किरणजीत से दोस्ती
*किरणजीत से दोस्ती*.
शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह का जीवन, विचार और संदेश से मैं बचपन से ही प्रेरित रहा हूं. मेरा परिवार स्वतंत्रता आंदोलन और उसकी मान्यताओं से जुड़ा हुआ था और इसी वज़ह से मेरे पिता मास्टर सीताराम जी सैनी किन्हीं कपोल कल्पित कहानियां न सुना कर आज़ादी के आंदोलन के अमर नायकों की वीर गाथायें सुनाते थे. मेरी माँ सीता रानी सैनी, आर्य समाज के विचारों और कार्यों से ओतप्रोत थी. उस समय आर्य समाज के कार्यक्रमों में जी भजनिक आते तो उनकी ताल पर भी भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खान के क्रान्तिकारी तराने ही होते. उन दिनों पंडित अमीचंद जेमीनी भी आते जो दिन ढलते ही हलवाई हट्टे के चौक पर एक स्टिल प्रोजेक्टर पर स्लाइड दिखा कर भगत सिंह की घोड़ी के गीत सुनाते. एक पांच - सात साल का बच्चे के बालमन पर ये सभी बातें अंकित रहती और हमेशा भगत सिंह के विचारों को जानने की जिज्ञासा भी.
सन 1972 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर विधानसभा के उपचुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री हेमव्ती नन्दन बहुगुणा के प्रयासों से कॉंग्रेस ने अपना उम्मीदवार शहीद भगत सिंह के छोटे भाई सरदार कुलतार सिंह को बनाया. पार्टी के प्रचार के लिए पानीपत के कॉंग्रेस कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगी कि वे सहारनपुर जाकर पार्टी उम्मीदवार की मदद करें. मेरे बहन अरुणा और उनके पति विजय पाल जी सैनी का अपने तबके में काफ़ी प्रभाव था. अतः मेरी माता जी को भी कहा गया कि वे वहां जाए. मुझे इस बात की प्रसन्नता थी कि वहां जाएंगे और शहीद भगत सिंह के परिवार से न केवल दर्शन करेंगे वहीं मुलाकात भी करेंगे. इसलिए मैं भी अपनी माँ के साथ हो लिया. पर अफ़सोस की बात यह थी कि पूरा चुनाव साम्प्रदायिक घृणा का शिकार हो चुका था. भारतीय जनसंघ और मुस्लिम लीग ने भी अपने प्रत्याशी खड़े किए. दोनों की राजनीति का आधार हिन्दू - मुस्लिम था. ऐसे में प्रारम्भिक तौर पर लगता था कि कहीं देशभक्त, समाजवादी और धर्म निरपेक्ष उम्मीदवार सरदार कुलतार सिंह न कभी मात न खा जाए. परंतु सहारनपुर की जनता ने साम्प्रदायिक ताक़तों को हरा कर सरदार जी को विजयी बनाया.
और इसके बाद तो जब जब सहारनपुर अपनी बहन से मिलने जाते तो शहीद भगत सिंह निवास, प्रद्युम्न नगर भी दर्शनों को जाते.
सन 1978 में मुझे लॉ पढ़ने के लिए जे वी जैन कॉलेज, सहारनपुर मे एडमिशन लेना पड़ा. जहां मैं लगातार तीन वर्षो तक रहा. उस समय मैं शहीद भगत सिंह की विचारधारा से प्रभावित ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन का सक्रिय रूप से सदस्य बन गया था.
23 मार्च का दिन हमारे लिए हमेशा प्रेरक दिन रहा है क्योंकि इसी दिन इन्कलाब जिन्दाबाद /साम्राज्यवाद मुर्दाबाद के उद्घोषक और तमाम युवाओं के आदर्श भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को निर्दयी अंग्रेज़ी सरकार ने सन 1931 में लाहौर में फांसी पर लटकाया था. ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडo हमेशा इस दिन को मनाता रहा है. सहारनपुर में आकर भी मेरी उपलब्धि AISF की स्थापना के साथ-साथ इस दिन को मनाने की शुरुआत थी. सन 1978 में स्थानीय इस्लामिया गर्ल्स इंटर कॉलेज में शहीदी दिवस मनाया गया और उसमें मुख्य अतिथि के रूप किरण जीत पधारे. मेरी उनसे यह पहली मुलाकात थी और उसके बाद यह नाता आज 45 वर्षों बाद भी मजबूत से और ज्यादा मजबूत होता रहा है.
इत्तफाक से किरण जीत जी का घर कॉलेज के बिल्कुल सामने ही था. और अब तो हमारा रोज़ाना ही उनके घर जाना होता और उनकी माँ (बिजी) जो बहुत ही स्नेही माँ थी उनके हाथ का बना भोजन खाने को मिलता. हम देखते कि कई बार हमारे सामने ही सरदार कुलतार सिंह जी अपने खेतों से साइकिल चला कर आते. यही वह घर था जहां हमें सरदार भगत सिंह की माता (बेबे ) पंजाब माता विद्यावती और क्रांतिकारी दुर्गा भाभी से मुलाकात का अवसर मिला.
लॉ करने के बाद मैं अपने शहर पानीपत चला आया और सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ आजीविका के लिए वकालत करने लगा. इस दौरान भी किरण जीत ने कभी भी रिश्ता नहीं तोड़ा.
23 मार्च, 2004 को शहीदी दिवस के अवसर पर जद्दोजहद, लाहौर (पाकिस्तान) के साथियों के बुलाने पर किरणजीत जी, मेरी पत्नी कृष्णा कांता और मैं वहां गए. इस पूरे कार्यक्रम की व्यवस्था मैंने ही दीदी निर्मला देशपांडे जी की मदद से की थी. लाहौर पहुंचने पर, वहां के साथियों ने हमारा खूब स्वागत किया. पर एक बात मुझे अखरती थी कि ग्रुप लीडर तो मैं हूँ पर लोगों का लगाव और सम्मान किरण जीत के प्रति है. पर बाद में मुझे समझ में आया कि यह सम्मान उनकी विरासत का है जो उन्हें अपने पड़दादा सरदार अर्जुन सिंह, दादा किशन सिंह और अजीत सिंह, ताऊ भगत सिंह और समूचे परिवार को है. सचमुच वे हम सबसे ज्यादा श्रेष्ठ और धन्य हैं.
अब तो जब भी सहारनपुर जाना होता अथवा उस तरफ से गुजरना होता तो उनके घर जाकर उनसे तथा परिवार से मिलना भी एक लक्ष्य रहता. किरण जीत जी की पत्नी मंजीत कौर एक सुलक्षणा गृहणी के साथ - साथ परिवार की शानदार विरासत की धरोहर को आगे बढ़ाने वाली महिला हैं. किरण जीत और मंजीत की सुन्दर जोड़ी सदैव अनुकरणीय है.
किरणजीत और हमारे पारिवारिक समबन्ध भी सुदृढ़ हुए हैं. दुःख - सुख में एक दूसरे के साथ खड़े होना और बांटना अब हमारी प्रकृत्ति हैं. मेरे अन्य पारिवारिक मित्रों और रिश्तेदारों की तरह वे भी मेरी बेटी - बेटे की शादी में और इसी तरह हम भी उनके पारिवारिक कार्यक्रमों में शामिल होते हैं.
किरण जीत एक बहुत ही अनन्य सहयोगी, प्रिय मित्र और अद्भुत साथी हैं. उनके तथा उनके परिवार के साथ मित्रता और संबन्धों पर हमें गर्व है.
आज उनका जन्मदिन है. इस अवसर पर अपनी गौरवपूर्ण स्मृतियों को संजोते हुए अपनी बधाई और शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं.
Happy birthday my friend.
Stay blessed and happy always.
Ram Mohan Rai,
Netherlands.
06.07.2024.💐
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