले से ही प्रमुख पाल चेलानी जी और अन्य सज्जन प्रतीक्षा कर रहे थे। हम सीधे उनके गेस्ट हाउस में ले जाए गए जहाँ हमनें अपनी तीन रातें गुजारनी थी।
(क्रमश:)
Ram Mohan Rai,
Seattle, Washington- USA.
13.12.2023
रातभर हवाई सफ़र में थे पर फिर भी कोई थकावट नहीं थी एक अज़ीब तरह का उत्साह एवम् उर्ज़ा थी । हमारे पास कुल तीन दिन थे और घूमने और देखने के लिए अनेक स्थान और उनकी चाहत ही उत्साह का स्रोत थी । पर उस दिन पूरा दिन ही आराम , लोगों से मिलने जुलने और बातचीत में ही बीत गया । विषय रहा शहीद भगत सिंह और महात्मा गांधी । यहाँ काफ़ी नौजवान इकट्ठे थे ,जिनमे से अधिकांश भारतीय पंजाब के थे । जो पिछले अनेक वर्षों से अमेरिका में रह थे थे । इनमें कुंदन चौहान काफ़ी जिज्ञासु था । ख़ास सवाल थे भगत सिंह और आतंकवाद , उनकी महात्मा गांधी और उनकी विचारधारा से सहमति - असहमति और फिर ख़ास सवाल कि यदि बापू चाहते तो भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी से बचा सकते थे ? काफ़ी गंभीर और विस्तृत संवाद था और मुझे संतोष रहा कि मैं अपनी बात कहने में सफल था । नोजवानों के बीच ऐसी बातचीत अवश्य होनी चाहिए ताकि हम उन्हें बेबुनियाद बातों , मिथ्या तर्कों और अफ़वाहों से बचा सकते हैं। दोपहर को ख़ाना खा कर कुछ आराम करना मुनासिब समझा । पाल चेलानी जी ने भी इसी दौरान हमें पूरे निरंकारी भवन का चप्पा -चप्पा घुमाने और इसकी हर बारीकी को समझानें का सुअवसर प्रदान किया । यह केंद्र लगभग दो एकर में बना हुआ है । इसी स्थान पर पहले एक चर्च होती थी जिसे बाद में निरंकारी मिशन ने बड़ी कीमत में खरीदा। पहले यह एक पुरानी इमारत थी जिसे वर्तमान रूप में सजानें और संवारने में इतनी ही लागत लगी और श्रम दान का पूरा काम स्थानीय संगत ने किया और अब यह एक बहुत ही सुंदर और व्यवस्थित बिल्डिंग के रूप में खड़ी है , जो अब न केवल आकर्षक ही नहीं है अपितु सराहनीय भी है ।
     जहां हमने अपनी विचारधारा के आधार पर बातचीत रखी वहीं निरंकार मिशन को भी समझने का प्रयास किया । वास्तव में यह कोई धर्म, संप्रदाय अथवा फ़िरक़ा नहीं है अपितु धर्म निरपेक्ष आधार पर रूहानियत और इंसानियत को साथ साथ जोड़ने का एक मिशन है , जिसकी शुरुआत सन् 1929 में पेशावर , वर्तमान पाकिस्तान में संत बूटा सिंह जी द्वारा की गई थी । इनका मानना है की ईश्वर अविनाशी है तथा अजर ,अमर और निराकार है । वह सर्व व्यापक है इसलिए सबके साथ ही नहीं है अपितु सब के भीतर है । इस मिशन के पाँच सूत्र है :- 1. तन, मन और धन सब कुछ सत्गुरु को अर्पित है और वह ही साधन मात्र है जो सभी दैहिक - दैविक कष्टों से मुक्ति की राह दिखाने में सहायक है ।
2. ईश्वर निराकार है और वह किसी भी स्थूल अवस्था में नहीं है और निराकार होने की वजह से सर्वव्यापक और अविनाशी है 3.शरीर और आत्मा दोनों अलग अवस्था में है । आत्मा का लिंग, रंग , पहनना ओढ़ना , ख़ान पान से कोई लेना देना नहीं है ।
4. ईश्वर प्राप्ति की मुक्त अवस्था इसी जन्म में हो सकती है इसके लिये किसी भी प्रकार से गृह त्याग और संन्यास आदि लेने की विरक्त अवस्था की आवश्यकता नहीं है ।
5. यद्यपि ब्रह्मज्ञान प्राप्त लेने के लिए किसी पर भी पाबंदी नहीं है और वह सहज और उदार है परंतु यह ज्ञान सत्गुरु अथवा उनके द्वारा मनोनीत ज्ञान प्रचारक ही देने के अधिकारी है ।
    संत बूटा सिंह जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात सन 1943 में उनके उत्तराधिकारी बाबा अवतार सिंह जी ने मिशन के प्रमुख का कार्यभार सम्भाला और उनके पश्चात सन 1962 मे बाबा गुरबचन सिंह जी ने प्रमुख पद भार संभाला। इनके कार्यकाल में मिशन के काम को नये आयाम मिले । यह वह दौर था जब पंजाब में मिलिटेंसी का दौर था और इन तत्वों ने पाँच विचारधारा के संगठनों को सिख विरोधी घोषित कर अपना दुश्मन करार किया था । वे राजनीतिक तौर पर कम्युनिस्टों को अपना दुश्मन मानते थे वहीं निरंकारी मिशन आदि को धर्म विरोधी मानते थे ।उन्होंने अपनी इसी उग्र मान्यता के ज़रिए हज़ारों निर्दोष लोगों की हत्याएँ की । वर्ष 1978 में बैसाखी के पर्व पर अमृतसर में निरंकार मिशन के एक समागम में इन्हीं मिलिटेंट्स ने हमला किया जिसने 11 लोग मारे गए और सैंकड़ों घायल हुए । एक मुक़दमा भी दायर हुआ जिसमें निरंकारी मुखिया बाबा ग़ुरबचन सिंह जी को भी अभियुक्त बनाया गया । बाद में यह केस सेशंस जज , करनाल की अदालत में ट्रांसफ़र हो कर आया और फिर यहीं इसकी ट्रायल हुई । मृतक लोगों में कुल 2 लोग ही मिशन के थे परंतु यह बात जानते हुए भी सेशंस जज ने बाबा जी से सवाल किया कि मरने वालों में कुल कितने लोग आपके हैं ? उनका सहज जवाब था कि सभी 11 मृतक उनके ही हैं । यह सुन कर जज अचंभित था । बाद में सत्य की हमेशा की तरह जीत हुई और मुक़दमा बेबुनियाद और झूठा साबित हुआ । यह बात आतंकवादियों को नागवार साबित हुई और फिर एक दिन बाबा जी की षड्यंत्र पूर्वक हत्या कर दी । इस शहादत के बाद साल 1980 मे उनके उत्तराधिकारी के रूप में बाबा हरदेव सिंह जी ने मिशन की कमान सँभाली और उन्होंने अपने पहले ही फ़रमान में कहा कि रक्त नालियों में नहीं अपितु नाड़ियों में बहना चाहिये ।
 बाबा हरदेव सिंह जी के कार्यकाल में मिशन ने देश - देशांतर में न केवल गुणात्मक और संख्यात्मक उत्तरोत्तर प्रगति की । आध्यात्मिक भाव से लाखों लोग जहां इससे जुड़े वहीं रक्तदान , पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षारोपण , स्वच्छता , शिक्षण -प्रशिक्षण के विश्व विख्यात कार्य प्रारंभ हुए । हमें इस बात का गौरव है कि हमारे संगठन गांधी ग्लोबल फ़ैमिली ने वर्ष 2013 में इन्हीं सभी कार्यों से प्रभावित होकर बाबा जी को शांति और सद्भाव के लिए महात्मा गांधी सेवा मैडल प्रदान किया और यही वह ऐतिहासिक क्षण था जब जीजीएफ़ और मिशन ने वैश्विक स्तर पर साथ मिल कर काम लेने का निश्चय किया ।
      साल 2016 मे एक कार एक्सीडेंट में बाबा हरदेव सिंह जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात माता सविंद्र कौर जी ने मिशन के कार्यों को विस्तार दिया और फिर उनके पश्चात सन 2018 मे वर्तमान सत्गुरु माता सुदीक्षा जी इस सेवा , संगत और सिमरन के विचार प्रवाह को आगे बढ़ा रही है । मिशन का वार्षिक आध्यात्मिक समागम अब दिल्ली से बदल कर पानीपत के समालखा में स्थित विशाल भू भाग पर होता है परंतु मिशन का कार्य विस्तार इतना है कि सैंकड़ों एकर में फैला यह क्षेत्र भी अब छोटा महसूस होने लगा है । मिशन के सभी कार्य पारदर्शी है और किसी भी प्रकार की कोई राजनीतिक संबद्धता इसमें नहीं है ।
     वर्तमान मिशन प्रमुख एक युवा महिला है जो मनोविज्ञान विषय में मास्टर्स है और जिनकी सहजता और सरलता उनके जीवन ,कार्यों और भावों में स्पष्ट दृष्टि गोचर है ।
     न्यूयॉर्क में ही मिशन से जुड़े अनेक महापुरुषों से मिलने का सुअवसर मिला तथा मिशन के बारे में ओर अधिक जानकारी मिलने का सुअवसर भी । ज्ञान प्रचारक संतोष माता जी के दर्शन सौभाग्य का सूचक था । दूसरे शब्दों में कहें कि एक आर्य समाजी परिवार में जन्म लेकर और माता -पिता द्वारा दिये हुए विचारों से पुष्ट होकर ईश्वर को निराकार मनाने वाले निरंकारी तो हम पहले से ही थे परंतु निरंकार ईश्वर का ज्ञान प्राप्त लेने का दुर्लभ अवसर इस बैठक से हुआ । मिशन का मानना है कि जब हम किसी की भी सेवा सर्व व्यापक परमात्मा को समर्पित करते हैं तो वह ही वास्तविक है और जब सामूहिक रूप से करते है तो संगत है तथा इसे ईश्वर के प्रति समर्पित कर उसका संरक्षण माँगना सिमरन है । सत्गुरु एक मार्ग दर्शक है । उसमें भी उस जगत नियंता की ज्योति है जैसी प्रत्येक में , हम से कुछ भी ज़्यादा और कम नहीं । सत्गुरु मुखिया और संरक्षक के रूप में कार्यरत है । मिशन में किसी भी प्रकार की जड़ पूजा निषेध है । मिशन के यह सभी कार्य कुछ ऐसे से ही लगे जैसी मेरी पुरातन मान्यताओं में थे । यहाँ मिलें संजीव पॉवरी,शमा ख़ान, प्रदीप जी, मीना कुमार आदि सभी के व्यवहार ने इन विचारों को संपुष्ट किया ।
    शाम होने लगी थी की क्यों न आज किसी स्थानीय थिएटर में लगी लाल सिंह चढ़ढ़ा फ़िल्म को देख लिया जाए और फिर हम फ़िल्म देखने चले हुए और डिनर कर देर रात को लौटे । आज की इस यात्रा से मन में सकून था कि चाहे कुछ भी कहो पूरा दिन सार्थक रहा ।
Ram Mohan Rai.
Seattle, Washington- USA.
14.12.2023
  आओ न्यूयोर्क की सैर करें
    अपने चार दिन के न्यूयोर्क प्रवास के दौरान हम संत निरंकारी मिशन के अतिथि गृह में ही रुके। इस दौरान प्रमुख पाल चेलानी और उनकी पत्नी, खान, प्रदीप जी ने हमारा हर प्रकार से ख्याल रखा. यह इस लिए भी जरूरी था कि मेरी पत्नी हमारे आने से पहले ही पेट में इन्फेक्शन कि वजह से यूनिवसिटी ऑफ़ वाशिंगटन अस्पताल, सीटटल में तीन रोज़ दाखिल रही थी और हम बहुत ही हिम्मत करके यहाँ आये थे।
     आज 15 अगस्त का दिन था यानि की भारत की आज़ादी का दिन। आज का यह दिन विशेष भी था क्योंकि यह हमारी स्वतन्त्रता की 75 वीं वर्षगाठ यानि अमृत महोत्सव का दिन था। मिशन में भी आज इसे मनाने के लिए यहाँ एक विशेष आयोजन किया गया था। अनेक श्रद्धालु तड़के ही यहाँ आकर भोजन बनाने में लग गए और लगभग 11 बजे से पहले उन्होंने लगभग 250 लोगों के लिए अनेक तरह के मीठे, नमकीन और खट्टे व्यंजन तैयार कर दिए।
    इसी दौरान हमारी विशेष मुलाक़ात एक बुज़ुर्ग तपस्वनी महिला संतोष जी से करवाई गई। वे मिशन के कार्यों से लगभग 50-60 वर्षों से जुडी हैँ और उनकी योग्यता तथा विद्वत्ता के कारण उन्हें ज्ञान प्रचारक की प्रतिष्ठा दी गई हैँ। ज्ञान प्रचारक वह अधिकृत व्यक्ति होता हैँ जो ईश्वरीय ज्ञान को जिज्ञासुओ को प्रदान करता है।
      संतोष माता जी विशेष रूप से न्यूजर्सी से पधारी थी। वे एक अत्यंत वात्सल्यपूर्ण एवम स्नेही महिला हैं। शक्ल सूरत में वे बिलकुल मेरी माँ जैसी थी और उनसे बात करके तो हम पति-पत्नी दोनों ही भावुक हो गए। हमें ऐसा लगा की मानो हम अपनी बिछड़ी माँ से मिले हो। वे भी बार बार हमें कह रही थी कि बेटा वह हमारी माँ ही हैं। उनसे बातचीत कर एवम प्यार पाकर हम कृत कृत अनुभव कर रहे थे।
   उनका सानिध्य प्राप्त कर हम आज होने वाली संगत में भाग लेने के लिए मुख्य सभागार में दाखिल हुए जहाँ सैंकड़ो लोग पहले से ही मौजूद थे। आज यहाँ स्वतन्त्रता दिवस के साथ साथ मुक्ति पर्व का भी आयोजन था जो हर पंद्रह अगस्त को मिशन के द्वारा दुनियां भर के अपने तमाम केंद्रों में अपने उन अग्रज दिवंगत महात्माओं के लिए मनाया जाता हैं जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मिशन के सेवा, संगत और सिमरण के कार्यों को प्रचारित प्रसारित करने के लिए समर्पित किया।
   इस अवसर पर गाँधी ग्लोबल फैमिली के प्रतिनिधि के नाते मुझे अपनी बात कहने का भी अवसर मिला। जी जी एफ और मिशन किस प्रकार मिल कर काम कर सकते है इसकी भी योजना हमें यहाँ बनाने को मिली।
   संगत के पश्चात लंगर का आयोजन था जिसमे भोजन के साथ साथ अनेक लोगों से मिलने का भी अवसर मिला। पाल चेलानी जी को महात्मा गाँधी साहित्य, गाँधी ग्लोबल फैमिली का स्मृति चिन्ह और राष्ट्रीय झंडा प्रदान कर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई। मिशन की अग्रणी प्रचारक श्रीमती शशि जी से मुलाक़ात कर तो अत्यंत हर्ष हुआ। वे एक मृदु भाषी एवम सुसंस्कृत महिला है जो ज्ञान के वैभव से सम्पन्न हैँ।
   शाम को हम न्यूयोर्क के समंदर तट पर शमा खान और परिवार के साथ पिकनिक के लिए गए बहुत ही दिलचस्प नज़ारा था। हमनें भी पानी के बीच जाकर उसका आनंद लिया। बेशक पानी का स्वाद तो एक जैसा है पर रूप रंग सबका अलग -अलग है।
Ram Mohan Rai,
Newyork, USA.
15.08.2022



न्यूयॉर्क में आने का हमारा मुख्य आकर्षण स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी रहा। सुबह ही हमारे प्रिय कुंदन चौहान हमें अपनी गाड़ी में लेने के लिए निरंकारी भवन पहुँच गए । हमने भी जल्दी-जल्दी नाश्ता किया और चल पड़े 
न्यूयॉर्क की सैर करने। रास्ते में रोजी सिंह के आइसक्रीम पार्लर पर रुके और उन्होंने हमें बड़े-बड़े कोन खाने के लिए पेश किए। नाश्ते के बाद हमारी हिम्मत नहीं थी कि इतने बड़े कोन खा सके परंतु उनका स्नेहपूर्ण आग्रह इतना था कि मना नहीं कर सके। उसके बाद हम सीधे स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी पहुंचे। लाइन में खड़े होकर टिकट लिया और फिर पानी के छोटे जहाज से उसे टापू पर पहुंचे जहाँ यह मूर्ति लगी हुई है। यह मूर्ति 1885 से लगी हुई है। इसकी लंबाई 305 फीट यानी 93 मीटर है और इसमें दर्शाया गया है कि एक महिला अपने दाएं हाथ को ऊंचा कर एक मशाल थामे हुए हैं और दूसरे हाथ में 4 जुलाई 1776 को पारित आजादी की उद्घोषणा की पुस्तक है। मूर्ति के हाथ में पड़ी मशाल की ऊंचाई हाथ से मशाल के अंतिम अग्नि शिखर तक 29 फीट है। हमने इस टापू के चारों ओर चक्कर लगाया और मूर्ति की भव्यता एवं उसमें प्रकट संदेश के प्रत्येक पक्ष को जानने की कोशिश की। इतना मनभावक दृश्य था कि यहाँ से जाने का कतई मन नहीं था। इस टापू से ही न्यूयॉर्क की ऊंची- ऊंची अटालिकाओं की इमारतों के दर्शन होते हैं और इसके बीच के समंदर में हिलोरें खाती लहरें इसके सौंदर्य को और ज्यादा खूबसूरत बना देती हैं। जहाज से एक अन्य छोटे टापू पर पहुँचकर हमने वहां स्थित एक संग्रहालय का भी अवलोकन किया। वहाँ रखी हर चीज अपने में छिपे इतिहास को प्रकट करती थी। हमें हमारे दोस्त जहान की बात बार-बार याद आ रही थी कि जिसने स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी नहीं देखा उसने अमेरिका को भी नहीं देखा । आज के आनंद दुर्लभ थे और अविस्मरणीय भी।      
           इसके बाद हम उस ऐतिहासिक स्थल पर पहुंचे जिसे 9/11 के नाम से जाना जाता है। एक विशाल ऊंची इमारत जिसे आतंकवादियों ने 11 सितंबर 2001 को हवाई हमला कर नेस्तनाबूद कर दिया था। अब वहाँ राष्ट्रीय 11 सितंबर स्मारक और संग्रहालय का निर्माण किया गया है। जो न्यूयॉर्क शहर में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का हिस्सा है । इस हमले में कुल 2977 लोग मारे गए थे। उन्हीं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वहाँ स्थित बिल्डिंग के स्थान पर एक चकोर कुंड बनाया गया है। जिसके चारों तरफ खड़े होकर लोग मृतकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। आतंकवाद और हिंसा के खिलाफ लड़ने का संकल्प लेते हैं। उसके साथ ही एक ऐसा स्थान है जहाँ लोग सूत्र बांधते हैं जो इस बात का परिचायक है कि अब हिंसा कभी भी बर्दाश्त नहीं होगी। वैसे तो अब नई बिल्डिंग बना दी गई है। अब एक नया वर्ड ट्रेड सेंटर बना दिया गया है। परंतु यहाँ आकर शरीर रोमांचित हो जाता है और आंखें नम।
         हमने यहीं अपनी गाड़ी पार्किंग में खड़ी की और पैदल ही वॉल स्ट्रीट पहुंचे । यह स्थान व्यापारिक सट्टेबाजी का सबसे बड़ा केंद्र है। इस स्ट्रीट के बीचो-बीच एक सांड की कांस्य प्रतिमा है जहाँ झुककर इसके नीचे से गुजरना शुभ माना जाता है । इस शुभता को प्राप्त करने वालों की भी एक लंबी लाइन थी। लोग नीचे से गुजरते और अपनी फोटो खिंचवाते। सामने ही न्यूयॉर्क संग्रहालय है जहाँ पर संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्माण के इतिहास, प्रगति और स्थिति को दर्शाया गया है। 
          कुछ दूर पैदल चलकर हम लोग स्ट्रीट पहुंचे। शाम ढल चुकी थी और पूरा वातावरण रंग बिरंगी लाइटों से चमक रहा था। वहाँ बने एक मचान पर और उसके नीचे चौंक पर हजारों लोग तरह-तरह के कौतुक करके अपना मनोरंजन कर रहे थे। चौंक के चारों तरफ रंगदार लाइट्स इसको भव्य बना रही थीं। हम भी वहाँ गए। कुछ देर रुके, फोटो खिंचवाये और आगे चल पड़े। अमेरिका और यूरोप में मैंने पाया कि वहाँ के लोग मिलनसार हैं और पर्यटक को हर प्रकार की सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं। बस यदि आपने फोटो खिंचवानी है तो इतना ही बोलिए कि,' कैन यू
टेक पिक्चर' तो वे आपकी विभिन्न मुद्राओं में आपके मोबाइल से फोटो लेनी शुरू कर देंगे। वहाँ सेल्फी का कम रिवाज है क्योंकि सेल्फी वहाँ ली जाती है जहाँ कोई दूसरा फोटो लेने वाला न हो। वहाँ पर आपकी सहायता के लिए फोटोग्राफर मौजूद है।
         मन में अत्यंत उत्कंठा थी कि न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय को भी देखा जाए। बेशक समय कम था परंतु हमारा पुत्रवत गाइड और सहायक कुंदन हमारी किसी भी चाहत को पूरा किए बिना नहीं लौटना चाहता था। कुछ देर बाद हम संयुक्त राष्ट्र संघ के लंबे- चौड़े परिसर में स्थित भवन के चारों तरफ चक्कर लगा रहे थे। शाम का समय था। वहाँ लगे सैकड़ो पोलो पर झंडे तो नहीं लगे थे परंतु मन में एक अद्भुत कल्पना थी कि कल जब इन पर झंडे सजाए जाएंगे तो दृश्य कितना सुंदर लगेगा। 
         हमे आज डिनर के लिए हमारे पानीपत के पारिवारिक मित्र बालकृष्ण धीमान की सुपुत्री ने अपने घर पर निमंत्रित किया था। उनका घर बिल्कुल ही इस स्थान से नजदीक था। हम वहाँ पहुंचे और उन्होंने हमारा भावभीना स्वागत किया और सुस्वाद डिनर भी दिया। उनकी माता का निधन कुछ माह पूर्व कोविड के दौरान पानीपत में हो गया था। परंतु वे यहाँ आने में विवश थी। मेरी पत्नी से मिलकर वे अत्यंत भावुक थीं और बार-बार कह रही थीं कि उसे तो ऐसा लग रहा है कि उसकी मम्मी आ गई है। हमने भी उसे सांत्वना प्रदान की और अपने शहर की परंपरा को निभाते हुए नेग प्रदान कर रुखसती की।    
           रात के 10 बजने को थे परंतु कुंदन चौहान का उनके घर चलने के लिए आग्रह था जिसे हम टाल नहीं पा रहे थे। कुंदन की पत्नी वकील है और न्यूयॉर्क में इमीग्रेशन के केसेस की वकालत करने का काम करती है और उनकी एक बहुत प्यारी छोटी बेटी है। परिवार से मिलकर अत्यंत आत्मीयता का अनुभव हुआ। आज का पूरा दिन बेहद थकावट भरा था परंतु पूरे दिन की दौड़- धूप के बावजूद भी शरीर, मन और दिमाग में ताजगी थी और इस बात की संतुष्टि भी कि जो यात्रा चाह रहे थे वह पूरी हुई।










































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