बेटी की शादी (घुमक्कड़ की डायरी - 7)
याक़ूब डार से मेरी पहली मुलाकात श्रीनगर में गांधी ग्लोबल फैमिली द्वारा तीन दिवसीय सम्मेलन में हुई थी. एक बेहद ही संजीदा एवं ज्ञानवान युवक.वे उस सम्मेलन की तैयारी समिति के अग्रणी भूमिका में थे. तैयारियों के साथ साथ वे हमारे कश्मीर के बारे में जानकारी देने की भी महत्वपूर्ण साबित हो रहे थे. शाम को हम सब इकट्ठे बैठते और फिर होता साँस्कृतिक आदान-प्रदान. बंगाल की रीमा गुरुदेव रबीन्द्रनाथ के गीत सुनाती और याक़ूब और उनके साथी कश्मीरी गीत और फिर सब स्वर में स्वर मिला कर विविध भाषाओं के गीत गाते. तीन दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला पर यह प्रवास ही उनसे व्यक्तिगत मैत्री का आधार बना. इसके बाद तो वे हमे GGF के सम्मेलनों में विजयवाडा, पुरी और दिल्ली में भी मिले. एक दो बार हमसे मिलने हमारे घर पानीपत भी आए. टेलीफ़ोन पर तो बातचीत होती ही रहती थी.
वर्ष 2016 में GGF का एक प्रतिनिधिमंडल पद्मश्री धर्मपाल सैनी, वीणा बहन और ज्योति बहन के नेतृत्व में श्रीलंका गया.
उस समय श्रीलंका में गांधी विचार के अग्रणी चिन्तक आदरणीय डॉo ए टी आर्यरत्न ने जी जीवित थे. हम सब की यह इच्छा थी की हम उन्हें जाकर मिले और उनके सानिध्य में कुछ दिन बिताए. मेरी बेटी संघमित्रा इसकी एक प्रतीक बनी क्योंकि हमने उसे यात्रा का संयोजन किया. संघमित्रा सम्राट अशोक की पुत्री थी और अशोक द्वारा बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद जब वह बौद्ध भिक्षु के रूप में कार्यरत रहे तो उन्होंने इसके प्रचार के लिए अपने सुपुत्री संघमित्रा और सुपुत्र महेंद्र को श्रीलंका
भेजा था. उसी की पावन स्मृति में हमने भी इस यात्रा का नाम दिया था "Revist of Sanghmitra" .
जब मेरी दूसरी बेटी हुई तो जैसा कि समाज में प्रचलन है एक अवसाद का माहौल हमारे अन्य रिश्तेदारों में था, जबकि ऐसा कुछ भी मेरे परिवार में नहीं था. क्योंकि माता-पिता स्वतंत्र विचारों के उदार व्यक्ति थे और आर्य समाज का बहुत बड़ा प्रभाव उन पर था. मेरी माता तो हमेशा महिलाओं के शिक्षा प्रशिक्षण और सशक्तिकरण के लिए ही कार्य करती रही. मैंने अपनी इस पीड़ा को कि हमारे अन्य रिश्तेदार हमारी दूसरी बेटी के बारे में क्या कहते हैं अपनी गुरु मां निर्मला देशपांडे जी को बताया तो उन्होंने मुझे कहा कि देखना तुम्हारी यह बेटी पूरे परिवार का नाम रोशन करेंगे और उन्होंने ही कहा कि इस बेटी का नाम संघमित्रा रखना. हमने भी वैसा ही किया और अब संघमित्रा बड़ी होने लगी उसके सभी कार्य इस तरह से होते जैसे कि वह एक बौद्ध भिक्षु का हो. अब जब श्रीलंका जाने का कार्यक्रम बन रहा था तो मेरे सभी मित्रों ने कहा कि क्यों ना हम इस यात्रा को विश्व शांति, भाईचारे और मैत्री को समर्पित करते हुए दीदी दीदी निर्मला देशपांडे जी द्वारा प्रदत्त संघमित्रा की revisit का नाम दें. तो इससे केवल सम्राट अशोक से स्वर्गीय देवी निर्मला देशपांडे जी पर्यंत स्मृति बनेगी और यह एक प्रेरणादाई यात्रा भी साबित होगी. और ऐसा ही किया हमने उसे यात्रा का नाम दिया रे विजिट
आफ संघमित्रा का नाम दिया. हम सब लोग जिनमें देश के सभी गांधी सेवक थे और हमारी जयवंती श्योकन्द दीदी , उर्मिला बहन, मारुति भाई, अनिल होर और दुसरे युवा साथी थे. हमारे साथ थे याक़ूब भाई.
वेद में संगठन सूक्त के मंत्रों में कहा है कि :
"सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मानांसि जानताम् ।
देवा भागं यथा पूर्वे सं जनाना उपासते ।।"
(प्रेम से मिलकर चलो बोलो सभी ज्ञानी बनो ।
पूर्वजों की भांति तुम कर्तव्य के मानी बनो ।।)
मिलकर चलने से ही संगठन बनता है अपितु एकता भी मजबूत होती है. यात्राएं में साथ रहना, साथ समझना संगठन को मजबूत करती हैं. यही बात हमारी श्रीलंका यात्रा के दौरान रही कि जहां आपसी मैत्री हुई वहीं पर गांधी ग्लोबल फैमिली के संगठन का भी एक मजबूत निर्माण हुआ.
सन 2017 में भाई जी सुब्बाराव का यह मन रहा कि क्यों न कश्मीर जाकर वहां के लोगों से मिला जाए उनकी पीड़ा को सुना जाये ताकि घावों पर मलहम लगाकर एक कार्यक्रम तैयार किया जाए की भविष्य में कश्मीर, कश्मीरी और कश्मीरियत से किस तरह से हमारा लगाव बढ़े. कश्मीर न केवल एक पर्यटक स्थल के रूप में अपितु आध्यात्मिक वैभव से भरा हुआ है. भाई जी के नेतृत्व में हम कुछ साथी जिसमें संजय राय, सुधीर भाई और मैं भी रहा, हम लोग कश्मीर गए श्रीनगर में रुके और तमाम तरह के लोगों से मिले. विशेष तौर से युसूफ तारीगामी से. उनसे मिलना कश्मीर के इतिहास को, उसकी पीड़ा को समझने का एक सशक्त माध्यम रहा. हम इस दौरान याकूब भाई के घर भी गए. इत्तेफाक से उनके भांजे की शादी थी. शादी के इस मौके पर हम भी शामिल हुए परंतु पूरी तरह से हम कश्मीरी शादी की संस्कृति को नहीं समझ पाए. परंतु याकूब भाई के परिवार में ठहरने पर उनकी बहन, उनकी पत्नी, उनकी बेटी से शेफाली और दोनों बेटों से खूब मुलाकात रही और ऐसा लगा कि यह सब मेरा परिवार ही है. याकूब भाई ने इस दौरान कहा कि जब भी बेटी की शादी होगी तो आप आशीर्वाद देने के लिए जरूर आना. शादी कब होगी, किससे होगी? यह तो तब निश्चित नहीं हुआ था परंतु यह तो निश्चित था ही शादी तो होगी ही. पर उन्होंने तो हमें खुला न्योता दे दिया था. पिछले साल जब मैं अमेरिका में था तो याकूब भाई का फोन आया कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी सितंबर- अक्टूबर में तय की है और वह चाहते हैं कि आप अपने वायदे के मुताबिक इस शादी में जरूर शामिल हो. बाद में शादी की तारीख 5 अक्टूबर पाई गई. इत्तेफाक से यह वह दिन था जब हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होने थे. मेरा मन था कि मैं अपने लोकतांत्रिक अधिकार का भी प्रयोग करो परंतु मेरे सामने याकूब भाई का दिया वायदा भी याद था, जिसमें लगभग 6 साल पहले मैंने कहा था कि आपकी बेटी की शादी में जरूर आऊंगा और अब वह समय आ गया था मैंने वायदे को प्रमुखता दी और मैं और मेरी पत्नी आज अपने प्रिय बेटी शेफाली की शादी में भाग लेने के लिए उनके गांव बड़गांव में पहुंचे हैं बेटी हमारे आने से बहुत प्रसन्न हुई जिसका इजहार हम नहीं कर सकते.
Ram Mohan Rai,
Badipora , Badgam, Jammu and Kashmir.
01.10.2024
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