Switzerland to Kashmir (घुमक्कड़ की डायरी - 12)
गुलमर्ग से लौटते हुए हम कुछ समय तुंगमार्ग रुके और हमने वहां लंच किया. लंच करने के बाद हमारा सीधा पड़ाव बीरवाह रहा. यह नगर बहुत ही ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण जगह है. इसका प्राचीन नाम वीर वाह था यानी कि जहां पर सात गर्म पानी चश्में है. यह तमाम चश्मे आज भी सक्रिय है और लोग इसे देखने के लिए भारी तादाद में आते हैं. इसके नजदीकी दूधतलाई है जो पर्यटन की दृष्टि से कश्मीर में एक बहुत ही प्रसिद्ध जगह है. यह कस्बा जिला बड़गांव की एक तहसील है. यदि धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो यह सर्वधर्म समभाव का भी एक केंद्र है. सभी धर्मों के धार्मिक स्थल यहां है और सब के सब ऐतिहासिक तथा दर्शनीय है.
हमारे मेजबान हमें सीधे ही "अपना घर" ले आए जो उन्होंने सन 1998 में दीदी निर्मला देशपांडे जी की प्रेरणा से बनाया था. हमारे मेजबान हमीदुल्लाह हामिद साहब उस समय सरकारी नौकरी में थे और वह दौर मिलिटेंसी का था. उन दर्दनाक हादसों में पूरे कश्मीर घाटी में हजारों औरतें बेवा हुई थी और लाखों बच्चे यतीम हुए थे. कोई भी ऐसा चारा नहीं था कि जहां औरतें और बच्चों को राहत मिले. दीदी निर्मला देशपांडे जी ने हमीद उल्ला साहब को यह कहा कि आपको उनके लिए काम करना चाहिए. यह बात हामिद साहब को बहुत पसन्द और उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने घर में ही इस केंद्र की शुरुआत की. निर्मला दीदी ने इस केंद्र का नाम "अपना घर" दिया यानी कि इसे सब अपना माने "ना कोई वैरी, ना कोई बेगाना" और तब से अब तक कश्मीर के हजारों बच्चों को यह स्थान अपने नाम के अनुरूप अपना घर का एहसास करवा चुका है. यह कोई स्कूल नहीं है परंतु यहां पर बिरवा में पढ़ने वाले अन्य स्कूलों के जरुरतमंद बच्चे स्कूल से लौटकर रहते हैं और पढ़ते हैं. उनके तमाम प्रकार के ठहरने और खाने का प्रबंध हामिद साहब और उनके टीम करती है.
हमने अपना घर तथा उसमें चल रहे काम को बारीकी से देखने की कोशिश की और पाया कि लगभग 2 एकड़ में इसका परिसर है. इसकी तीन मंजिला एक बिल्डिंग में हर मंजिल पर बड़े-बड़े कमरे बने हुए हैं जहां पर अलग-अलग स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी रहते हैं. उनके लिए हर सुविधा यहां उपलब्ध है. ग्राउंड फ्लोर पर एक सामूहिक किचन है जहां पर उन बच्चों के लिए मनभाता खाना मिलता है. इसी बिल्डिंग के साथ एक पूरा प्लेग्राउंड है जहां पर हमने पाया कि इस अपना घर के बच्चे फुटबॉल खेल रहे हैं. बच्चों के खुशी इस बात को बता रही थी कि वह यहां रहकर अपने आप को कितना प्रसन्न एवं खुशनसीब महसूस करते हैं. यद्यपि हामिद साहब के अपने भी बच्चे हैं जो कश्मीर से बाहर बरसरे रोजगार हैं और ऊंचे पदों पर आसीन है. उनका परिवार इस काम में हामिद साहब की मदद करता है. जब हमने उनसे सवाल किया कि आपके कितने बच्चे हैं? तो वे खिलखिला कर जवाब देते हैं कि जो भी अपना घर में रहते हैं वे सभी उनके बच्चे हैं. हमने यह भी पाया कि स्कूल में इस घर में रहने वाले अनेक बच्चे आज बड़े ऊंचे ऊंचे पदों पर आसीन है.और वे भी इस अपना घर की मदद करते हैं. इस जगह में रहने वाले तमाम वे लोग भी जो कि इन बच्चों के साथ बतौर अध्यापक, संरक्षक, रसोईया और अन्य सेवा का काम करते हैं वे भी बड़े प्रसन्नचित होकर इन बच्चों के साथ व्यवहार करते हैं.
शाम को इन तमाम बच्चों की एक क्लास लेने का मुझे भी अवसर मिला. मैंने उनसे देश- दुनिया की बात की और यह भी बताने की कोशिश की कि पूरी दुनिया उनकी मुट्ठी में है इसलिए उन्हें अच्छे से अच्छे सपने लेकर अपना मिशन तय करना चाहिए ताकि वे एक बहुत अच्छे उद्देश्य को प्राप्त कर सके. हमने उन्हें हाली अपना स्कूल, पानीपत में भी आने का निमंत्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया. इस अवसर पर गांधीवादी श्री कलानंद मणि तथा मेरी पत्नी श्रीमती कृष्णा कांता ने भी संबोधित किया तथा उन बच्चों के बीच अपने को एक रूप मानकर बातचीत की रात कब हो गई हमें पता नहीं चला और अगले दिन हम सुबह उठे और हम शुभ विचार और दृढ़ विश्वास के साथ इस स्थान से विदा हुए.
Ram Mohan Rai,
Apna Ghar, Beerwah,
Distt Badgam, Jammu and Kashmir.
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