Udaipur Diary-6 Nathdwara
चालीस वर्ष पूर्व जब उदयपुर से नाथद्वारा जाते थे तो रास्ते में पड़ने वाली पहाड़ियों की घुमावदार सड़कों से गुजरना होता था पर अब उदयपुर से बेहतरीन सड़कें बनीं हैं और पहाड़ी को काटकर सुरंगों से होकर गुजरती हैं । पैतालिस किलोमीटर का यह रास्ता अब आधे घंटे में ही पूरा हो जाता है।
नाथद्वारा कस्बा कोई बहुत पुराना नहीं है। इसका निर्माण लगभग 337 वर्ष पूर्व हुआ था। अब आबादी भी 42,016 है और यह पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय का प्रमुख स्थान है जहाँ पर भगवान कृष्ण की गोवर्धनधारी के स्वरूप में प्रतिमा प्रतिष्ठित है। जो बहुत ही खूबसूरत है और उनकी ठोडी में हीरा जड़ा है जिसकी चमक श्रद्धालुओं को अनायास ही आकर्षित करती है। मंदिर परिसर में ही विट्ठलनाथ जी एवं हरि राय प्रभु की बैठक है और फिर साथ ही वनमाली मंदिर एवं मीरा मंदिर है। मंदिर के चारों तरफ कुछ दूरी पर गणगौर बाग,
लाल बाग, गिरिराज पर्वत और वल्लभ आश्रम है। वास्तव में नाथद्वारा मंदिर पर ही आश्रित कस्बा है। खेती -बाड़ी, व्यापार, सेवा सब मंदिर को ही समर्पित है ।मंदिर से निकलते ही आप दर्जियों की अनेक दुकानें पाओगे जहाँ छोटे- बड़े श्रीनाथजी के विग्रह की ही पोशाकें सिलती मिलेंगी और आसपास की दुकानों में उनका ही प्रशाद । छप्पन भोग यहाँ कोई शब्द नहीं है अपितु 56 प्रकार के
प्रसाद के प्रकार हैं जो न केवल मंदिर की दुकानों में अपितु पंडों की अन्य दुकानों में भी मिलते हैं। थोड़ , सुहाली, राजभोग की पूरी, बूंदी और मगज का लड्डू, सवाग- सौंठ की बर्फी, राजभोग की पत्तल इत्यादि। प्रसाद ही नहीं अपितु इसमें घुला भक्ति प्रेम रस इसे और अधिक स्वादिष्ट बना देता है। पूरे दिन में मंदिर आठ बार खुलता है और इन दर्शन समयों में श्रीनाथजी के विग्रह की बार-बार पोशाक बदली जाती है। मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, शयन, उथापन, भोग और आरती इन सभी समय में भगवान श्री कृष्ण की पूरी दिनचर्या को बांटा गया है।
मेरी पत्नी के मायका पक्ष मूलतः इसी कस्बे के हैं। मेरे ससुर श्री गणेश लाल माली जी का जन्म यहीं हुआ। यहीं उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में उदयपुर और इंदौर से शिक्षा प्राप्त कर यहीं प्रारंभिक वकालत की और आजीवन मंदिर बोर्ड के एडवोकेट बने रहें. यहाँ नगर पालिका बनने के बाद वे इसके पहले अध्यक्ष बने। अपने कस्बे के उत्कृष्ट खिलाड़ी थे और वॉलीबॉल के चैंपियन थे। मेरी पत्नी कृष्णा कांता की माता केसर देवी जी का भी यहीं जन्म हुआ और इस प्रकार उनका पैतृक कस्बा और ननिहाल दोनों ही यहाँ है। यहीं वर्ष 1972 में शाम की सैर करते हुए मेरे ससुर श्री गणेश लाल माली जी को आकाशवाणी रेडियो से सूचना मिली कि वे राजस्थान से राज्यसभा के लिए कांग्रेस प्रत्याशी बनाए गए हैं। इस तरह से वे 1972 से 1978 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। अपने राजयसभा के सदस्य के रूप में जब भी वें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मुलाक़ात का समय पाते तो उन्हें मंदिर के प्रसाद के रूप में एक रजाई और मिष्ठान भेंट करते.इस क्षेत्र की यह खासियत है कि यहाँ शादी- विवाह आस- पास ही होते हैं। परंतु मेरे ससुर ने इस परंपरा को तोड़ा और उन्होंने अपने बच्चों की शादी डूंगरपुर, गंगानगर, हनुमानगढ़, राजलदेसर (बीकानेर),भीलवाड़ा, पानीपत और मुंबई के दूर दराज क्षेत्रों में की।
दुर्भाग्य से मंदिर में हरिजन प्रवेश निषेध था तब स्वo निर्मला देशपांडे जी के नेतृत्व में महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ ने सत्याग्रह किया था जिसमें मेरे ससुर श्री गणेश लाल जी तथा श्री केयूर भूषण जी ने इसमें भाग लिया था बल्कि वें हिंसा का भी शिकार हुए थे.
आज हम इस कस्बे में केवल देव दर्शन के लिए नहीं अपितु अपनी ससुराल पक्ष के सभी रिश्तेदारों से मिलने तथा दिवंगत बुजुर्गों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उपस्थित थे। नाथद्वारा आओ तो यहाँ की खास तरह की कचोरी और चाय न पियो तो आनंद नहीं रहता। इन सभी का आनंद लेते हुए हम उदयपुर से नाथद्वारा और यहाँ के प्रवास की 5 घंटे की यात्रा पूरी कर एकलिंग जी होते हुए वापिस उदयपुर घर आ गए ।
राम मोहन राय,
नाथद्वारा (राजसमंद )
Very nice. I am happy to know about it. I have been thrice to this great place. You have reminded my visits. Thank you so much sir.
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