Udaipur Diary-5 Devi Lal ji and Prem Didi

Devi Lal ji and Prem Didi  
     श्री देवी लाल जी माली मेरे बड़े साढू भाई है. उनकी सादगी, सक्रियता एवम योग्यता अनुपम है. आज लगभग डेढ़ वर्ष उपरांत , हम उनके डूंगरपुर स्थित घर उनके तथा उनकी पत्नी प्रेम दीदी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करने आये है. वें हमेशा न केवल मेरे अपितु सभी के लिए एक श्रेष्ठ मार्गदर्शक, प्रेरक एवम शुभचिंतक रहें है. जैसे ही कोई उनके घर पहुंचता है तो वें एक बच्चे की तरह भाव विभोर होकर अपने मधुर एवम काव्यात्मक निश्छल शब्दों में उनका स्वागत करते है.
    आज घर पहुंच कर उनके पास पहुंच कर जहाँ दीदी के हाथ का बना सुस्वाद भोजन खाया वहीं माली जी के जीवन, दर्शन एवम अनुभवों पर भी खूब चर्चा की. उनके पास हम कुल चार घंटे रहें पर इसका खूब सदुपयोग रहा. विनोबा जी कहाँ करते थे चर्चा तो केवल एक घड़ी की ही होती है यानि 24 मिनट की बाकि तो और... और कह कर बतियाते रहते है. मेरी माँ कहा करती थी कि जब वें गाय का दूध दोहती है तो गायत्री मंत्र पढ़ते हुए अपने परिवार के स्वास्थ्य तथा प्रगति के लिए अनेक प्रार्थनाएं करती है इसलिए उसके द्वारा तैयार किया गया दूध और अन्य उत्पाद किसी भी गवाले एवम दुकानदार का पर्याय नहीं बन सकते. दीदी द्वारा बनाई खीर, आलू- मटर और कच्चे केले की सब्ज़ी, मक्खन की तरह मुलायम रोटियां और गरमागरम भात आज मेरी माँ के कथन को याद दिलवा रहा था.
   देवी लाल जी का जन्म इसी डूंगरपुर में एक पुरषार्थी परिवार में 28 जून 1940 को हुआ था. यद्यपि उनके पिता श्री चम्पा लाल जी एवम माता जमुना देवी जी कतई निरक्षर थे परन्तु इसके बावजूद भी शिक्षा के महत्व को जानते थे अत: उन्होंने अपने दोनों पुत्रों नानू राम जी और देवी लाल जी और पुत्री को उत्तम से उत्तम शिक्षा प्रदान की. मेरे साढू भाई ने स्थानीय प्राइमरी और हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त कर सन 1956 में उच्च शिक्षा के लिए उदयपुर चले गए और वहीं उदयपुर यूनिवर्सिटी से एमएससी पास की. आपकी कुशाग्र बुद्धि के कारण इस बालक ने एमएससी (मैथमेटिक्स) में यूनिवर्सिटी टॉप कर गोल्ड मैडल प्राप्त किया. वर्ष 1976 तक उदयपुर के  बीo एनo कॉलेज में गणित विषय के प्राध्यापक पद पर कार्य करते रहें और फिर उसके पश्चात राजकीय कॉलेज, डूंगरपुर में पोस्टिंग हुई और अपनी सेवा निवृति पर्यन्त वर्ष 2000 तक कार्यरत रहें और उपचार्य पद से रिटायरमेंट हुई.
    अपनी छोटी अवस्था अवस्था से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस) से जुड़ गए. यह वह समय था जब महात्मा गाँधी की शहादत के बाद तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री सरदार पटेल ने संघ की गतिविधियों पर पाबंदी लगा दिया था . विद्यार्थी काल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रहें और बाद में अपनी मातृ संस्था आर एस एस के जिला प्रमुख रहें और  विश्व हिन्दू परिषद का भी कार्यभार संभाला . इसी दौरान उदयपुर में ही निम्बार्क वैष्णव सम्प्रदाय से जुड़े और उसके महंत मुरली मनोहर शरण जी महाराज के अत्यंत प्रिय शिष्य रहें. इस तमाम सक्रियताओं के बावजूद भी उनकी महान उपलब्धि उनके विषय के एक विख्याता के रूप में ही हुई और आज हर कोई उनके क्षेत्र में उन्हें किसी प्रचारक और नेता के रूप में नहीं अपितु गणित के माली सर के नाम से जानता है. पहले तो डूंगरपुर छोटा सा कस्बा था पर आज तो एक बड़ा विकासमान शहर है, का कोई ही ऐसा व्यक्ति होगा जो उनसे पढ़ा न हों.
    मेरी साली साहिबा प्रेमलता दीदी ने भी हरदम उनका साथ निभाया. बेशक उनके पिता श्री गणेश लाल माली उदयपुर में एक वरिष्ठ वकील ही नहीं अपितु एक प्रमुख राजनेता और राज्यसभा के सदस्य तक रहें परन्तु अपने पति के साथ रहते हुए उन्हीं की तरह जीवन यापन का ढंग स्तुतय है. इनकी जन्म भूमि तीर्थ नगरी श्री नाथद्वारा है और वहीं उन्होंने इंटर तक की शिक्षा प्राप्त की. देवीलाल जी और प्रेम दीदी का संरक्षण और सानिध्य प्राप्त कर उनके दोनों बेटों विवेक और राहुल और चारों पुत्रियों अनीता, भारती, कल्पना और स्वo रचना ने भी अलग अलग विषयों की उच्च शिक्षा प्रदान कर प्रतिष्ठा प्राप्त की है.
   यह पूरा परिवार अपने व्यवहार, क्रिया कलाप और संस्कारों से एक अनुकरणीय आदर्श जीवन जीने का प्रेरक है.
     माली साहब बेशक अब 82 वर्ष के हों गए है और प्रेम दीदी भी अब 75-77 की, परन्तु उनकी ऊर्जा और स्फूर्ति बेमिसाल है.  हमारे लौटने से पूर्व वें अपने विकसित शहर का कोना- कोना दिखाना चाहते थे और इसी आशा से वें हमें ले गए बाज़ार के बीच से झील, मंदिर और अन्य दर्शनीय स्थान दिखाने. एक गाइड की तरह वें एक एक स्थान का इतिहास और महत्व बता रहें थे. हमें उदयपुर वापिस लौटना था और गाड़ी का ड्राइवर कोई और नहीं मैं ही था पर न तो उनका और न ही हमारा उन्हें छोड़ने का मन था पर विवशता थी.
  परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है कि इस माली दम्पत्ति का जीवन स्वास्थ्य मय हों और हमेशा की तरह सुखमय और सेवामय भी. हम यह भी कामना करते है कि हमेशा की तरह उनके विश्वास और आशीर्वाद के पात्र बने रहें.
Ram Mohan Rai.
Dungarpur (Rajasthan)
26.02.2024.

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