घुमक्कड़ की डायरी, कश्मीर
आज का दिन मेरे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आज मैं, गांधी जयन्ती के महान पर्व पर महात्मा गांधी के आस्था और विश्वास के नगर श्रीनगर में हूँ. बापू इसे बहुत पसन्द करते थे, इसलिए नहीं कि यह एक प्राकृतिक सौंदर्य की संपदा को संजोए एक पर्यटक क्षेत्र है परंतु इसलिए कि आजादी के आंदोलन में यह उनके विचार अहिंसा और सत्याग्रह के साथ हमेशा खड़ा रहा. अनेक बार साम्प्रदायिक सद्भावना को भी खतरा बढ़ा परंतु कश्मीर ने सदा ही अपनी महान आध्यात्मिक विरासत का पालन करते हुए हिन्दू मुस्लिम आपसी सद्भाव एवं एकता का परिचय दिया. उसी भावना से प्रभावित हो कर उन्होंने कहा कि उन्हें एक आशा की किरण कश्मीर में दिखाई देती है.
गांधी जी मेरे छोटे से शहर पानीपत में दो बार आए और वह भी आज़ादी के बाद के चार महीनों में पर यहां कुल एक ही बार आए और वह भी सिर्फ़ चार दिन के लिए और वह भी आज़ादी से लगभग 14 दिन पहले यानी एक से चार अगस्त, 1947 को. यहां उनका भाव पूर्ण स्वागत किया उनके अत्यंत विश्वसनीय साथी और वैचारिक मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और उनकी पत्नि बेगम अक़बर जहां ने. बापू ने यहां कोई तकरीर तो नहीं की परन्तु दो सर्व धर्म प्रार्थना में अवश्य भाग लिया और उसी दौरान उन्होंने कश्मीर के बारे में उद्गार प्रकट किए. बापू, जम्मू - कश्मीर के राज परिवार के निमन्त्रण पर उनके महल भी गए और वहां भी उनका राजसिक स्वागत हुआ. वे न केवल प्रमुख राजनेताओं से मिले वहीं आम लोगों से भी बेबाकी से मिले. उनकी यह एतिहासिक यात्रा उनकी कश्मीर, कश्मीरी और कश्मीरीयत् के अथाह प्यार को दर्शाती है.
उनकी शहादत के बाद उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी संत विनोबा भावे कई दिनों के लिए आए. उन्होंने दो अगस्त, 1960 को कश्मीर में प्रवेश कर लगभग सभी जिलों के सभी गांवों की लगभग साढ़े तेरह हजार ऊंचे पर्वतों को लाँघते हुए चार महीने रह कर अमन, दोस्ती और इंसानियत का संदेश दिया. यहां दिए उनके प्रवचनों का संकलन मेरी गुरु माँ निर्मला देशपांडे जी ने "इंसानियत का संदेश" नामक एक लघु पुस्तिका में किया है. यहीं उन्होंने "ही" और "नहीं" के स्थान पर "भी" का संदेश दिया.
सन 1990 के दशक में कश्मीर में हिंसा, भय और आतंक का दौर शुरू हुआ. दीदी निर्मला देशपांडे जी ने गांधी - विनोबा के इंसानियत और अमन - दोस्ती के संदेश के माध्यम से देश के विभिन्न क्षेत्रों से शांति सैनिकों को यहां भेजने की योजनाएं बनाई और मुझे भी उनके साथ तीन बार और रमेश भाई - उर्मिला बहन के साथ एक बार जम्मू, डोडा, किश्तवार और भद्रवाह में बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था के जाने का अवसर मिला. दीदी की मृत्यु के बाद भी यह सिलसिला स्वामी अग्निवेश और सुब्बाराव जी के साथ बना रहा और हर बार हमारे पथ प्रदर्शक बने दीदी के अनन्य सहयोगी पद्मश्री डॉ S P वर्मा जी.
आज फिर से कश्मीर में हैं. गाँधी ग्लोबल फैमिली द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेंगे और फिर एक सामाजिक मित्र की बेटी की शादी में हिस्सा लेंगे और साथ साथ पारिवारिक मित्रों से मिलने सुदूर कश्मीर के अंतिम छोर अमन सेतु तक जाएंगे. पर इन सभी यात्राओं का एक संदेश साफ़ है कि महात्मा गांधी हर जगह मौजूद है और यह मजबूरी का नहीं बल्कि मज़बूती का नाम है
राम मोहन राय,
श्रीनगर ,कश्मीर.
02.10.2024
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