घुमक्कड़ की डायरी - 17 (Rosenlaui Glacier, Switzerland /05.06.2024)

[
 Rosenlaui Glacier
   आज Switzerland में हमारा आखिरी दिन था. आज शाम की Interlocken स्टेशन से शाम को 6 बजे मिलान, इटली के लिए ट्रेन पकड़नी थी पर दोपहर चार बजे तक हमारे पास फुर्सत ही फुर्सत थी. अतः बेटे ने कहा कि बेशक स्विटजरलैंड में आज अंतिम दिन है पर इसे हम बेमिसाल दिन बनाएंगे. इसलिए पहाडियों के रास्ते हम स्विटजरलैंड के सबसे खूबसूरत और बड़े 
Rosenlaui Glacier की ओर बढ़ चले. रास्ता काफी सकड़ा और एक तरफ का था. कई बार सामने से कोई अन्य गाड़ी और बस आती तो एक तरफ बचाव करते हुए रुकते और उसके जाने के बाद हम ऊपर की तरफ गाड़ी को चढ़ाते. लगभग एक घण्टे के सफ़र के बाद हम अपने गन्तव्य पर पहुंचे.
     पार्किंग में गाड़ी खड़ी करने के बाद उस चारों ओर बर्फीली पहाडियों से ढके एक स्थान पर एक जलपान की एक दुकान थी. वहां हम कुछ रुके जलपान किया. वहीं हमें एक लंदन निवासी पाकिस्तानी युवती मिली जो अकेले ही यात्रा पर निकली थी. अपनी हम जुबान को पाकर उसकी यात्रा के अनेक किस्से हमने सुने.
    Rosenlaui Glacier कुल 5 किलोमीटर में फैला हुआ है और इसका खूबसूरत शिखर ऐसे लगता है कि मानो पर्वतराज हिमालय के दर्शन हो रहे हों. उसे देखते हुए हमें अल्लामा इक़बाल का तराना याद आ रहा था "पर्बत वो सबसे ऊंचा हमसाया आसमाँ का, वो सन्तरी हमारा, वो पास बान हमारा". उस पाकिस्तान मूल की बिटिया को भी यह तराना सुन कर बहुत खुशी हुई.
     बेशक हम तो स्विटजरलैंड मे थे परन्तु हमारा मन अपने देश भारत में ही था. यहां की नदियाँ, पर्वतों, जंगल और लोगों की सरलता और सहृदयता का कोई मुकाबला नहीं है. इस दस हजार किलोमीटर दूर भी इस पर्वत शिखर पर दुकान की मालकिन उत्तराखंड की याद दिला रहीं थी और उनका कहना था कि केदारनाथ की पहाडियाँ भी इससे कम थोड़े ही हैं. यह सुन कर मन बाग बाग हो गया और वहां कार्यरत बेटियों अर्चना और जया बहुगुणा की बरबस याद आ गयी.
     हिंदी के कालजयी कवि जय शंकर प्रसाद ने भारत माता का गुणगान करते हुए लिखा है :
हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!
अराति सैन्य सिंधु में, सुवाडवाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो!
   RAM MOHAN RAI.
ROSENLAUI GLACIER,
SWITZERLAND.
05.06.2024

Comments

Popular posts from this blog

Justice Vijender Jain, as I know

Aaghaz e Dosti yatra - 2024

मुजीब, गांधी और टैगोर पर हमले किस के निशाने पर