Switzerland to Kashmir (घुमक्कड़ की डायरी - 5)
शेफाली बेंते याक़ूब डार यानी कि सुपुत्री याक़ूब डार की शादी में शिरकत करने के लिए हम एयरपोर्ट से उनके घर जोकि लगभग 10- 15 किलोमीटर की दूरी पर था ,वहाँ कार से पहुंच रहे थे। रास्ते भर हरियाली और लोगों का भरपूर आवागमन देखने को मिला। खास तौर से महिलाओं और बच्चों का। अनेक यात्राओं के दौरान मैंने पाया कि कश्मीरी महिलाएँ देश के अन्य हिस्सों की महिलाओं की बनिस्पत निर्भीक एवं उदार वृति की है। पर्दा सिस्टम तो उन्होंने लगभग छोड़ ही दिया है। हमें एक वाकया याद आया जब 1 अगस्त 1947 को महात्मा गांधी श्रीनगर आए थे तो उनका स्वागत करने के लिए कश्मीर के महान नेता शेख अब्दुल्ला की पत्नी श्रीमती अकबर बेगम जिन्हें पूरे कश्मीर में मादरे मेहरबान के नाम से संबोधित किया जाता था, ने ही महात्मा गांधी का न केवल स्वागत किया था अपितु उनके पांच दिन के प्रवास के दौरान प्रार्थना सभाएँ भी आयोजित की थी और उसी मादरे मेहरबान ने पूरी रियासत की महिलाओं की शिक्षा, स्वावलंबन तथा सशक्तिकरण के लिए अनुकरणीय प्रयास किए थे और जिनका प्रभाव आज तक है कि कश्मीर की महिलाएँ न केवल शिक्षित है अपितु स्वावलंबी भी है।
हमने रास्ते भर नौजवानों तथा बच्चों को भी स्कूल और कॉलेज की छुट्टी के बाद घर लौटते हुए देखा। उनके हाथों में किताबें और उनसे भरे हुए बस्ते थे। अनेक साइकिल पर थे और कुछ पैदल। सन 2007 के आसपास जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का मौका जनाब गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस और पीडीपी की संयुक्त मोर्चा की सरकार में मिला। आजाद साहब इस देश के बहुत ही तजुर्बेकार और संजीदा राजनेता हैं जिन्होंने अपने 45 वर्ष के राजनीतिक जीवन में न केवल अनेक उतार- चढ़ाव को देखा है अपितु केंद्रीय मंत्री से विपक्ष के नेता के रूप में भी काम कर अपनी योग्यता को प्रदर्शित किया है। कश्मीर के गांव- गांव में स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने का अद्भुत काम उनके कार्यकाल में हुआ है। अपने मुख्यमंत्री रहते उन्होंने महात्मा गांधी की विचारधारा को भी विद्यार्थियों में पहुंचने का प्रेरणादायी कार्य किया है। गांधी जयंती पर उन्होंने निचले दर्जे के स्कूल से यूनिवर्सिटी तक विद्यार्थियों में गांधीजी के जीवन पर आधारित भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन किया। जिसमें लाखों छात्रों ने भाग लिया और फिर अंत में एक बड़ा आयोजन मौलाना आजाद स्टेडियम में आयोजित किया गया जिसमें बच्चों को आर्थिक पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया गया। प्रतियोगिता और पुरस्कार तो बहाना था गांधी विचार को पहुंचाने का और फिर जो परिवर्तन हुआ वह यह था कि अब युवाओं और बच्चों के हाथ में कलम है। इस बार एक नया कश्मीर देखने को मिल रहा था। आज ही इस रियासत में तीसरे चरण का अंतिम चुनाव हुआ और लोगों ने अपनी इच्छा और विश्वास का इजहार वोट के जरिए किया। सभी की जबान पर अनुच्छेद 370 को हटाने के प्रति गुस्सा था पर यह यकीन भी था कि इस चुनाव में उन्होंने अपने मताधिकार का प्रयोग करके उसका इजहार भी किया है और इसी तमाम नजारे को देखते हुए हम याक़ूब भाई की बेटी की शादी के घर
बादीपुरा पहुंचे जहाँ पर पूरा परिवार बहुत ही उत्सुकता से हमारा इंतजार कर रहा था। इस परिवार में मेरे आने का यह दूसरा मौका था। एक बार सन 2017 में और दूसरे अब । बेटी शेफाली बहुत ही योग्य एवं समझदार लड़की है। उसने महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक से एम. कॉम. की परीक्षा पास की है और वह अपने जीवन में बहुत कुछ करना चाहती है। पहली बार आने पर ही उसने अपने बर्ताव से हम सबको प्रभावित किया था। उसकी शादी में आना हमारा सौभाग्य भी था और दायित्व भी.
Ram Mohan Rai,
Srinagar, Jammu and Kashmir.
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