अमन और दोस्ती
हमारे पानीपत के ही एक गांव खंडरा के नीरज चोपड़ा की माँ को अपने बेटे के इस बार ओलिम्पिक में सिल्वर मेडल मिलने पर उतनी ही प्रसन्नता हुई जितनी पाकिस्तान के नदीम को गोल्ड मिलने पर. उन्होंने कहा कि वह भी तो हमारा ही बेटा है. उसने भी उतनी ही मेहनत की है जितनी की उनके बेटे ने. खेल में हार जीत तो चलती ही रहती है. यह एक माँ की ममता और भावना है जो पूरी दुनियां के बेटों को अपनी ही सन्तान मानती है. इसीलिए तो धरती को माता कहा गया है और माँ उससे भी भारी है. वेद में कहा है...माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः। "पृथ्वी हमारी माता है, मैं पृथ्वी का पुत्र हूं"
मुझे सन 1978 में शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह की माँ विद्यावती से मिलने का मौका मिला था. उनका भी कुछ ऐसा ही ज़वाब था कि उसके पुतर तो वे सभी हैं जो भगत सिंह के विचारों की राह पर चलने की कोशिश करते हैं. सन 2007 में शहीद भगत सिंह जन्म शताब्दी के अवसर पर एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए लाहौर (पाकिस्तान ) जाने का मौका मिला तो वहां के नौजवान अपने हाथों में भगत सिंह के पोस्टर लगा कर नारे लगा रहे थे "साडा भगत" (हमारा भगत). उनका यह भी नारा था "इंडिया मे भगत जिन्दा है - लाहौर में भगत जिन्दा है"
नीरज और नदीम की जीत भारत और पाकिस्तान के अमन पसन्द लोगों की भावनाओं की जीत है, जो यहां भी है और वहां भी है. मोहब्बत को किसी भी तरह से नफ़रत से मात नहीं दी जा सकती.
मैं फिर सन 1999 मे खो जाता हूँ जब भारत और पाकिस्तान दोनों एटम परीक्षण कर रहे थे. हमने पृथ्वी मिसाइल बनाई थी और उन्होंने शाहीन. काफ़ी तनाव का माहौल था तब लाहौर में रहने वाली मेरी धर्म बहन जुबेदा ने एक पत्र मुझे लिख भेजा था कि भाई चाहे कोई कितने भी मिसाइल बना ले पर जब तक वह जिन्दा है मेरे भाई का कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है. बेशक यह भावनात्मक अभिव्यक्ति है परंतु यह वह विचार भी है जिसकी नीरज चोपड़ा की माँ ने व्यक्त किया है.
और यही वह विचार है जिसके बारे में महात्मा गांधी ने कहा था कि देश बेशक बंट जाए दिल नहीं बंटने चाहिए. वे खुद पाकिस्तान जाना चाहते थे. कार्यक्रम भी पूरी तरह से बन गया था पर अफ़सोस उससे पहले ही उनकी शहादत हो गई.
क्या यही वह ज़ज्बा था जिसके लिए भारत की धरती से निर्मला देशपांडे, कुलदीप नैयर, मोहिनी गिरि,भाई जी सुब्बाराव, स्वामी अग्निवेश, सत्यपाल ग्रोवर, कमला भसीन सईदा हमीद और रमेश यादव और उधर से डॉ मुबाशिर हसन, जकी हसन, बी एम कुट्टी, करामत अली, लाल खान और दीप ने सन 1985 में दोनों देशों के लोगों के बीच वीजा मुक्त समबन्ध बनाने और जनता के स्तर पर आगाज ए दोस्ती यात्रा की शुरुआत की थी. जो हर साल 14 - 15 अगस्त की रात को अटारी - वाघा बॉर्डर पर जाकर अमन की आशा की मोमबत्तियां जला कर जहां आजादी का अभिनन्दन करते थे वहीं विभाजन की त्रासदी के शिकार दोनों तरफ के निरपराध लोगों की जानमाल के नुकसान पर खेद व्यक्त करते हुए स्वतंत्रता सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और यह सिलसिला आज भी जारी है.
भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक महानायक के साथ साथ एक दूरदृष्टि के भी धनी थे. उनका कहना था कि दोस्त तो बदला जा सकता है पर पड़ोसी नहीं. इसीलिए उन्होंने कई प्रयास किए. खुद बस लेकर लाहौर गए और वहां शांति का पैगाम दिया. वे जानते थे कि सरकारी स्तर पर यह एकतरफ़ा ही कोशिशे है परंतु दोनों देशों की जनता इसे अवश्य पसन्द करती है. वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की भी कोशिशे कोई कम सराहनीय नहीं रहीं पर सरकार और जनता फिर अलग पाई.
मेरी गुरु माँ निर्मला देशपांडे जी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष दोनों देशों की जनता के बीच अमन और दोस्ती कायम करने के लिए व्यतीत किए. उनका सबसे लोकप्रिय काम दक्षिण एशिया के देशों की जनता के बीच दोस्ती और अमन स्थापना की ज़न कोशिशों का रहा. मैं खुद उनके साथ कई बार इन देशों की यात्राओं पर गया. इसीलिए उन्होंने एसोसिएशन ऑफ पीपल्स ऑफ एशिया की स्थापना की.
साहिर लुधियानवी के एक प्रसिद्ध गीत के बोल हैं कि "लड़ाई तो खुद ही एक मसला है ये क्या किसी मसले का हल होगी" .
आगाज ए दोस्ती यात्रा का घोषणापत्र.
यह यात्रा विश्व शांति आंदोलन का एक हिस्सा है जो अलग अलग देशों में शांति, मैत्री और भाइचारे के लिए लड़ा जा रहा है. हमारी आजादी की लड़ाई के मूल्य साँझा संस्कृति, विरासत तथा संघर्ष को हम अंगीकार करते है और मानते है कि इन्हीं मान्यताओं पर भारतीय उपमहाद्वीप विशेषकर दक्षिण एशियाई देशों (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और श्री लंका) में जनता के स्तर पर एकजुट और लामबंद करना हमारा संकल्प भी है और ध्येय भी.
इस यात्रा का कोई राजनीतिक मकसद नहीं है और प्रत्येक विचारधारा और दल के लोग इस यात्रा दल में रहते हैं और इस यात्रा का मकसद विश्व शांति एवं वैश्विक संवाद , राष्ट्रीय एकता, सर्व धर्म समभाव, और पर्यावरण संरक्षण है.
हमारे नारे हैं -
युद्ध नहीं - बुद्ध चाहिए.
जंग नहीं - अमन चाहिए
गोली नहीं - बोली चाहिए.
हमारा मंत्र - जय जगत.
राम मोहन राय
(महासचिव, गांधी ग्लोबल फैमिली)
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