घुमक्कड़ की डायरी (बापू की खोज में - स्विटजरलैंड - 18)

"बापू की खोज में - स्विटजरलैंड" 
   नोबल पुरस्कार से सम्मानित  रोम्या रोलां (Romian Rolland) एक ऐसा नाम है जिनके बारे में कहा गया है कि उनका तन विदेशी पर मन भारतीय था. उनका जन्म 29 जनवरी, 1866 को हुआ और मृत्य 30 दिसम्बर, 1944 को हुई. सन 1915 में वे नोबल पुरस्कार से सम्मानित हुए और उन्होंने पुरस्कार से प्राप्त सारी राशि (1,20,000 रुपये) रेड क्रॉस सोसाइटी को उसके कार्यो के लिए दान कर दिए. वे वह व्यक्ति थे जिन्हें बापू की प्रिय शिष्या मीराबेन (Madeleine Slade) अपने देश इंग्लैंड के आने से पहले उनके घर स्विटजरलैंड मिलने गई थी. वास्तव में वे ही उनके प्रेरक, मित्र एवं गुरु भी थे. मीरा बेन ही वास्तविक सृजक थी बापू की उस यात्रा की कि जब वे सन 1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने के बाद पांच दिन तक स्विटजरलैंड आए और रोम्या रोलां के पास उनके घर  जो उनके Villeneuve में झील किनारे,जेनेवा मे था, अपने पुत्र देवदास गांधी और अपने सहयोगी प्यारे लाल और महादेव देसाई के साथ 6 से 11 दिसम्बर, 1931 तक ठहरे. 
    महात्मा गांधी ने इन पांच दिनों में पश्चिमी देशों में भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में और साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन को समर्थन देने की विस्तृत योजनाओं की चर्चा की. यूरोप उस समय पहले विश्व युद्ध से उबर कर दूसरे युद्ध के मुहाने पर खड़ा था. बापू, युद्ध के कारणों को भी समझते थे इसलिए उन्होंने दिनाँक 8 दिसम्बर को Lausanne शहर में तथा 10 दिसम्बर को वुमन इंटरनेशनल लीग फॉर पीस एंड फ्रीडम द्वारा विक्टोरिया हॉल, जेनेवा में अपने व्याख्यान दिए. अपने अलग अलग व्याख्यानों में उन्होंने पूंजीवाद के आंतरिक संकट और साम्राज्यवादी उन्माद को इसका दोषी बताया. उनकी बातों का जहां स्थानीय लोगों पर गहरा असर पड़ा वहीं सरकार भी भयभीत हुई और मेजबान को लगने लगा था कि कहीं वह महात्मा जी को तुरन्त देश छोड़ने को न कह दें. और इससे पहले ही वे  स्वदेश लौट आए. 
    रोम्या रोलां ने बापू की जीवनी पर सन 1924 में एक पुस्तक "Mahatma Gandhi - The man who become one with the universal being" भी लिखी. वे उनके जीवन, सिद्धांतों और दर्शन से बेहद प्रभावित थे. उन्होंने सत्याग्रह को परिभाषित करते हुए लिखा 
    :'सत्याग्रह' शब्द का आविष्कार गांधी जी ने तब किया था, जब वे  अफ्रीका में थे- उद्देश्य था अपनी कर्म- साधना के साथ निष्क्रिय- प्रतिरोध का भेद स्पष्ट करना। यूरोप वाले गांधी के आंदोलन को 'निष्क्रिय प्रतिरोध' (अथवा अप्रतिरोध) के रूप में समझाना चाहते हैं, जबकि इससे बड़ी गलती दूसरी नहीं हो सकती। निष्क्रियता के लिए इस अदम्य योद्धा के मन में जितनी घृणा  है, उतनी संसार में किसी दूसरे व्यक्ति में नहीं होगी । ऐसे वीर 'अप्रतिरोधी' का दृष्टांत संसार में सचमुच 
विरल है । उनके आंदोलन का सार तत्व है- 'सक्रिय प्रतिरोध', जिसने अपने प्रेम, विश्वास और आत्मत्याग की तीन सम्मिलित शक्तियों के साथ 'सत्याग्रह' की संज्ञा धारण की है।"
      
      
    महात्मा गांधी भी सदैव से स्विटजरलैंड के प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत थे, इसीलिए जब वे उत्तराखंड के कौसानी कस्बे में गए तो उन्होंने इसे मिनी स्विटजरलैंड का नाम दिया. बापू वहां गए तो कुल दो दिन के लिए थे पर उन्हें यह जगह इतनी पसन्द आई कि वहां वे 14 दिन रहे और अपनी अमर कृति अनासक्ति योग की रचना की. बाद में उनकी शताब्दी वर्ष में यहीं अनासक्ति आश्रम की स्थापना हुई. 
   मुझे इस बात का सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि न केवल स्विटजरलैंड बल्कि भारत में  अनासक्ति आश्रम में भी वहां जाने और रुकने का मौका मिला है. और उस जगह भी जहां बापू की प्रिय शिष्या मीराबेन रहीं और उन्होंने अंतिम साँस ली. आज उस स्थान पर शिक्षा, शिक्षण और समाज निर्माण के अद्भुत प्रयोग हो रहे हैं.
    महात्मा गांधी और कस्तूरबा की 150 वीं जयन्ती के अवसर पर पूरे स्विटजरलैंड में अनेक स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए गए वहीं जेनेवा में उनकी एक मूर्ति भी लगाई गई हैं.
   महात्मा गांधी यहां के लोगों विशेषकर युवाओं में काफ़ी लोकप्रिय है. मुझे इस बात का अंदाजा तब हुआ, जब हमारे अतिथि गृह के दो युवा व्यवस्थापकों सारा सचमीट और आंद्रे क्रीनगा  को बापू की आत्मकथा की एक प्रति भेंट की तो उन्होंने उसे आदर पूर्वक ग्रहण करते हुए बापू के जीवन के अनेक प्रसंग सुनाए जो उनकी दादी ने उन्हें बताए थे. सचमुच वे एक विश्व मानव थे जिनके विचारों की छाप दुनियां के हर व्यक्ति पर पड़ी है.
   स्विटजरलैंड में ही अपना ज्यादा समय बिताने वाले एक अन्य विश्वविख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन के इन शब्दों को सदा याद किया जाना चाहिए, जो उन्होंने बापू के प्रति अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहे थे :
 “भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।”
 Ram Mohan Rai,
Switzerland.
06.06.2024

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