An autobiography of Nirmala Deshpande Sansthan, Panipat - (series-1)

●निर्मला देशपांडे संस्थान की आत्मकथा: एक विरासत की कहानी

 दीदी निर्मला देशपांडे एक ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने अपने जीवन को गांधीवादी आदर्शों, सर्व धर्म समभाव, राष्ट्रीय एकता और शांति के लिए समर्पित कर दिया। हरिजन सेवक संघ की अध्यक्ष और नित्यनूतन पत्रिका की संपादक के रूप में उन्होंने समाज सेवा और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी मृत्यु 1 मई, 2008 को दिल्ली के शाहजहां रोड स्थित सरकारी निवास में हुई, जो एक दुखद और विवादास्पद घटना थी। उनकी मृत्यु के बाद की घटनाओं और उनकी विरासत को संभालने की कोशिशों की कहानी, जैसा कि राम मोहन राय द्वारा वर्णित है, एक ऐसी कथा है जो न केवल दीदी के प्रति श्रद्धा को दर्शाती है, बल्कि मानवीय स्वार्थ, विश्वासघात और कुछ लोगों की निष्ठा की भी तस्वीर प्रस्तुत करती है।

 ●दीदी की मृत्यु और उसके बाद की घटनाएँ

निर्मला दीदी की मृत्यु सुबह के समय अचानक हुई। उनके सहयोगियों के अनुसार, मृत्यु से कुछ दिन पहले उन्हें छाती और हाथ में दर्द की शिकायत थी, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। यदि समय पर चिकित्सीय जांच कराई गई होती, तो शायद उनकी जान बचाई जा सकती थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके निवास से बेशकीमती सामान, नकदी और अन्य वस्तुएँ चुपके से हटा दी गईं, और इस समाचार को तब तक दबाया गया, जब तक यह कार्य पूरा नहीं हो गया। यह घटना दीदी के प्रति विश्वासघात और लापरवाही का प्रतीक बन गई।

दीदी के निधन के बाद उनके सरकारी निवास को स्मारक बनाने की मांग उठी। कुछ लोगों ने इस मांग का समर्थन करते हुए हस्ताक्षर अभियान चलाया, लेकिन इसके पीछे निहित स्वार्थ स्पष्ट थे। यह प्रस्ताव वास्तव में स्मारक के नाम पर व्यक्तिगत लाभ और व्यवसायिक हितों को साधने का प्रयास था। हरिजन सेवक संघ, जिसकी दीदी अध्यक्ष थीं, उनके लिए अधिक उपयुक्त स्थान हो सकता था, लेकिन वहाँ भी उनके प्रति सम्मान का अभाव दिखा।

 ●हरिजन सेवक संघ में बदलाव और विश्वासघात

दीदी के निधन के तुरंत बाद, संघ के उपाध्यक्ष राधा कृष्ण मालवीय ने अध्यक्ष का कार्यभार संभाला। लेकिन उनके पहले निर्णय ने दीदी के समर्थकों को स्तब्ध कर दिया। उन्होंने दीदी के कट्टर विरोधियों को संघ के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया, जिनमें से कुछ ने उनके जीवनकाल में तहलका पत्रिका में "Slur on Gandhi" जैसे लेखों के माध्यम से उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया था। मालवीय ने इसे ऑल इंडिया कांग्रेस पार्टी की राय बताया, लेकिन यह स्पष्ट था कि यह कदम दीदी की विरासत को कमजोर करने का हिस्सा था। दीदी के विश्वासपात्रों को धीरे-धीरे हटाकर नए लोगों को शामिल किया गया, जिनका हरिजन सेवक संघ से कोई पुराना नाता नहीं था और अब तो यहां तक अफवाहें है कि मोटी रकम लेकर पद दिए जा रहे हैं. अब दादा के नेतृत्व में एक caucus का कब्ज़ा है जो हर तरह से संघ की संपदाओं का दोहन कर रहा है. 

मालवीय जी के आकस्मिक निधन के बाद शंकर कुमार सान्याल नए अध्यक्ष बने। दीदी के समर्थकों को उम्मीद थी कि अब स्थिति सुधरेगी, लेकिन सान्याल ने भी अपनी कुर्सी बचाने के लिए दीदी के विरोधियों को बनाए रखा। यह दीदी के प्रति असम्मान और उनकी विरासत के साथ विश्वासघात का एक और उदाहरण था।

 ●दीदी का सामान और उसका अपमान

दीदी का सामान, जो उनके सरकारी निवास से हरिजन सेवक संघ में स्थानांतरित किया गया, उसे अपमानजनक तरीके से एक गंदी कोठरी में रखा गया। इस सामान में उनकी किताबें, पत्र-पत्रिकाएँ, स्मृति चिह्न, रीडिंग टेबल, साइक्लोस्टाइल मशीन आदि शामिल थे। लेकिन सबसे दुखद तथ्य यह था कि दीदी की अस्थि भस्म की एक छोटी पोटली, जो 2013 तक प्रवाहित नहीं की गई थी, उसी कोठरी में रखी थी। यह घटना दीदी के प्रति घोर असम्मान को दर्शाती है।

राम मोहन राय, जो दीदी की नित्यनूतन पत्रिका के सह-संपादक थे, ने इस सामान को बचाने का प्रयास किया। जब उन्होंने संघ के तत्कालीन सचिव लक्ष्मी दास से नित्यनूतन की सदस्यता सूची वाला रजिस्टर मांगा, तो उन्हें जवाब मिला कि वे सारा सामान ही ले जाएँ, क्योंकि यह संघ के लिए "रद्दी" से ज्यादा कुछ नहीं था। यह सुनकर राय को गहरा आघात लगा, क्योंकि वे उम्मीद कर रहे थे कि संघ या दिल्ली में दीदी की स्मृति में एक संग्रहालय बनेगा। लेकिन सचिव की उदासीनता और सामान को "फिजूल रद्दी" कहने से यह स्पष्ट हो गया कि दीदी की विरासत उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थी।

अंततः, राय और उनके साथी दीपक ने इस सामान को पानीपत ले जाने का निर्णय लिया। सचिव महोदय इस समान को हरिजन सेवक संघ से बाहर निकालने (फैंकने)के लिए इतने आतुर थे कि उन्होंने न केवल ट्रक की व्यवस्था की, बल्कि किराया भी कार्यालय कोष से वहन किया। इस सामान की सूची बनाई गई और इसे संघ की पत्रिका "हरिजन सेवा" में प्रकाशित किया गया। लेकिन यह पूरी प्रक्रिया दीदी की स्मृति के प्रति सम्मान से अधिक एक औपचारिकता थी।

 ●निर्मला देशपांडे संस्थान, पानीपत: एक नई शुरुआत

पानीपत में, राय और उनके सहयोगियों ने दीदी के सामान को "मातृ शक्ति निलयम" में रखा। यह स्थान छोटा था, लेकिन उनकी श्रद्धा और समर्पण ने इसे एक स्मारक का रूप दिया। सीमित संसाधनों के बावजूद, उन्होंने इस स्थान को सजाया और इसका उद्घाटन सचिव महोदय द्वारा किया गया। इस स्थान को दीदी की स्मृति में एक छोटा संग्रहालय बनाया गया, जिसमें उनकी किताबें, स्मृति चिह्न और अन्य वस्तुएँ संरक्षित हैं।

लेकिन इस प्रयास को भी आलोचना का सामना करना पड़ा। कुछ लोगों ने राय पर आरोप लगाया कि उन्होंने दीदी का सामान "उठाकर" पानीपत ले गए। इस प्रचार को भाई जी सुब्बाराव ने खारिज किया और कहा कि यदि दिल्ली में दीदी के नाम पर कोई स्मारक बनता है, तो वे सारा सामान वापिस करवा देंगे। लेकिन इस चुनौती का कोई जवाब नहीं आया। शंकर कुमार सान्याल ने पानीपत का दौरा किया और स्मारक की व्यवस्था की प्रशंसा की, लेकिन यह भी एक औपचारिकता ही थी,क्योंकि वे भी नाम तो चाहते थे पर काम नहीं. 

उर्मिला बहन, जो दीदी की एक अन्य सहयोगी थीं, ने भी पानीपत का दौरा किया। उन्होंने कहा कि यह स्थान भले ही छोटा हो, लेकिन यह दीदी की स्वयं की प्रतिष्ठा से शक्तिपीठ बन गया है। उनकी यह बात राय के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी।

 ●नित्यनूतन पत्रिका और दीदी की विरासत

नित्यनूतन पत्रिका दीदी की सबसे प्रिय संतान थी। उनकी मृत्यु के बाद, वीणा बहन के नेतृत्व में उनके सहयोगियों ने इसे चलाने का निर्णय लिया। दीदी ने पत्रिका के लिए एक अच्छा बैंक बैलेंस और हजारों नियमित व आजीवन सदस्य बनाये थे ,जिसकी कभी भी मेरे द्वारा न तो मांग की गई अथवा खाता संचालकों ने कभी भी देने की पेशकश की . दीदी के विरोधियों द्वारा इसे कमजोर करने के प्रयासों के बावजूद, यह पत्रिका आज भी जीवित है।

 ●निर्मला देशपांडे संस्थान आज

आज, पानीपत में निर्मला देशपांडे संस्थान एक प्रेरणादायक केंद्र बन चुका है। यहाँ बिना किसी सरकारी या गैर-सरकारी सहायता के स्ट्रीट चिल्ड्रन और चाइल्ड लेबर के लिए एक विद्यालय चल रहा है। इसकी लाइब्रेरी समृद्ध है, और हाल ही में महात्मा गांधी और निर्मला दीदी की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। यह संस्थान सर्व धर्म समभाव, राष्ट्रीय एकता और शांति का प्रतीक बन गया है।
       ●निर्मला देशपांडे संस्थान की आत्मकथा दीदी की विरासत, उनके समर्थकों की निष्ठा और कुछ लोगों के विश्वासघात की कहानी है। राम मोहन राय और उनके सहयोगियों ने सीमित संसाधनों के बावजूद दीदी की स्मृति को जीवित रखा। लेकिन यह भी सत्य है कि दीदी की विरासत को वह सम्मान नहीं मिला, जिसकी वह हकदार थीं। आज भी राय और उनके सहयोगी तैयार हैं कि यदि दीदी के नाम पर एक सम्मानजनक स्मारक बनता है, तो वे सारा सामान सौंप देंगे। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा और समर्पण किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं, और दीदी जैसे महान व्यक्तित्व की स्मृति को हमेशा जीवित रखा जा सकता है। 
(दीदी की विरासत के सच्चे घटनाक्रम क्रमश:)
सादर, 
●निर्मला देशपांडे संस्थान, पानीपत
Urmila Srivastava Bahan message.
प्रिय मित्रों!नमस्कार
पिछले 15 दिन भागदौड़ के रहे।श्रीनगर ,अमरनाथ यात्रा और उसके बाद पानीपत।
पानीपत में हम सबके छोटे भाई,दीदी निर्मला देशपांडेय के परमभक्त श्री राममोहन भाई रहते हैं।पेशे से सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं पर घर सर्वोदय आंदोलन के लिए खुला है।पुरा परिवार वत्सलता से परिपूर्ण है।
ये अत्यंत उल्लेखनीय प्रसंग है कि देश और दुनिया की दीदी निर्मला देशपांडेय जी पर स्थापित संग्रहालय अगर आपको देखना हो तो पानीपत जाना होगा जिसे राममोहन जी के व्यक्तिगत प्रयासों से एक अंतरराष्ट्रीय स्थान प्राप्त हुआ है।
दीदी का परिवार इसके लिए आजन्म उनका ऋणी रहेगा।यही नही दीदी की आत्मा रही उनके द्वारा संपादित,नित्यनूतन पत्रिका भी संपादित करने का गुरुतर भार वो समेटे है।इसमें उनका कितना प्रयास लगता है,उसके संपादक मंडल में होने के कारण मैं जान सकती हूं।
अभी 29 जुलाई को प्रतिभा स्मृति सदन व प्रतिभा स्मृति सम्मान समारोह का आयोजन बेटी प्रतिभा की स्मृति में पानीपत में आयोजित किया गया।अपने तरीके का ये अनूठा रचनात्मक प्रयास था जिसमे साथिओं समेत राममोहन जी ने ,दीदी के साथ काम कर चुकी विभिन्न प्रान्तों की 11 महिलाओं को केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह द्वारा पुरस्कार दिलाया।मेरे समेत अनेक प्रान्तों की अनेक बहनों ने ये पुरुस्कार प्राप्त किया।
इस अवसर कुरुक्षेत्र से प्रकाशित 'देस हरियाणा'पत्रिका का विमोचन भी हुआ।सोशल मीडिया के इस दौर में पत्रिकाएं अब वैसे ही बड़ी चुनौती हैं।उस पर स्तरीय सामग्री समेटे ये पत्रिका हिंदी भाषा वालों के लिए एक अनुपम उपहार लगी।
कार्यक्रम की भव्यता में हरियाणा की सांस्कृतिक समृद्धि के प्रत्यक्ष दर्शन हुए।ये आयोजन राममोहन भाई की टीम की एकजुटता की सफल कहानी सुना रहा था।मंत्री जी के विचारोत्तक उद्बोधन ने सबको अभिभूत कर दिया।
ये कार्यक्रम आपके स्नेह,व हम सबको जोड़ने के प्रयासों की ये अद्भुत कड़ी रहा राम मोहन जी!
आपको और आपकी टीम को बहुत बहुत साधुवाद मित्र!
(यह चित्र मंत्री जी के संग्रहालय भ्रमण से पूर्व का है।राम मोहन जी पीले कुर्ते में मंत्री जी के पड़ोस में)

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