Switzerland to Kashmir (घुमक्कड़ की डायरी - 4)
कश्मीर जाने के लिए मन में काफी उत्साह था और रोमांच भी। मैं अंतिम बार सन 2017 में भाई जी सुब्बाराव के साथ एक शांति दल में श्रीनगर गया था। वहाँ दो-तीन दिन रुके भी थे और लोगों से काफी बातचीत भी हुई थी। सभी लोगों का मानना था कि वे घाटी में शांति चाहते हैं परंतु उनका यह भी कहना था कि ऐसी शांति न्याय के बिना असंभव है। वे यह भी मानते थे की पूरी रियासत में बेरोजगारी चरम सीमा पर है और नौजवानों के पास काम न होने की वजह से अन्य हरकतों में संलिप्त रहते हैं। पर अच्छाई यह भी थी कि अब उनके आक्रोश के इजहार करने का ढंग शांतिपूर्ण आंदोलन था। हुरियत कांफ्रेंस के अनेक नेता अनशन, धरने, शांतिप्रिय जुलूस एवं अन्य अहिंसक ढंग से विवाद को निपटने की तरफ बढ़ने लगे थे और अनेक नेता तो भारतीय संविधान के अंतर्गत होने वाले चुनाव की प्रक्रिया में भी हिस्सा लेकर उसे ही विकल्प मानने लगे थे। हमने अनेक जगह पाया कि अब पत्थरबाजी की घटनाएँ कम हो रही थी और हिंसक वारदातें भी। ऐसा भी देखा गया कि अनेक अलगाववादी नेता गोली की बजाय बोली यानी हथियार की बजाय बातचीत और संवाद में यकीन करने लगे हैं। मिलिटेंसी से शांति की तरफ माहौल बनता जा रहा है। परंतु 2021 में कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करना, अनुच्छेद 370 की समाप्ति तथा इसके राज्य के अधिकार को समाप्त करने की सोच ने कश्मीर के लोगों को धक्का पहुंचाया। शांति के प्रति उनका विश्वास डगमगाने लगा परंतु फिर भी अहिंसा के प्रति उनकी आस्था दृढ़ थी। आम लोगों में असंतोष था और इस असंतोष का इजहार वे लोकतांत्रिक प्रणाली से देना चाहते थे। शांति और अहिंसा में उनका यकीन किसी दबाव के कारण नहीं था बल्कि उसे सतत प्रक्रिया के कारण था जो 1947 में महात्मा गांधी से शुरू हुई थी और जिसका निर्वहन संत विनोबा भावे, निर्मला देशपांडे, सुब्बाराव जी और स्वामी अग्निवेश जी ने किया था। यह आस्था कश्मीरी लोगों की स्वत: स्फूर्त थी जो उन्हें शैव,बौद्ध और इस्लाम की शिक्षाओं ने दी थी पर हां ,अनुच्छेद 370 के हटने के बाद कश्मीर वादी में हमारा पहली बार आना था। जबकि जम्मू तो दो-तीन बार आ चुके थे।
हमने इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, नई दिल्ली से एयर इंडिया एक्सप्रेस की फ्लाइट जो की 2 बजकर पांच मिनट की थी, उसे पकड़ा और उसमें इत्मीनान से बैठ गए। फ्लाइट डेढ़ घंटे की थी परंतु 1 घंटे बाद ही हमें सूचना दी गई कि हम श्रीनगर के शेख उल आलम एयरपोर्ट पर उतर रहे हैं। मैं समझता था कि श्रीनगर एयरपोर्ट का नाम तो कुछ और ही कश्मीरी नेताओं के नाम पर होगा। पर पाया कि इस एयरपोर्ट का नाम प्रसिद्ध सूफी संत शेख उल आलम है जो पूरे कश्मीर में
नुन्द ऋषि के नाम से जाने जाते हैं और जो न केवल एक कश्मीरी सूफी संत थे अपितु विख्यात फकीर, कवि, और इस्लामिक विद्वान भी थे, उनके नाम पर रखा गया है। हमें जानकर बेहद प्रसन्नता हुई कि इस रियासत के लोग संतो, फकीरों और कवियों का इतना सम्मान करते हैं। दस मिनट में ही हम एयरपोर्ट के बाहर आ गए और कार द्वारा अपने दोस्त याक़ूब डार की बेटी शेफाली की शादी में शिरकत करने के लिए उनके बादीपुरा में स्थित घर की तरफ रवाना हुए।
Ram Mohan Rai
Srinagar ( Jammu & Kashmir)
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