Switzerland to Kashmir (घुमक्कड़ की डायरी - 14)

बीरवाह सर्वधर्म समभाव का एक अद्वितीय केंद्र है. यहां अनेक ऐतिहासिक मस्जिद, मंदिर और साथ-साथ एक बहुत ही ऐतिहासिक और प्रसिद्ध गुरुद्वारा श्री गुरु नानक चरण पादुका दुख निवारण साहब भी है. अभिनव गुप्त गुफा जाने पर हम ऊपर उस पहाड़ी की छोटी से जहां पूरे शहर का एक मंजर देखे रहे थे, जहां नदियां, सड़के, मस्जिद- मंदिर दिखाई देते हैं उसके साथ-साथ एक बहुत ही सुंदर गुरुद्वारा के भी दर्शन होते हैं मैंने अपने मेजबान से आग्रह किया कि वह हमें यहां के कुछ और ऐतिहासिक जगह की जानकारी दें और यदि संभव हो सके तो ले जाए तो उनका कहना था कि यहां एक गुरुद्वारा है जहां श्री गुरु नानक देव महाराज अपनी उदासी के समय कश्मीर और लेह लद्दाख धर्म प्रचार के लिए पधारे थे तो वह यहां भी पधारे थे अतः उसे गुरुद्वारे के दर्शन अवश्य करने चाहिए. 
    हम उसे गुरुद्वारे में गए जो दो मंजिल है नीचे संगत हाल है और ऊपर की तरफ श्री गुरु ग्रंथ साहब महाराज की विराजमान गद्दी से उनका प्रकाश हो रहा है. हमें यहां आकर सिख संगत से भी मिलने का सौभाग्य मिला तो पाया कि यहां सिख साहिबान महाराजा रणजीत सिंह के शासन के दौरान आए और यही बस गए और अभी तक उनकी सिख धर्म की परंपराएं कायम है. वे अपनी भाषा और बोली के रूप में गुरुमुखी अर्थात पंजाबी का इस्तेमाल ही करते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि पूरे जम्मू कश्मीर में लगभग 2, 34, 848 सिख संगत है और अगर संगत द्वारा निर्मित गुरुद्वारा देखें तो अकेले बारामूला में ही लगभग पांच और अनेक अलग-अलग जगह पर गुरुद्वारों की स्थापना की गई है. मौजूदा गुरुद्वारा इसकी स्थापना भी महाराजा रणजीत सिंह के समय हुई थी, पर 1947 के बाद जब यहां बाढ़ आई तो जहां जान माल का नुकसान हुआ वहीं गुरुद्वारा साहब को भी काफी क्षति हुई थी. इसके बाद सिख संगत ने यहां दोबारा गुरुद्वारा साहब का निर्माण करवाया और अब यह अपनी भव्यता को प्राप्त है. गुरुद्वारा साहब के उत्तर की तरफ एक सराय (अतिथि गृह) का निर्माण किया गया है जहां तकरीबन 20 कमरे बनाए गए हैं, जो सभी में उत्तम व्यवस्था है और हर प्रकार की आधुनिक सुविधाएं भी वहां दी गई है. गुरुद्वारा साहब के पश्चिम में रसोई और लंगर हाल है जहां पर हर समय लंगर बनाने के लिए कार सेवा चलती रहती है. चाय, लंगर और दूसरे खाद्य पदार्थों का हमेशा पर्याप्त भंडार रहता है गुरुद्वारे के अनेक उपस्थित सदस्यों से साथ बातचीत करके बहुत ही संतोष का अनुभव हुआ. हमने उनसे यह भी पूछा कि मिलिटेंसी के दौरान उनका किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा तो उनका कहना था कि मिलिटेंसी का के दौरान सबको उसका नुकसान हुआ सिख संगत को भी हुआ, परंतु उसे दौरान भी संगत यहां से पलायन करके कहीं बाहर सुरक्षित स्थानों पर नहीं और यही रही. आज अब जब शांति है तो हम दूसरे भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं. यह तमाम बातें इस बात की सूचक है कि लोग सुलह, शांति और इत्मीनान से रहना चाहते हैं और सिख धर्म की तो प्रमुख वाणी यही है ना कोई बैरी, न कोई न कोई बिगाना, सकल संग अपनी बनी आई. यही वाणी वाणी का प्रचार प्रसार इस गुरुद्वारे में हो रहा है.
Ram Mohan Rai,
Beerwah, Badgam, Jammu and Kashmir.
05.10.2024

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