Udaipur-8. Navlakha Mahal, Gulab Bagh, Udaipur
गुलाब बाग में नवलखा महल
सन 1983 में मेरा संबंध उदयपुर से बना जब यहाँ के प्रतिष्ठित एडवोकेट तथा राजनेता श्री गणेश लाल माली, पूर्व सांसद की पुत्री कृष्णा कांता के साथ मेरा विवाह संपन्न हुआ। विवाह के सभी संस्कार तो जयपुर में हुए थे परंतु कुछ ही दिनों बाद यहाँ आना हुआ।
मेरे माता-पिता आर्य समाज के विचारों से ओतप्रोत थे। महर्षि दयानंद सरस्वती उनके लिए एक आदर्श थे और सत्यार्थ प्रकाश एक ऐसा ग्रंथ था जिसके विचारों से हम सब अभिभूत थे। विवाह से पूर्व अनेकों बार समूचे सत्यार्थ प्रकाश को मैंने श्रद्धा भाव से पढ़ा था और यहाँ तक जब दसवीं की बोर्ड परीक्षा में हिंदी विषय में मेरी प्रिय पुस्तक का प्रस्ताव आया था तब मैंने परीक्षा काल के तीन घंटे में अकेले ढाई घंटे तक सत्यार्थ प्रकाश के हर पहलू को रखने की कोशिश की थी। बाद में मेरे मित्रों का कहना था कि चूंकि तुमने अन्य प्रश्नों के उत्तर देने में समय नहीं लगाया है इसलिए प्रस्ताव में चाहे पूरे नंबर आ जाएं परंतु अन्य प्रश्नों के उत्तर में तुम मार्जनल ही रहोगे। परीक्षा परिणाम आया, वह मेरे लिए अद्भुत था और उसने मेरे मित्रों को गलत ठहराया। उस विषय के इम्तिहान में मुझे 78/100 अंक प्राप्त हुए थे।
मेरी माता घर में नित्य यज्ञ के अलावा नित्यप्रति सत्यार्थ प्रकाश के किसी न किसी समुल्लास का पाठ भी करती थी । हमारे लिए सत्यार्थ प्रकाश कोई धर्म ग्रंथ न होकर जीवन जीने के लिए मार्गदर्शिका थी जो अंधकार को हटाकर ज्ञान का सूर्य उदय करती थी। इस ग्रंथ ने न केवल पौराणिक मतों का अपितु अन्य मजहबों तथा ग्रंथों की भी सत्यता को भी उजागर किया था और दूसरे शब्दों में कहे तो यह एक धर्मनिरपेक्ष पुस्तक है।
उदयपुर मेरे लिए मात्र ससुराल ही नहीं रही अपितु वह स्थान भी रहा जहाँ स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश की रचना की थी । इसलिए विवाह के उपरांत जब पहली बार मैं और मेरी पत्नी उदयपुर दर्शन के लिए निकले तो मैं उन्हें गुलाब बाग भी ले गया जहाँ स्थित नवलखा महल में महर्षि दयानंद सरस्वती ने साढे छह महीने रुककर सत्यार्थ प्रकाश की रचना की थी। वहाँ जाना मेरे लिए आस्था भी थी व प्रतिबद्धता भी। उस समय वहाँ जाकर मुझे बेहद निराशा हुई कि यह ऐतिहासिक गुलाब बाग सूखा और मुरझाया हुआ है। इक्का- दुक्का ही पर्यटक वहाँ देखने को मिले। नवलखा महल में जाकर और निराशा हुई। स्वामी दयानंद की वह तपस्थली पूरी तरह से सुनसान थी । हां, एक ब्रह्मचारी जी मिले। वह अपने अल्प ज्ञान से ऋषि दयानंद के यौगिक चमत्कारों को तो बता रहे थे परंतु उनके विचारों से अनभिज्ञ थे।
आज 41 वर्ष बाद फिर हम इस नवलखा महल में गुलाब बाग को देखने के लिए आर्य समाज के अनेक मित्र सभासदों की प्रेरणा से आए हैं। पर आज न तो वैसा गुलाब बाग है न ही वैसा नवलखा महल। बाग में चारों ओर हरियाली ही हरियाली है। सैकड़ो की संख्या में पर्यटक घूमते मिले । बाग में घुसते ही जगह-जगह सत्यार्थ प्रकाश 'कल्चरल सैंटर 'के बोर्ड लगे हैं जो दिशा सूचक है, नवलखा महल का रास्ता बताने के लिए। कई मीलों फैला ये गुलाब बाग जहाँ पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है वहीं अब यह नवलखा महल उनका प्रेरणा स्थल है।
नवलखा महल के मुख्य द्वार के दोनों ओर वेदों के उदगाता ऋषियों आदित्य,अग्नि, वायु और अंगिरा के सुंदर भित्ति चित्र लगे हैं और अंदर घुसते ही एक बड़ा स्वागत कक्ष है जिसके एक तरफ 100 से भी ज्यादा महापुरुषों के सुंदर चित्र एक साथ जड़े हैं जो मन को प्रसन्नता प्रदान करते हैं। चित्रों में कहीं भी संकीर्णता नहीं है। महापुरुषों के चित्रों में महात्मा गांधी और विनोबा भावे बिल्कुल मध्य में विराजमान है जबकि मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों के चित्र भी इसमें रखे गए हैं। मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने मेरे शहर पानीपत से संबंध रखने प्रसिद्ध वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर का चित्र भी वहाँ लगा देखा। आगे चलकर एक चौंक है और चौंक के उपरांत एक बड़े कक्ष में 16 संस्कारों की पद्धति को देश के विभिन्न सांस्कृतिक रंगों से संजोकर दिखाया गया है और उसके साथ लगे एक कक्ष में ऋषि दयानंद के 67 तैलीय चित्रों को सुसज्जित किया गया है जिसमें उनके जीवन की एक बहुत ही आकर्षक झांकी दर्शायी गई है। कुछ आगे बढ़कर हमारे महापुरुषों के मिथ्या स्वरूपों के पाखंड को भी उनके वास्तविक चरित्र को बताकर उधेड़ा गया है और उसी कक्ष में आगे चलकर महर्षि दयानंद सरस्वती की अनुपम कृति 'सत्यार्थ प्रकाश' के 23 भाषाओं में अनुवाद को दर्शाया गया है । यह संपूर्ण प्रदर्शनी प्रत्येक दर्शक के शरीर में अद्भुत रोमांच पैदा करती है। एक बहुत ही सुंदर थियेटर भी बनाया गया है जहाँ लगभग 20 मिनट की महर्षि दयानंद सरस्वती के चरित पर फिल्म दिखाई जाती है। सचमुच में यह एक विलक्षण नवा नवलखा महल है जिसे देखकर हम गदगद हैं।
मैंने भी इस पूरे वातावरण को अपने मोबाइल की वीडियो में उतारने का एक प्रयास किया तभी स्वागत कक्ष पर बैठी एक बालिका ने कहा कि क्या मैं सत्यार्थ प्रकाश न्यास के अध्यक्ष डॉ. अशोक आर्य से भेंट करना चाहूंगा? मेरी सहमति पर वह मुझे उनके पास ले गई। डॉ. साहब मेरे ससुराल पक्ष से पुराने परिचित हैं। उनसे बात कर बेहद प्रसन्नता हुई और महसूस किया कि इस व्यक्ति के दिलों दिमाग में इस स्थल को एक ऐतिहासिक स्वरूप देने की इच्छाशक्ति है। ऐसे ही समर्पित और प्रतिबद्ध आर्यजन ही ऋषि ऋण से उऋण कर सकते हैं। मैं अपनी ओर से न्यास के प्रति संपूर्ण शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ ।
*जिसने नवलखा महल नहीं देखा उसका उदयपुर आना अपूर्ण है*।
Ram Mohan Rai,
28.02.2024
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