बापू और महिलाएं

*बापू और महिलाएं*
गांधी विचार एक शाश्वत विचार है जो भगवान राम की मर्यादा, कृष्ण का योग, बुद्ध की करुणा, महावीर की अहिंसा, ईसा का प्रेम तथा हजरत मोहम्मद के सत्य को आत्मसात करता है। इसमें वेदों का वह संदेश भी निहित है जिसमें कहा  "एकम सद विप्र बहुधा वदती" अर्थात  सत्य एक है और  विद्वान लोग उसे अपने-अपने ढंग से कहते हैं। महात्मा गांधी अपने गुरु के रूप में श्रीमद् राजचंद्र तथा लिओ टॉलस्टॉय को स्वीकार करते हैं। श्रीमद् राजचंद्र से तो उनका नाता न केवल गुरु- शिष्य का था अपितु भाई तथा मित्र का भी था। वे लिखते हैं कि जब- जब मुझमें कोई शंका उत्पन्न होती है तो श्रीमद् राजचंद्र से संवाद कर उसका निवारण तुरंत हो जाता है। गांधी विचार कोई जड़ता नहीं है अपितु पूरी दुनिया के सभी धर्मों का सुंदर समन्वय है। उनके जीवन की सबसे 
सुंदरतम कृति यही है कि वे सबके हैं और सब उनके है। बापू ने स्वयं एक बार कहा था कि मैं एक सच्चा हिंदू हूँ, इसलिए सभी धर्मों का समान रूप से आदर करता हूँ।
          बापू की पहली शिक्षिका, गुरु तथा सखी उनकी माता पुतलीबाई थी । माता जी परनामी संप्रदाय में अगाढ़ आस्था रखती थीं तथा उनके सिद्धांतों एवं व्रत- नियमों का  नैष्ठिक ढंग से अनुपालन करती थीं। सर्वधर्म समभाव का भाव बापू ने अपनी 
परनामी माता से ही सीखा । जहाँ शरीर और आत्मा हिंदू धर्म और इस्लाम से संपुष्ट थे। माता पुतलीबाई अनेक दिनों तक अन्न- जल त्याग कर व्रत रखने की पवित्रता रखती थीं। उनका पुत्र मोहन उन्हें देखता और अपनी माता का अनुसरण करता और इसी नैष्ठिक प्रयोग में वे कठोर व्रतधारी मोहनदास करमचंद गांधी बन गए ।
          बापू की दूसरी गुरु उनकी पत्नी कस्तूरबा थीं। बाल्यावस्था में ही उन दोनों का विवाह हुआ और फिर एक घर में एक छत के नीचे ही दोनों की एक मित्र की तरह परवरिश हुई। वे आपस में साथ-साथ खेलते और किसी भी तरह का मनमुटाव
होने पर एक दूसरे के साथ बर्ताव करते। यह वह समय था जब समाज में पुरुषवादी मानसिकता भयंकर रूप से हावी थी। स्वाभाविक है कि मोहनदास भी उससे त्रस्त रहे होंगे परंतु यह बा का ही सानिध्य रहा कि बापू को उस मानसिकता से निकाल पाई। अब वे अनन्य सहयोगी थीं। वे कठोर वैष्णव नियमों का पालन करतीं, आहार- विहार सब ठाकुर जी को ही समर्पित रहता। किसके हाथ का लगा खाना है और क्या काम नहीं करना ऐसा उनके बर्ताव में शामिल रहता। पर बाद में यह   
सर्वविदित है कि वर्धा और साबरमती आश्रम में अस्पृश्यता निवारण और भंगी कष्ट मुक्ति की सबसे बड़ी संवाहिका 
बा रहीं। बा को जब डॉक्टर्स ने सलाह दी कि वह नमक न खाएं तो बापू ने खुद ही नमक त्याग दिया। विश्व की ऐसी सुंदरतम जोड़ी संभवत ही विश्व इतिहास में मिलती होगी।
           बापू सामाजिक कुरीतियों को मानव समाज के प्रति एक अपराध ही नहीं अपितु पाप भी मानते थे ।दहेज , सती प्रथा, पर्दा, बाल विवाह , वैधव्य जीवन को वे एक ऐसी बुराई मानते थे जिसके लिए उनका कहना था कि इसके रहते स्वराज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ये तमाम प्रश्न ऐसे थे जो महिलाओं की स्वतंत्रता के थे। कर्मकांडो और कुरीतियों के तो बापू इतने विरोधी थे कि उन्होंने सर्वोदय विवाह पद्धति का ही निरूपण किया। जयप्रकाश और प्रभा का विवाह संस्कार करवाकर उन्होंने इसका सूत्रपात किया। अनेक हरिजन बालिकाओं को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार कर उन्होंने कथित अप्रतिष्ठित लोगों को प्रतिष्ठा प्रदान की।  
           भारत का स्वतंत्रता आंदोलन इस बात का गवाह है कि महिलाओं ने पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर इसमें भाग लिया। सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, सुशीला नैयर , प्रभावती और कमला नेहरू ऐसे कुछ नाम उन लाखों महिलाओं में अग्रणी है जिन्होंने बापू के आह्वान पर स्वराज के इस यज्ञ में अपनी आहुति दी। 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' की नायिकाएं भी महिलाएं ही रहीं।अरुणा आसफ अली, उषा मेहता , चेनुपा
लक्ष्मी ये वे वीरांगनाएं हैं जिन्होंने 'करेंगे या मरेंगे' को अपने जीवन में चरितार्थ किया।     
        आजाद भारत का संविधान राष्ट्रीय आजादी के आंदोलन के आदर्शों एवं भावों की ही अभिव्यक्ति है। स्वतंत्रता , समता और न्याय हमारे लिए कोई  नारे नहीं अपितु जीवन जीने का ढंग है । बेशक स्वतंत्रता प्राप्ति के छह माह के भीतर ही हम बापू को नहीं बचा सके परंतु उनके शिष्यों तथा सहयोगियों ने भारतीय संविधान में  'Equal Before the Law' का सिद्धांत देकर यह वर्णित किया कि यह देश लिंग , धर्म , वर्ण, जाति और क्षेत्र के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। क्या यह बापू के विचार के बिना संभव था कि पुरुष बाहुल्य संविधान सभा में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया कि वोट का अधिकार स्त्री व पुरुष दोनों को बराबर होगा । पाश्चात्य देश चाहे कितने भी बराबरी का दावा करें परंतु वहाँ तो 1921 के आसपास ही महिलाओं को वोट का अधिकार मिला था जबकि वे पूर्ण रूप से साक्षर थीं। परंतु भारतीय संविधान में संविधान लागू होने के पहले दिन से ही स्त्री- पुरुष समान मताधिकार को लागू किया गया । इस बारे में कतई दो राय नहीं है कि हमारे देश में महिलाएँ प्रमुख संवैधानिक पदों पर आरूढ़ हुई है और अभी परिस्थितियाँ और स्थितियाँ बदलना बाकी है परंतु इस बारे में भी दो राय नहीं है कि समय बदल रहा है और महिलाएँ सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक रूप से निरंतर अग्रसर हैं।महिला अधिकारों की समानता तथा सशक्तिकरण बापू का स्वप्न है जिसे अभी पूरा करना बाकी है। 
         बापू की राय में महिलाएँ अबला नहीं हैं अपितु सबला हैं। इसलिए उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी संत विनोबा भावे ने स्त्री शक्ति जागरण का अद्भुत कार्य करते हुए ब्रह्म विद्या मंदिर की स्थापना की। 
          गांधी ग्लोबल फैमिली एक वैश्विक संगठन है जो पूरे विश्व में गांधी विचार और कार्य के प्रचार- प्रसार का एक प्रयास कर रहा है। संगठन की प्रवर्तक संस्थापक दीदी निर्मला देशपांडे ने गांधी- विनोबा के विचार से प्रेरित होकर ही अपने घर परिवार का त्याग कर विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से अपने आप को जोड़ा।
            ज्ञान और कार्य 
का यह दीपक पूरे दुनिया भर के कार्यकर्ताओं के हाथों में दीप्त होगा। ऐसी हम कामना करते हैं।     
              राममोहन राय       
              महासचिव 
   गांधी ग्लोबल फैमिली
(राम मोहन राय, सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट है तथा गांधी ग्लोबल फॅमिली के महासचिव हैं. ) 

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