Switzerland to Kashmir (घुमक्कड़ की डायरी - 9)

 

डल लेक का नजारा.  

          कोई भी श्रीनगर आए और डल लेक पर न जाए तो उसकी यात्रा पूर्ण नहीं होती.  मैं जब-जब श्रीनगर आया तब - तब यहां सिर्फ इसे देखने नहीं आया अपितु दो बार तो यहां आकर रुका भी. सन 2017 में जब भाई जी सुब्बाराव अपने अनेक साथियों को लेकर एक शांति मिशन में आए तो हमारे रुकने की व्यवस्था एक शिकारे में की गई थी. शिकारा एक किश्ती नुमा एक बहुत बड़ा जलयान होता है जो पानी में ही खड़ा रहता है और उसके अंदर तीन-चार कमरे होते हैं. रुकने के लिए कमरों के अतरिक्त एक बैठक भी होती है. हम लोगों ने भी उसे समय एक शिकारा रुकने के लिए किया हुआ था. दुर्भाग्य यह रहा की जैसे ही मैं श्रीनगर पहुंचा तो मुझे चिकनगुनिया का अटैक हो गया. मैं ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता था कि बुखार के साथ-साथ मेरे पूरे शरीर को इस बीमारी में जकड़ लिया और ऐसा लगने लगा जैसे पूरे शरीर में गठिया हो गया है.  उंगलियां ने काम करना बंद कर दिया और हाथ भी मुड़ता नहीं था और शरीर में भी बहुत ज्यादा पीड़ा थी मुझे वह समय याद है कि जब पूरी रात मैं बुखार से तप रहा था और चलने फिरने में मोहताज था तो आदरणीय सुब्बाराव भाई जी ने यह निर्णय लिया कि वह मेरे साथ वाले पलंग पर तिमारदारी के लिए रुकेंगे. मैं तो इस अवस्था में नहीं था कि मैं कुछ कहूं पर मुझे यह बात याद है कि मैं रात को दो-तीन बार जब भी लघु शंका के लिए उठा तो मैंने देखा कि भाई जी जाग रहे  थे. ऐसा बड़प्पन सिर्फ बड़े लोगों में ही हो सकता है. मैं शिकारे की बात कर रहा था परंतु मेरा यह अनुभव  शिकारे की सुखद स्मृति है

     आज फिर हम श्रीनगर की डल लेक पर है. आज से ही मुझे लगभग दो महीने पहले स्विट्जरलैंड में इंटरलॉकन  के पास एक बड़ी झील याद आ रही है. यह झील तो काफी बड़ी थी परंतु श्रीनगर की यह  झील भी किसी भी तरह से छोटी नहीं है. इसकी  18 किलोमीटर लम्बाई है और तकरीबन 6 मीटर तक इसकी गहराई है. यहां केवल पर्वतों से बर्फ पिघल कर ही अपितु अनेक स्रोत और नदियों का पानी  इस झील में मिलता हैं. इसकी खूबसूरती किसी भी तरह से इंटर इंटरलॉकन की झील से काम नहीं है. अगर मैं यूं कहूं कि अगर स्विट्जरलैंड की उसे झील के कोई दर्शन भारत में करना चाहे तो वह डल लेक पर आ सकता है. हां स्विटजरलैंड की उस झील के किनारे किनारे कई होटल, गेस्ट हाउस  और दूसरे जगह रुकने के लिए बनी हुई है, पर  यहां तो साक्षात शिकारे हैं जिनमें न केवल आप रह सकते हैं बल्कि पानी  बीच में रहते हुए उसका आनंद ले सकते हैं. आपको पूरी डल लेक में किश्तियों पर चलते-फिरते बाजार नजर आएंगे. जहां आप  अपनी पसंद के कश्मीरी कपडों की खरीदारी और उम्दा चाय और कहावा पीजिए,कश्मीरी खाना खाइए और सूखे मेवे भी खरीद सकते हैं. जबकि कहीं अन्य ऐसा नहीं है चारों तरफ पहाड़ों का इतना ही सुंदर नजारा है जैसा की स्विटजरलैंड के इंटरलॉकन  में था. हां इसके साथ-साथ यह भी की हमारी इस लेक आसपास हजरतबल है उसके साथ ही और भी सुंदर ऐतिहासिक जगह है. मुगल गार्डन है और उससे कुछ हटकर राज भवन है. सामने एक पर्वत की ऊंचाई पर शंकराचार्य के मंदिर के दर्शन भी होते हैं डल लेक सचमुच दर्शनीय है और अनुपम है

      डल लेक, श्रीनगर के पास ही शालीमार बाग जिसे आमतौर पर लोग मुगल गार्डन के नाम से भी जानते हैं, है. इसके निर्माण का कार्य तत्कालीन बादशाह ए हिंदुस्तान जहांगीर ने अपने शासनकाल (1619-1639) में  करवाया था. उसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इसमें कई नवीनीकरण किए और अंत में महाराजा हरि सिंह ने इसमें विद्युतीकरण का काम किया. यह गार्डन उसी तर्ज पर है जैसा कि लाहौर में मुगल गार्डन है और दिल्ली में शालीमार बाग है. यह अपने आप में इतना सुंदर है की हर व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता है. गार्डन के बीचो-बीच बहुत सुंदर फव्वारे लगे हुए हैं जो पानी की एक छोटी नहर में स्थित है. इसकी सुंदरता शाम के समय जब अंधेरा होने लगे और  रंग बिरंगी रोशनी हो और यह फुहारें चले तो और भी बढ़ जाती है. मुझे इस बात की खुशी है कि मैं लाहौर का  शालीमार बाग और शालीमार बाग दिल्ली  भी  देखा है और  में इसे देखकर तीनों शालीमार बाग की श्रृंखला है उसको पूरा किया है.

    डल लेक की सुंदरता अद्वितीय है. इसके एक तरफ जहां मुगल गार्डन है वहीं दूसरी तरफ हिंदुस्तान के तत्कालीन बादशाह जहांगीर द्वारा अपनी पत्नी नूरजहां के लिए बनाया निशात बाग है. निशात का अर्थ है आनंद, यानी कि आनंद का स्थल.

  इसकी एक तरफ जबरवन की पहाड़ियां हैं जो पीर पंजाल की श्रृंखला से जुड़ी हुई है. निशात बाग अंदर से बहुत ही खूबसूरत है और अन्य पार्कों की तरह यहां फव्वारे लगे हैं और इसका दूसरा आनंद यह भी है कि बाग के सामने ही एक शॉपिंग मार्केट है जहां पर पर्यटक और दूसरे लोग अपनी-अपने पसंद की कश्मीरी और अन्य वस्तुओं को खरीद सकते हैं. यहां आना सचमुच में बहुत सुंदर है. मैं यह कह सकता हूं कि जब हम यहां स्विट्जरलैंड से कश्मीर की बात कर रहे हैं तो हम देखते हैं कि भारत में यह विशेषता है कि यहां के तमाम पर्यटक स्थल किसी न किसी इतिहास से जुड़े हुए हैं जबकि प्राकृतिक तो है.  इसकी और ज्यादा सुंदरता का काम इतिहास के बादशाहों, राजाओं और शासको ने दिया है. जबकि स्विट्जरलैंड में आप तमाम जो भी स्थल देखते हैं वह सब प्राकृतिक हैं पर वहां हर चीज को उन्होंने बहुत अच्छी तरह संरक्षित किया है और संजोया है, जबकि हमारे कश्मीर में जगह तो बहुत खूबसूरत है परंतु हम उसे पर्यटन की दृष्टि से बहुत ज्यादा सुंदर ढंग से संरक्षित नहीं कर पाए.

   

डल लेक के उत्तर की तरफ पूरे भारत का एक बहुत ही पवित्र मुस्लिम स्थल हजरतबल मस्जिद है. जिसका निर्माण 17 वीं शताब्दी में शताब्दी में ख्वाजा नूरुद्दीन इशाई की सुपुत्री इनायत बेगम ने किया था. इसी को और ज्यादा खूबसूरत बनाने का काम मुगल बादशाह शाहजहां के सूबेदार सादिक खान ने किया. सन 1635 के आसपास सैयद अब्दुल्लाह मदनी जो की हजरत पैगंबर साहब के परिवार से थे. वे पैगंबर साहब का एक बाल एक स्मृति के रूप में  पहले बीजापुर में और बाद में श्रीनगर में  लाए और उसे इस स्थान पर रखा गया  और  इसे हजरतबल यानी कि हजरत पैगंबर साहब का जहां बाल रखा हुआ है, वह नाम दिया गया. यह मस्जिद न केवल दर्शनीय है अपितु पवित्रता की दृष्टि में भी इसे बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. हजारों लोग ने केवल रोजाना नमाज पढ़ने के लिए अपितु जुम्मे की नमाज पढ़ने के लिए तो लाखों लोग यहां एकत्रित होते हैं. यह स्थान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कश्मीर के इतिहास में इसकी प्रमुखता इस रूप में है कि जब-जब भी किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति ने जनता को संबोधन करना चाहा तो उसने नहीं आकर संबोधित किया. मुझे याद है कि मैं जब दीदी निर्मला देशपांडे के साथ और उसके बाद स्वामी अग्निवेश जी के साथ यहां आया तो हम हजरतबल के प्रमुख मीर वायज साहब से मिले थे. वे बहुत ही संजीदा और ज्ञानवान व्यक्ति हैं और हमें उन्हीं से हमें इस हजरतबल मस्जिद का धार्मिक आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व का पता चला था.

    डल लेक की सामने जबरवांन पहाड़ी पर आदि शंकराचार्य का मंदिर है. जैसा कि हम जानते हैं कि एक समय था कि जब इस पूरे इलाके में शैव मत का प्रभाव था. आद्य शंकराचार्य शैव मत के एक प्रमुख प्रवर्तक ही नहीं अपितु उस विचार श्रृंखला के प्रचारक और प्रसारक भी थे. तकरीबन 1000 फीट की ऊंचाई पर बने इस मंदिर के लिए 243 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है तब आप उसे मंदिर में पहुंच सकते हैं. मंदिर तो बेशक छोटा है परंतु उसकी रूहानियत आभा इतनी विशाल है की मंदिर में प्रवेश करके उसका एहसास होता है. अनेक साधक यहां घण्टों बैठकर तपस्या करते हैं और भगवान शिव के दिव्य स्वरूप की  अनुभूति करते हैं. इस तरह से अगर हम देखें तो डल लेक के चारों तरफ न केवल प्राकृतिक संपदा का वैभव है वहीं धार्मिक और आध्यात्मिक आभा भी बिखरी हुई है. इस स्थान पर आकर हर कोई मन की भावना से अभिभूत हो सकता है और इस स्थान का ज्यादा से ज्यादा आनंद ले सकता है.

श्रीनगर का एक बहुत बड़ा आकर्षण ट्यूलिप गार्डन है. जो लगभग 30 एकड़ जमीन में फैला हुआ है. सन 2007 में जब जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद थे तो उनका यह एक विजन प्रोजेक्ट था, जिसके तहत उन्होंने हॉलैंड से ट्यूलिप के पौध मंगवाई और यहां लगवाया. आज श्रीनगर में जब लोग घूमने आते हैं तो जहां लाल चौक को देखते हैं, डल लेक देखते हैं और उसके आसपास की सुन्दर इमारत को देखते हैं, वही लोग इस ट्यूलिप गार्डन को देखने के लिए भी जाते हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर जाना जाता है. ट्यूलिप फूल की मात्रा 20 दिन की ही अवधि रहती है और अप्रैल में इसका पीक सीजन होता है. यह एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन है और सीजन के दिनों में हजारों हजार पर्यटक इसे देखने के लिए आते हैं.


       श्रीनगर, कश्मीर का हृदय स्थल है. यहां आकर आप पूरे कश्मीर की संस्कृति, सभ्यता, लोक भाषा और ज्ञान से भारी अन्य जानकारी को सहज ही प्राप्त कर सकते हैं. आधुनिकता और पुरातनता का यहां अद्भुत संगम है.
Ram Mohan Rai,
Srinagar, Jammu and Kashmir.
02.10.2024

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