Pride Parade LGBTIQA +/Amsterdam, Netherlands /03.08.2024
मैं उस समय भारत के सुप्रीम कोर्ट के उस कक्ष में मौजूद था जब कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वाई. वी. चंद्रचूड़ एवं अन्य माननीय न्यायाधीश LGBTQIA+ (The acronym stands for lesbian, gay, bisexual, transgender, queer, questioning, intersex, asexual, and the + holds space for the expanding and new understanding of different parts of the very diverse gender and sexual identities.) पर एक बहस को सुन रहे थे। दोनों पक्षों के वकील अपने-अपने ढंग से अपने -अपने पक्ष को प्रस्तुत कर रहे थे। उस समय मुद्दा यह भी था कि क्या एक ही सेक्स के दो लोग आपस में विवाह करके एक साथ रह सकते हैं तथा उनके विवाह को कानूनी मान्यता मिलेगी? यह सवाल आज पूरी दुनिया में एक बहस का मुद्दा है जिसमें अलग-अलग मत है तथा परिस्थितियों के अनुसार उनका आंकलन भी. परंतु जहाँ तक मेरा विचार है कि LGBTQIA + का मुद्दा सिर्फ विवाह तक ही सीमित नहीं है अपितु मानवाधिकार से भी संबंधित है ।
मैं जहाँ आजकल रह रहा हूँ उस देश नैदरलैंड्स की इस विषय पर अलग ही कानूनी समझ एवं मान्यता है। इस देश में राजशाही प्रजातंत्र है। यहाँ तो अट्ठारहवीं सदी में ही वेश्यावृत्ति के कानून को कानूनी मान्यता दे दी गई थी और 1970 के दशक में LGBTQIA+ को भी आम नागरिक के रूप में स्वीकार करते हुए हर प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की थी। इन दोनों कानूनों पर हम भारतीयों की सोच अलग हो सकती है परंतु इस बारे में भी दो राय नहीं है कि हमारे देश में तो लाखों मजबूर महिलाएँ महिला यौन कर्मी का व्यवसाय अपना कर अपना जीवन यापन करती हैं। करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें हम भद्दे नामों से बुलाते हैं । उन्हें सामान्य नागरिक अधिकारों से भी वंचित रखा गया है । इस बारे में दो राय नहीं कि अब लिंग को वर्णित करते हुए स्त्री, पुरुष एवं अन्य का वर्गीकरण किया गया है परंतु इसके बावजूद भी अभी और काम करने की जरूरत है। कहीं जन्म लेना, किसी देश, धर्म, जाति, वर्ण अथवा लिंग के रूप में जन्म लेना किसी भी व्यक्ति की इच्छा के अनुरूप नहीं होता। वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि लिंग का निर्धारण माता-पिता के स्वास्थ्य पर आधारित है और यह पूरा बायोलॉजिकल एक्सीडेंट है।
यूरोप सहित दुनिया के अन्य विकसित देशों मे LGBTQIA + के अधिकारों के समर्थन एवं उनके प्रति एकजुटता प्रकट करने के लिए वर्ष में एक पूरा सप्ताह ही उत्सव के रूप में मनाया जाता है। जिसमें तमाम तरह के लोग रंग- बिरंगी
पोशाक पहनकर जनता के उसे बड़े हिस्से के प्रति अपना प्यार दुलार एवं समर्थन व्यक्त करते हैं जो इन अधिकारों से वंचित रहे हैं।
नैदरलैंड में दिनांक 27 जुलाई से 4 अगस्त तक एकजुटता के अपने संकल्प को अभिव्यक्त करने के लिए रंगारंग कार्यक्रम होते हैं। इस देश में आयोजित एक मुख्य समारोह में ऐसे एक कार्यक्रम में शामिल होने का मुझे अवसर मिला। इस देश के साथ लगते देश फ्रांस की राजधानी पेरिस में आजकल ओलंपिक खेलों का आयोजन हो रहा है । चाहते हुए भी हम इतने नजदीक होने के बावजूद भी उसमें शामिल नहीं हो पाए। उसके उद्घाटन के दृश्यों को हमने टेलीविजन पर ही देखा कि किस प्रकार फ्रांस की एक मुख्य नदी में किश्तियों में सवार होकर प्रत्येक देश के खिलाड़ियों ने अपने राष्ट्रध्वज को हाथ में लेकर अपने देश का प्रतिनिधित्व किया और इस नदी के दोनों ओर खड़े लाखों दर्शकों ने उनका अभिवादन किया। कुछ ऐसा ही दृश्य कल हमने एम्सटर्डम में एमेस्टेल नदी में किश्तियों में सवार होकर निकली सैकड़ो झांकियों में पाया। इन झांकियों को इस देश के विभिन्न नागरिक समुदायों, व्यापारी केंद्रों, शिक्षण संस्थानों तथा सामाजिक संगठनों ने प्रस्तुत किया था। इसमें न केवल LGBTQIA + के लोग थे अपितु अन्य लोग भी हर्षोल्लास से नृत्य, संगीत एवं अन्य मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे थे । परेड के पड़ाव में आने वाले नदी के अनेक पुलों तथा दोनों किनानों पर तो जैसे पूरा नैदरलैंड्स ही उमड़ पड़ा हो। एक-एक झांकी का स्वागत लोग करतल ध्वनि एवं हर्षोल्लास से कर रहे थे। इन झांकियों में संदेश था कि किसी भी लिंग में पैदा होना प्रकृति की देन है, यह न तो ईश्वर प्रदत्त है अथवा न ही स्वैच्छिक ।
इन झांकियों में एचआईवी- एड्स, हृदय रोग तथा कैंसर जैसी नामुराद बीमारियों से बचने के भी संदेश गुंजायमान थे। ऐसी सुंदर रंगारंग झांकियां अपने संपूर्ण जीवन में मैंने इससे पहले नहीं देखी। वैसे तो संपूर्ण विश्व ही हमारा परिवार है तो फिर हम उन लोगों से अलगाव क्यों रखते हैं ?
भारत में भी अन्यत्र लिंग के लोगों को संविधान प्रदत्त अधिकारों तथा व्यक्तिगत कानूनों में समानता, स्वाधीनता एवं स्वतंत्रता मिलनी चाहिए ।
Very interesting and informative with photos. Thank you so much.
ReplyDeleteVery enlightening description! Thanks!!
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