Udaipur Diary-4 (Dungarpur)
केसरिया जी -ऋषभ देव से चल कर लगभग एक घंटे में सड़क मार्ग से डूंगरपुर पहुंच गए. मेरे साढू भाई देवीलाल जी का घर मुख्य बाज़ार को पार करके है पर चिंता रही की कहीं गाड़ी फंस न जाए इसलिए कुछ खुला रास्ता जो मुरला गणेश जी के मंदिर से होकर गुजरता था उससे ही पहुंचने का निर्णय लिए. देवीलाल जी का कहना था कि जब इस रास्ते से होकर ही आ रहें हों तो मंदिर दर्शन करके ही आओ. पूछते पूछाते हम मंदिर तक के साफ सुथरे रास्ते पर चल कर पहुंचे. मंदिर कोई बहुत पुराना तो नहीं है परन्तु इसका विशाल प्रांगण पेड़ पौधों से सजा है. गाड़ी रोक कार अंदर गए और वहाँ मेरी पत्नी और उनकी भाभी ने पूजा अर्चना की और हम निकल पड़े माली साहब के घर. यह रास्ता काफ़ी लम्बा लग रहा था, कारण यह भी हों सकता है कि क्योंकि हम पहले बाज़ारो के बीच ही गुजर कर छोटे रास्ते से घर पहुँचते थे. रास्ते में हमें दो मोटर साइकिल सवार कहीं जाते मिले. हमनें उनकी गाड़ी रोकी और घर का रास्ता पहुंचा पर यह क्या उनमें पीछे बैठा व्यक्ति उतर गया और हमारे साथ गाड़ी में बैठ कर घर तक छोड़ने आया. उसने बताया कि वें व्होरा मुस्लिम है और माली सर(साढू साहब) का स्टूडेंट रहा है. शहर तो कुल एक लाख अठतीस हज़ार लोगों का ही हैं परन्तु यहाँ न केवल एक दूसरे को जानते है बल्कि सम्मान भी करते है. वह व्यक्ति माली सर के पूरे परिवार से ही परिचित था
उसका कहना था कि उनका ज़िला बेशक देश भर में 250 पिछड़े हुए जिलों में से एक हैं परंतु इस शहर की साक्षरता दर लगभग 89% है । लड़कियों की तादाद भी कम नहीं है। लिंगानुपात भी 1000 पुरुषों के मुकाबले कमोबेश उतना ही है और इस शहर में हिंदू- मुस्लिम -जैन सब मिलजुल कर रहते हैं । इन्हीं सभी बातों के चलते उसने हमें अपने माली सर के घर तक पहुँचा कर विदाई ली। उसका यह आचरण इस शहर के लोगों के सर्वधर्म समभाव के संस्कारों को प्रदर्शित करता है। डूंगरपुर, बासवाड़ा और कुशलगढ़ 4000 वर्ष पूर्व भील प्रदेश था। सन 1197 में मेवाड़ के युवराज गुलिया राम पंजाबी कीर ने इस रियासत की स्थापना की और डूंगरपुर को राजधानी बनाकर इसे वाँगड़ (बांगड़) प्रदेश का नाम दिया। इसके पूर्व में राजस्थान का उदयपुर तथा पश्चिम में वर्तमान गुजरात राज्य में स्थित साबरकांठा, पंचमहल और दाहोद रियासतें थीं। इसी रियासत के डॉक्टर नागेंद्र सिंह न केवल विश्व विख्यात क्रिकेटर थे बल्कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में निर्वाचित पहले भारतीय न्यायाधीश भी थे। उनकी वजह से इस नगर को पूरे विश्व में ख्याति मिली। डूंगर किसी वंश का नाम न होकर उस स्थान का नाम है जो ऊंचाई पर स्थित है। वर्तमान में राजा मानवेंद्र सिंह इस रियासत के पूर्व शासक हैं । वहीँ स्वतंत्रता संग्राम में भी इस क्षेत्र के अनेक स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। महात्मा गाँधी के विचारों से प्रेरित होकर स्वतन्त्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाले भोगीलाल पंड्या और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरि देव जोशी ने इस क्षेत्र को न केवल नाम दिया है अपितु अनेक उपलब्धियाँ भी प्रदान की हैं। डूंगरपुर में अपने साढू साहब के घर आकर अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव किया । खूब स्वादिष्ट भोजन और स्नेहपूर्ण पारस्परिक पारिवारिक चर्चा भी रही। इसके बाद हमारे लौटने का समय होने को आया था परंतु न तो उनका और न हमारा बिछड़ने का मन था । डूंगरपुर की एक झलक दिखाने के लिए वह हमारे साथ गाड़ी में ही बैठ गए और बाजार से होते हुए डूंगरपुर की गैप सागर झील पर पहुंचे ।इस शहर की सफाई और यातायात व्यवस्था प्रसंशनीय है। मुख्य बाजार में आने- जाने का रास्ता वन- वे है और सफाई की व्यवस्था में यह शहर राजस्थान में प्रथम स्थान पर है। उन्होंने हमें इस पूरी झील का लगभग 5 किलोमीटर का एक चक्कर लगवाया और वे अपनी उस निजि स्थान पर भी ले गए जहाँ उनका अस्थाई निर्माण चल रहा है। बीच-बीच में वें रियासत के बारे में बताते व राजमहल को भी दिखाते। उन्हें इस बात का गौरव था कि राज परिवार के अनेक युवा उनके विद्यार्थी रहे हैं और इस प्रकार बड़े ही
भावभीने मन से हमने उनसे विदाई ली। इस बार डूंगरपुर में कुछ ज्यादा ही मन लगा। शायद इसका कारण यह भी हो कि हमने इसके सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पक्ष को भी समझने की कोशिश की।
फिर मिलेंगे डूंगरपुर।
Ram Mohan Rai.
Dungarpur (Rajasthan )
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