Morning walk in Almere, Netherlands. घुमक्कड़ की डायरी/08.04.2025
आज सुबह जब नींद खुली, तो मन में एक ताज़गी भरा विचार आया—"क्यों न अल्मेरे की सुबह को प्रकृति के साथ जिया जाए?" यही सोचकर मैं अपने दैनिक लक्ष्य, यानी 6,000 क़दम चलने के संकल्प के साथ मॉर्निंग वॉक पर निकल पड़ा। घर से बाहर कदम रखते ही सामने बहती हुई नदी ने मुझे अपनी ओर खींच लिया। नदी के किनारे-किनारे चलते हुए लगा, जैसे मैं किसी चित्रकार की कैनवास पर बनी तस्वीर का हिस्सा बन गया हूँ।
नदी का पानी इतना स्वच्छ और नीला था कि उसमें आसमान का प्रतिबिंब साफ़ दिख रहा था। किनारे पर खड़ी नावें (क्रूज़) और पानी पर तैरती बत्तखों, हंसों व अन्य पक्षियों का समूह मन को शांति दे रहा था। बत्तखों की क्वैक-क्वैक और हवा में लहराते पंखों की आवाज़ें प्रकृति का संगीत बन रही थीं। यह दृश्य देखकर लगा, जैसे जलचर और थलचर पक्षी आपस में कोई मधुर संवाद कर रहे हों।
आगे बढ़ते हुए रास्ते में एक पशुशाला नज़र आई। वहाँ घोड़े, कुत्ते, बिल्लियाँ, और मुर्गियाँ आपस में घुलमिल कर खेल रहे थे। एक घोड़ा झुककर कुत्ते को सूँघ रहा था, तो बिल्ली मुर्गियों के पीछे-पीछे दौड़ रही थी—मानो सभी जानवरों ने प्रकृति के "साथ रहने" के नियम को अपना लिया हो। यह दृश्य देखकर मन में समन्वय और सहअस्तित्व की भावना उमड़ आई।
लगभग एक घंटे तक प्रकृति की इस अनूठी दुनिया में भटकने के बाद जब मैं घर लौटा, तो शरीर में थकान नहीं, बल्कि ऊर्जा का संचार था। 6,000 क़दम का लक्ष्य पूरा हो गया, पर इससे भी बड़ी उपलब्धि थी—प्रकृति के साथ जुड़कर मिली वह शांति, जो शहरी जीवन की भागदौड़ में कहीं खो सी जाती है। अल्मेरे की यह सुबह मुझे याद दिला गई कि प्रकृति ही हमारी सबसे बड़ी साथी और शिक्षक है।
सुबह की सैर ने न केवल सेहत, बल्कि मन को भी समृद्ध किया। पक्षियों का कलरव, पशुओं का मेल-मिलाप, और नदी की निर्मल धारा—ये सभी अनुभव एक संदेश देते हैं: "प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर चलो, जीवन की गति स्वतः सुंदर हो जाएगी।"
Rai_rammohan@rediffmail.com
राम मोहन राय,
Almere, Netherlands.
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