First Battle of Panipat -1526
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अक्सर लोग पानीपत के बारे में वहाँ हुई लड़ाईयों को जोड़ कर जानते है जिससे मैं तो बतौर पानीपती बिल्कुल भी सहमत नही हूं । मेरा शहर तो शुरू से अमन और तालीम का शहर रहा है जहाँ दूर-२ से लोग शिक्षा व आध्यात्मिकता की खोज में आते थे । यहाँ सूफी संत थे , आलिम थे और ऐसे दानिशमंद जिनका शुमार अदब के क्षेत्र में बुलंदियों पर था । पर था यह दिल्ली के निकट ,और वह भी खुला स्थान । और दिल्ली ,हिंदुस्तान की राजधानी ,जहां देश के शासक बैठते थे अगर यदि किसी ने उन्हें चुनौती देनी होती तो यह ही वह खुली जगह थी जो यमुना के नजदीक भी थी जहां पानी की कोई कमी नही थी । जगह भी ऐसी जहाँ एक तरफ यमुना नदी थी और दूसरी तरफ ढाक के जंगल । इसीलिये जब -२ दिल्ली को चुनौती मिली तो उसका फैसला यही लड़ी गयी जंगो से हुआ । इतिहास गवाह है कि यहां सिर्फ यही तीन युद्ध न होकर भूगौलिक स्थितियों की वजह से इससे पहले भी अनेक लड़ाईयां लड़ी गयी ।
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पानीपत के नागरिकों की भूमिका
किसी भी लड़ाइयों में पानीपत के लोगो की भी कोई भूमिका रही । इस पर पानीपत के एक बुजुर्ग व अब लाहौर में रह रहे पाकिस्तान के पूर्व वित्तमंत्री डॉ मुबाशिर हसन का कहना है कि यहाँ के लोगो का शरू से ही यह संकल्प था कि वे न तो किसी फौज में शामिल होंगे ,न शराब का धन्दा करेंगे व न ही किसी बादशाह की नौकरी । क्योंकि ये लोग शुरू से अमन पसन्द , धार्मिक स्वभाव के तथा स्वाभिमानी थे । पानीपत के लोगो ने भी इन सभी लड़ाईयों में न तो कोई सहयोग किया और न ही कोई भागीदारी । वे तो सदा मूकदर्शक रहे और यहाँ लड़ी गयी लड़ाइयों की वजह से त्रस्त ।
बाबर का आगमन
इतिहास में दर्ज पानीपत की कथित पहली लड़ाई में बाबर का खेमा पानीपत से 5 किलोमीटर(अब बाबरपुर गांव) अम्बाला की तरफ रहा जबकि दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी का खेमा भी पानीपत कस्बे से बाहर ही रहा । हां , बाबर ने अपनी रणनीति के मुताबिक 700 बैलगाड़ियां आसपास के गांवों से इकठ्ठी की । यह उसकी ही रणनीति की विजय थी कि उसने अपनी कुल 24 हजार फौज से लोधी की एक लाख से भी ज्यादा सेना को शिकस्त दी । दि0 21 अप्रैल ,1526 को मात्र 3-4 घण्टे चली लड़ाई में दोनो और से हज़ारों सैनिक मारे गए और इतने ही घायल । पानीपत में अपनी जीत के बाद बाबर ने न केवल वीर सुल्तान इब्राहिम लोदी की पानीपत में एक कब्र बनवाई वहीँ एक स्मारक का भी निर्माण किया । तत्कालीन इतिहासकार अबुल फ़ज़ल ने लिखा है कि बाबर जो कि अपने भतीजे व पंजाब के गवर्नर दौलत लोधी और राजपुताना के राजा राणा सांगा के निमंत्रण व सहयोग के आश्वासन से हिंदुस्तान आया था , यहाँ से इतना प्रभावित हुआ कि उसने यही बसने का फैसला लेकर अपने मित्रों दौलत लोधी व राणा सांगा को भी आश्चर्यचकित कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि बाबर ,यहाँ पैसा - हीरे जवाहरात लूट कर लेकर वापिस लौट जाएगा और राज वे करेंगे । पर बाबर ने उन्हें गलत साबित किया । अयोध्या में बाबर द्वारा किसी कथित मंदिर को गिरा कर कोई कथित मस्जिद निर्माण कोई राजनीतिक विषय या विवाद हो सकती है परन्तु उसने अपनी जीत की खुशी में पानीपत में एक मस्जिद अवश्य बनवाई जिसे *काबुली मस्जिद* के नाम से जाना जाता है । मस्जिद खुद में मुग़ल और हिंदू स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है । सम्पूर्ण मस्जिद अष्टकोणी है यानी इसका हर चबूतरा तक ।
(Hasan Khan Mewati )
लड़ाई के सबक
यह तो सर्वविदित है कि यह ही वह टर्निंग प्वाइंट रहा जब लोदी वंश के शासन का अंत होकर लगभग 300 वर्षो तक हिंदुस्तान पर राज करने वाले मुगलो का राज रहा । यह युद्ध कभी भी हिन्दू- मुसलमान के बीच लड़ने वाली लड़ाई नही थी । इसमे दोनो तरफ के नेता मुस्लिम ही थे पर हाँ बाबर को मदद देने वाले हिन्दू राणा सांगा थे और दूसरी तरफ इब्राहिम लोदी की तरफ से वतनपरस्त हसन खां मेवाती लड़े । जिन्होनें बाबर की इमदाद की पेशकश करने पर जवाब दिया था कि वे एक वतनपरस्त मुसलमान है और बाबर एक आक्रांता मुसलमान ।
राम मोहन राय
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