इति स्विटजरलैंड सफर कथा - 20

इति स्विटजरलैंड सफर कथा .
छह दिन बिना किसी विराम स्थान स्थान पर घूमने के बाद आज हमारी यात्रा के पहले चरण को विराम मिल गया और interlacken पहुंच कर हमने इटली के लगते हुए मिलान शहर की ट्रेन पकड़ी,जो बहुत ही सुविधाजनक थी. रास्ते में स्विटजरलैंड की पहाड़ियां, नदियां, जंगल और छोटे बड़े शहरों के बीच से गुजर कर कब मिलान पहुंच गई इसकी कतई आभास तक नहीं हुआ.
   एक देश से दूसरे देश में ट्रेन से पहुंचने का यह मेरा दूसरा अनुभव था. समझौता एक्सप्रेस जो दिल्ली से लाहौर तक जाती थी, उसमें मैंने अटारी बॉर्डर (इंडिया) से वाघा बॉर्डर (पाकिस्तान) तक का सफ़र याद किया. कुल एक दो किलोमीटर का ही सफर था परंतु था बहुत ही उबाऊ, जोखिम और थकान भरा. पहले इंडिया में हमारी चेकिंग हुई और immigration भी. पूरी ट्रेन में 300- 400 सवारी थी जिनकी चेकिंग होने में लगभग कई घण्टे लगे. फिर हम लाहौर के लिए चले. कुछ दस - पंद्रह मिनट में हम वाघा पहुंचे. यहां पूरी ट्रेन खाली करवायी गई और फिर वही चेकिंग और इमिग्रेशन जिसमें खर्च हुए जिल्लत भरे लगभग तीन घंटे. और इस प्रकार 6 बजे शाम अटारी से चली ट्रेन लगभग 5 घण्टे बाद लाहौर पहुंचे. हम भी परेशान और हमारा मेजबान उससे भी ज्यादा.
पर यहां कब स्विटजरलैंड से निकले और इटली में दाखिल हो गए इसका पता ही नहीं चला. क्या कभी हमारे देश और पड़ोसी देशों में ऐसे समबन्ध बनेंगे? 
      स्विटजरलैंड का सफ़र बहुत ही यादगार रहेगा. हमारे नेताओं और राजनीतिक नेताओं का यह एक पसन्दीदा देश रहा है और अब भी है. इसी देश में जहां महात्मा गांधी आए वहीं गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर, क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा, चमन लाल भी आकर रहे. पंडित जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू तो यहां एक अस्पताल में रहीं. यही हमारे देश के महान नायक नेता जी सुभाष चंद्र बोस न केवल मिजाज़ पुरसी के लिए आए वहीं पंडित नेहरू के जेल मे रहते उन्होंने माता स्वरूप रानी और बेटी इंदिरा प्रियदर्शनी के साथ उनकी मृत्य तक देखभाल भी की. यहीं इस देश में भारत के पहले राजदूत और महान स्वतंत्रता सेनानी आसिफ़ अली का अपने कार्यकाल के दौरान ही सन 1953 मे देहांत हो गया. भारत की आजादी के बाद भी हमारे देश के अच्छे राजनयिक समबन्ध रहे हैं. इस देश से हमारा पहला व्यापारिक सहयोग समझौता 1948 में तथा अनेक बार की शृंखला के बाद सन 2024 मे हुआ. रोमा रोला को यहां हम कैसे भूल सकते है जो महात्मा गांधी और रबीन्द्रनाथ टैगोर के बेहद करीबी मित्र ही नहीं अपितु भारत प्रेमी थे. उन्होंने न केवल महात्माजी की अपितु स्वामी विवेकानंद की भी जीवनी लिखी. 
    यह रही हमारी और इस देश के मधुर सम्बन्धों की कहानियां. हमारे देश के बड़े पूँजीपतियों और राजनेताओं का काला - सफेद धन यहीं के बैंकों में रखा बताया जाता है. 
वर्ष 2014 का चुनाव तो इसी मुद्दे पर लड़ा गया कि हम सत्ता में आयेंगे और स्विस बैंकों से काला धन वापिस लाएंगे और उसके वापिस आने के बाद हर भारतीय के बैंक खातों में 15-15 लाख रुपये आयेंगे. बाद में इसे एक जुमला बता कर ख़ारिज कर दिया गया. खैर यह राजनीतिक बातें हैं जिनका जनता से कोई सरोकार नहीं है. 
     Switzerland की यात्रा को हम यहीं विराम देकर इटली की सैर करेंगे. 
इति स्विटजरलैंड सफर कथा. 
Ram Mohan Rai, 
Switzerland. 
06.06.2025

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