घुमक्कड़ की डायरी -2 / 05.04.2025. Amsterdam[Netherlands]
घुमक्कड़ की डायरी.
ब्लॉसम्स पार्क, एम्सटर्डम की एक यादगार यात्रा*
कई दिनों से धूप निकली हुई है औऱ यहां नीदरलैंड्स में यह एक खुशखबरी है. खुली धूप और ठंडी हवा के साथ मेरा कदम चेरी ब्लॉसम्स पार्क की ओर बढ़ा। एम्सटर्डम के इस कोने में जाते ही लगा, मानो प्रकृति ने गुलाबी चादर ओढ़ ली हो। हर तरफ साकुरा के पेड़ों की छतरी नीचे लोग बिखरे थे—कुछ पिकनिक मनाते, कुछ फोटो खींचते, तो कुछ बस ख़ामोशी से फूलों का नृत्य देख रहे थे। रास्ते भीड़ से भरे थे, पर हर चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। मानो यह पार्क सबके लिए वक्त को रोकने का बहाना हो।
जापानी संस्कृति की झलक यहाँ हर कदम पर दिखी। बांस के स्टॉल्स पर ताकोयाकी, सुशी, और मोची की खुशबू हवा में घुल रही थी। एक स्टॉल से मैचा टी की चुस्की लेते हुए मैंने महसूस किया—यह सिर्फ़ बाहर का नज़ारा नहीं, बल्कि दिल से जुड़ा उत्सव था। कलाकारों ने यूकेयूली की मधुर धुनें बजाईं, तो कहीं इकाइबाना (फूलों की सजावट) की कार्यशालाएँ चल रही थीं। बच्चे कागज़ के क्रेन बनाने में मशगूल थे, और बुजुर्ग जोड़े हाथों में हाथ डाले चल रहे थे।
एक पेड़ के नीचे बैठकर मैंने देखा—हवा के झोंके के साथ गुलाबी पंखुड़ियाँ बारिश की तरह बरस रही थीं। कुछ लोगों ने उन्हें हथेलियों में समेटा, कुछ ने आँखें बंद करके इस पल को महसूस किया। मेरे पास बैठी एक महिला ने मुस्कुराते हुए कहा, *"यहाँ हर साल आती हूँ... ये फूल याद दिलाते हैं कि खूबसूरती क्षणभंगुर होती है, इसलिए इसे जी भर के जी लो।"*
शाम ढलते-ढलते पार्क की रौनक और बढ़ गई। लालटेनों की रोशनी में गुलाबी फूल और निखर उठे। जापानी ड्रम्स की थाप पर युवा नाच उठे, तो मैंने भी ताज़ा बनाए गए दोरायाकी (मीठी पैनकेक) का स्वाद चखा। अचानक बारिश की बूँदें गिरने लगीं, पर लोग छतरियाँ तानकर मस्त रहे—मानो मौसम भी इस उत्सव का हिस्सा बन गया हो।
वापसी के रास्ते में मन भारी था, पर दिल हल्का। यह पार्क सिर्फ़ फूलों का नज़ारा नहीं, बल्कि जीवन का एक सबक़ था—खिलो, बिखरो, और हर पल को गुलाबी बना दो। आज एम्सटर्डम नहीं, बल्कि जापान की एक झलक मेरे साथ लौटी है... और वो गुलाबी पंखुड़ियाँ अब तक आँखों में तैर रही हैं।
राम मोहन राय,
एम्सटर्डम, नीदरलैंड्स.
🌸
Comments
Post a Comment