Warsaw, Poland. सुहाना सफ़र - 3 )

 वारसा, एक छोटे से देश पोलैंड की राजधानी है. बेशक हमारा यहां आज का प्रवास बहुत छोटा है परंतु मैं इसे वर्ष 1987 मे यहां आने के समय को भी जोड़ना चाहूँगा. 37 साल के बाद भी मेरे दिमाग मे यात्रा के वे तरोताजा है. और वह भी कि अपनी नन्ही बेटी संघमित्रा के लिए एक दुकान से  एक बहुत ही सुन्दर गुड़िया लेना चाह रहा था. पसन्द भी कर ली थी पर हिंदुस्तानी स्वभाव के कारण मोल भाव मे लगा और इतने कोई दूसरा ग्राहक उसे ले उड़ा. मुझे इसका मलाल रहा कि पसन्दीदा चीज़ नहीं मिल सकीं. तब ही पता चला कि इस देश मे समाजवादी व्यवस्था है और यहां हर दुकान चाहे वह शहर मे हो या देश मे, बड़ी हो या छोटी एक ही दाम है. आज भी वह गुड़िया का खिलौना मेरी आँखों मे बसा था और मैं उसे यहां के बाजार मे ढूंढता रहा पर कोशिशों के बावजूद भी नहीं मिली. खैर क्या इत्तफाक है कि आज जब मोल भाव है तो गुड़िया नहीं मिली और जब वह थी तो मोलभाव नहीं था. 
   पोलैंड के लोग दुनियां भर मे पोलिस के नाम से पुकारे जाते हैं. स्वभाव मे अक्खड़ और व्यवहार मे अल्हड़पन और बोलचाल मे बिना सोचे समझे बोलना. मेरे प्रांत हरियाणा के लोगों का भी ऐसा ही स्वभाव है. हमारे यहां एक कहावत है कि जाट रे जाट - तेरे सिर खाट तो ज़वाब था तेली रे तेली - तेरे सिर पे कोल्हू. तेली और कोल्हू की कविता के छंद जमे नहीं, तो कहना था कि न जमे बोझ तो मरेगा. एक बार दिल्ली की हमारी वीणा बहन ने मुझे कहा कि राम मोहन भाई उन्हें हरियाणवी बोली सीखा दें. मेरा कहना था कि हमारी बोली सबसे आसान है. और भाषा - बोली मे व्याकरण का इस्तेमाल करना होता है, पहले सोच समझ कर बोलना होता है और हम ठहरे बिल्कुल सरल और स्पष्ट, हम मन की बात बोलते हैं और बोल कर फिर सोचते हैं कि क्या बोलना था. इसीलिए हरियाणवी और पोलिस की खूब जमेगी.
    पोलिस भाषा के अनेक शब्द रूसी से मिलते जुलते है, इसलिए ऐसा लगता है कि दोनों एक ही हैं. पर मुझे दिक्कत नहीं रही. मेरी टूटी फूटी रूसी की जानकारी ने वारसा मे खूब साथ दिया. 
    पूरा शहर छोटी छोटी गलियों मे से गुजरता है और बीच मे ऊंची ऊंची गगन चूमती इमारतें.  नगर विस्चुला नदी के बाएँ किनारे पर बर्लिन के 387 मील पूर्व में है। वॉरसॉ का संबंध छह बड़े मार्गों के द्वारा वियना, कीव, सेंट पीटर्सबर्ग (लेनिनग्रैड), मॉस्को, दक्षिणी-पश्चिमी रूस, डानज़िंग एवं बर्लिन से है। इस्पात, चाँदी की चद्दर, जूते, मोजे, बनयाइन, दस्ताने, तंबाकू, चीनी एवं मकानों के सजानेवाले सामान के उद्योग यहाँ हैं, क्योंकि यहाँ पर कुशल कारीगर पाए जाते हैं। यहाँ मोटे अनाज, चमड़ा एवं कोयले का व्यापार होता है। नगर में कई भव्य भवन हैं, जिनमें कुछ राजमहल, कुछ गिरजाघर हैं तथा कुछ म्युनिसिपलबोर्ड द्वारा एवं व्यक्तिगत रूप से बनवाई हुई इमारते हैं। सुंदर उद्यान भी हैं। कला, साहित्य, कृषि एवं वन से संबंधित संस्थाएँ यहाँ हैं।
     सन 1944 मे इस देश के लोग जर्मनी नाजी वाद के शिकार हुए. हर जगह तबाही ही तबाही. नस्ली श्रेष्ठता तथा विश्व विजय के चक्कर मे हिटलर की नाजी सेनाओं ने पूरे शहर को ही अपने हमले और बाद की नृशंसता ने खुशनुमा शहर को बर्बाद कर दिया और फिर आया समाजवाद का दौर जिसने इस पूरे शहर सहित को नया निर्माण और दिशा दी और कुछ ही वर्षों मे पुराने आकार की नींव पर ही नया निर्माण किया गया, जिसकी पूरी दुनियां ने सराहना की और इसे सम्मान देते हुए वर्ल्ड heritage city घोषित किया.
    हिटलर हिंसा, युद्ध और नस्लीय घृणा के बलबूते विश्व विजेता बनना चाहता था पर वह न बन सकता परंतु हमारे देश के राष्ट्रपिता, अहिंसा, सत्य और करुणा के उपासक महात्मा गांधी अवश्य अपने जीवन, कार्यो तथा संदेश से विश्व वंदनीय और मित्र बने हैं. उनके विचार से पोलैंड भी अछूता नहीं रहा है. पूज्य बापू की एक प्रतिमा वारसा यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी के प्रांगण में 24 मई, 2002 को स्थापित की गई है जिसे प्रसिद्ध शिल्पकार गौतम राम ने बनाया है और जिसका अनावरण तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष श्री मनोहर जोशी ने किया था. पूरे पोलैंड मे सम्भवत: अकेले गैर पोलिस व्यक्तित्व हैं जिन्हें इस तरह आदर और सम्मान मिला है. पर्यटकों के लिए यह भी अब दर्शनीय स्थल है.
    यह शहर पुरातन और आधुनिकता का अप्रतिम मेल है. वारसा आने का मतलब इसका साक्षात दर्शन है.
Ram Mohan Rai,
Warsaw, Poland.
23.05.2024

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