Switzerland to Kashmir (घुमक्कड़ की डायरी - 10)
पहली पोरा
रात को 10:30 बजे गांव पहली पोरा, जिला बारामुला पहुंचे. श्रीनगर से गांव तक का सफर लगभग 80 किलोमीटर का था और यह मुख्य राजमार्ग है और इस पूरे रास्ते में हमने देखा की जगह-जगह फ्लाईओवर बनने की वजह से कई जगह रास्ते में व्यवधान है पर यह रास्ता इस रात को भी बहुत ही खुशगवार रहा. इस पूरे रास्ते में, मैं सोच रहा था और विगत की उन परतों को भी खोल रहा था जो कारण थी आज इस गांव में जाने की, इसी गांव के एक बुजुर्ग अताउल्लाह साहब सन 1964- 65 में हमारे शहर पानीपत में आए थे. बहुत ही नेक इंसान थे. संयोगवश वे मेरे पिता मास्टर सीताराम सैनी के प्रगाढ़ मित्र बन गए. यह वह समय था जब सन 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग का वातावरण था और सरकार की तरफ से ब्लैक आउट की घोषणा थी. रात को लोग टिकरी पहरा भी देते थे ताकि कोई भी असामाजिक तत्व किसी प्रकार की अफवाहें उड़कर लोगों को भयभीत न करें ऐसे समय में मेरे पिता और अताउल्लाह साहब दोनों का जब भी नंबर आता तो वह मोहल्ले का मिल कर पहरा देते. यह दोस्ती परवान चढ़ी और धीरे-धीरे यह दो लोगों के बीच से बढ़कर पारिवारिक मित्रता बन गई. अताउल्लाह साहब एक रूहानी शख्सियत थे और बाद में उन्होंने सिविल हॉस्पिटल पानीपत में दरगाह हजरत रोशन अली शाह के खादिम का काम संभाला. उन्होंने न उसको संवारा अपितु उसकी सेवा, तामीरदारी और भव्यता देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी. अताउल्लाह साहब के देहांत के बाद उनके मानस पुत्र आफताब, जो रिश्ते में उनके भांजे भी लगते थे, उन्होंने इस दरगाह की खादिम की सेवाएं कबूल की और उन्हीं की एक भांजी रेहाना खान जो कि कश्मीर में पली- बढ़ी और वहीं साइकोलॉजी में मास्टर्स की और फिर पानीपत में उनकी एक युवक हसन के साथ शादी होने पर यहीं रह कर हमारी संस्था माता सीता रानी सेवा संस्था द्वारा संचालित परिवार परामर्श केंद्र में परामर्शदाता के रूप में कार्य करने लगी. जब हमारा कश्मीर का कार्यक्रम बना तो आफताब साहब के पूरे परिवार तथा रिहाना का आग्रह रहा कि जब हम कश्मीर जा ही रहे हैं तो उनके घर भी जाएं. बेशक हमारे पास इतना समय नहीं था कि हम 5-6 दिन में कई जगह जा सके और इस मामले में हमने उन्हें पूरी तरह से वायदा भी नहीं किया, परंतु जब रिहाना के पिता राजा शौकत हमें लिवाने श्रीनगर आ गए तो अब हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था, उनके साथ चलने के अलावा, और हम पहुंच गए उनके गांव पहलीपुरा में. देर रात के बावजूद भी पूरा परिवार हमारी इंतजार कर रहा था. एक पूरा अपरिचित गांव और अनजान परिवार के लोग किस तरह से मेजबानी करके अपने मेहमान का खैर मकदम करते हैं यह वहां देखने से ही बनता था.
दस्तरखान पर बिठाकर सबसे पहले हमें खाना खिलाया गया. हमारी तो यह उनसे गुज़ारिश थी कि आप हमें कश्मीरी खाना खिलाए. परंतु उन्हें या हिदायत दी गई थी कि हम लोग गोश्त नहीं खाते और इसके अलावा हम दालें, सब्जियां और पनीर खाते हैं. इसलिए खाने में यही चीज बनाई गई थी. हमने पेट भर खाना खाया और फिर रात को सोने के लिए चले गए. अगले दिन सुबह चिड़ियों की चहचहाट के अलार्म ने हमें जगाया. बहुत दिनों के बाद हमने पाया की चिड़िया भी चहचहाहट भी एक अलार्म का काम करती है.
मॉर्निंग टी में हमे नमकीन कश्मीरी चाय और नान परोसे गए. और फिर बाहर निकलने पर हमने पाया कि हमारे मेजबान घर के पेड़ों पर से उतरे अखरोट को पानी से साफ कर सुखाने का काम कर रहे है. ऐसा वे हमारे साथ उन्हें भेजने के लिए कर रहे थे. उनके साथ ही बेर की तरह के छोटे छोटे फ़ल भी रखे हुए थे. हमे अचरज हुआ कि यह बेर न होकर छोटे छोटे सेब थे. उनका कहना था कि बहुत कम लोगों के घरों में इस तरह के सेबों के पेड़ है. ये खाने में खट्टे-मीठे होते हैं और स्वादिष्ट भी. उनका पूरा परिवार ही बहुत विनम्र तथा अतिथि पारायण था. हमारे लिए हर सहूलियत का ध्यान रखना उनकी प्राथमिकता में था. उनका दो वर्षीय नाती हमाँद बहुत ही चंचल और प्यारा बच्चा है जो हर किसी को अपनी प्यार भरी हरकतों से मोहित करता है.
दोपहर के खाने के बाद राजा शौकत हमें अपने गांव को दिखाने के लिए ले चले. कुछ ही दूर चले थे तभी हमें एक जगह से बच्चों की खेलने और उनके कौतूहल का शोर सुनाई दिया. लगता था कि वह एक स्कूल है. हमने कहा कि यदि यहां कोई स्कूल है तो हम उसे अवश्य देखना चाहेंगे. कुछ सीढ़ियां नीचे उतरकर बिल्कुल नदी के किनारे एक छोटा सा स्कूल निज़ामिया पब्लिक स्कूल के नाम से था. हमने सबसे पहले वहां की हेडमिस्ट्रेस को मिलना मुनासिब समझा. हम उनसे मिले अपना परिचय दिया और फिर उनसे आग्रह किया कि हम उनका स्कूल देखना चाहते हैं और बच्चों से बात भी करना चाहते हैं. इस पर उन्होंने अपनी सीनियर क्लास के लड़के लड़कियों को एक ही कक्षा में एकत्रित किया और फिर हमने उनसे बातचीत प्रारंभ की. बातचीत का मौजू लड़कियों के शिक्षा की जरूरत रहा. हमने अपने शहर के मशहूर शायर ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली के संदर्भ से अनेक उनकी शायरी और कविताएं रखी और शिक्षा के महत्व के बारे में बताया. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई की सभी बच्चे हाली पानीपती तथा उनकी शायरी के बारे में खूब जानते थे. तभी एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हमारे पानीपत में हाली अपना स्कूल में पढ़ रहे बच्चों तथा उनका एक संवाद आयोजित किया. इस बात से दोनों तरफ के बच्चे बहुत ही प्रसन्न हुए और फिर कुछ ग्रुप फोटोस लेकर हमने उनसे विदाई ली. इस छोटे से गांव में शिक्षा का अत्यंत प्रचार प्रसार है. गांव में ही गवर्नमेंट का एक सीनियर सेकेंडरी स्कूल है और यह भी जानकारी मिली कि इस छोटे से गांव में तीन चार और भी पब्लिक स्कूल भी चल रहे हैं. गांव में प्रत्येक व्यक्ति पढ़ा लिखा है और खास तौर से गांव की लड़कियां ग्रेजुएट तथा पोस्ट ग्रेजुएट भी कर रहे हैं. किसी भी समाज की तरक्की का पैमाना उसकी लड़कियों की शिक्षा से पता चलता है.
दोपहर बाद मेजबान के छोटे दामाद वाहिद अपनी गाड़ी लेकर हमें घुमाने के लिए आ गए और फिर हम वहां से लगभग 20 किलोमीटर झेलम नदी पर पहुंचे. झेलम नदी के पार जाने के लिए तकरीबन 10- 12 किलोमीटर का घुमावदार रास्ता था पर हमने उसे नदी की सीढियों पर चल कर तथा पुल पैदल ही पार करना ही मुनासिब समझा. रास्ता काफी दुर्गम परंतु साहसपूर्ण था. हवाएं भी ठंडी चल रही थी और जब हम झेलम नदी के उसे पुल पर पहुंचे तो वह झूले की तरह हल्का-हल्का झूल रहा था. बहुत ही आनंद का वातावरण था फिर तकरीबन 2 किलोमीटर हम झेलम नदी के किनारे किनारे चले और हमने पाया की झेलम नदी पर कई डैम बनाए गए हैं तथा वहां कई बिजली उत्पादन की परियोजनाएं हैं. हमें इस बात की जानकारी मिली कि कश्मीर भारत के अन्य राज्यों को बिजली उपलब्ध कराता है परंतु कश्मीरी लोगों को इस बात का रंज था कि हम दूसरे प्रांतों को तो बिजली उपलब्ध कराते हैं परंतु हमारे अपने यहां इस रियासत में बिजली की हमेशा कमी रहती है. इस तरह की शिकायतें अक्सर मिलती रहती हैं जरूरत है कि इन तमाम तरह की दिक्कतों को दूर करते हुए एक समन्वय स्थापित किया जाए ताकि प्रति को उसकी जरूरत के मुताबिक बिजली की आपूर्ति हो सके.
इसी तरह वे हमें घूमते घुमाते अपने प्रत्येक परिचित और रिश्तेदार के घर ले जना चाहते थे. हमें भी बहुत खुशी थी कि वह हमें अपने परिवार का ही एक अंग मान रहे हैं तथा प्रत्येक से हमारा परिचय करवाना चाहते हैं. धीरे-धीरे रात बढ़ने लगी थी और इधर आफताब साहब की बहन ने हमारा रात्रि भोज अपने घर पर रखा हुआ था. हम घर आए और फिर रात्रि भोज के लिए चल पड़े.
अगले दिन सुबह हमारा वापसी का दिन था. हमारा पूरा मेजबान परिवार आज हमारे जाने पर उदास था. वह चाहते थे कि हम कुछ दिन और रूके परंतु हमारी विवशता थी. हमने बहुत ही भावुक हृदय से उनसे विदाई ली और चल पड़े. मेजबान राजा शौकत हमें बारामूला तक छोड़ने के लिए आए. वे जंगलात महकमें में नौकरी करते हैं परंतु हमारे आने की खुशी में उन्होंने दो दिन की छुट्टी ली हुई थी. उन्हें इस बात की प्रसन्नता थी कि उनके घर मेहमान आए हैं और मेहमान उनके लिए किसी भी तरह से अल्लाह की नियामत से कम नहीं है.
Ram Mohan Rai,
Pahlipora, Baramula, Jammu and Kashmir.
04.10.2024.
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